"गीता जयंती": अवतरणों में अंतर
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'''गीता जयंती''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gita Jayanti'') [[मार्गशीर्ष]] माह में [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] को मनाई जाती है। '[[गीता]]' ग्रंथ का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष में शुक्ल एकादशी को [[कुरुक्षेत्र]] में हुआ था। [[महाभारत]] के समय [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] द्वारा [[अर्जुन]] को ज्ञान का मार्ग दिखाते हुए 'गीता' का आगमन होता है। इस ग्रंथ में छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्यमात्र के लिए बहुमूल्य है। अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर कर्म का महत्त्व स्थापित किया गया था। इस प्रकार अनेक कार्यों को करते हुए एक महान युग परवर्तक के रूप में श्रीकृष्ण ने सभी का मार्गदर्शन किया। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'गीता जयंती' के साथ-साथ [[मोक्षदा एकादशी]] भी कहा जाता है। मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को एकादशी के नाम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के योग बनते हैं। | '''गीता जयंती''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Gita Jayanti'') [[मार्गशीर्ष]] माह में [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] को मनाई जाती है। '[[गीता]]' ग्रंथ का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष में शुक्ल एकादशी को [[कुरुक्षेत्र]] में हुआ था। [[महाभारत]] के समय [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] द्वारा [[अर्जुन]] को ज्ञान का मार्ग दिखाते हुए 'गीता' का आगमन होता है। इस ग्रंथ में छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्यमात्र के लिए बहुमूल्य है। अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर कर्म का महत्त्व स्थापित किया गया था। इस प्रकार अनेक कार्यों को करते हुए एक महान युग परवर्तक के रूप में श्रीकृष्ण ने सभी का मार्गदर्शन किया। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'गीता जयंती' के साथ-साथ [[मोक्षदा एकादशी]] भी कहा जाता है। मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को एकादशी के नाम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के योग बनते हैं। | ||
==गीता उत्पत्ति तथा विस्तार== | ==गीता उत्पत्ति तथा विस्तार== | ||
[[हिन्दू धर्म]] के सबसे बड़े ग्रन्थ के जन्म दिवस को 'गीता जयंती' कहा जाता हैं। भगवत गीता का [[हिन्दू]] समाज में सबसे ऊपर स्थान माना जाता है। इसे सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता है। भगवत गीता स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। [[कुरुक्षेत्र]] के युद्ध में अर्जुन अपने सगे सम्बंधियों को दुश्मन के रूप में सामने देखकर, विचलित हो जाते हैं और वह शस्त्र उठाने से इंकार कर देते हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवं कर्म का उपदेश दिया। यही उपदेश '[[गीता]]' में लिखा हुआ है, जिसमें मनुष्य जाति के सभी धर्मों एवं कर्मों का समावेश है।<ref | [[हिन्दू धर्म]] के सबसे बड़े ग्रन्थ के जन्म दिवस को 'गीता जयंती' कहा जाता हैं। भगवत गीता का [[हिन्दू]] समाज में सबसे ऊपर स्थान माना जाता है। इसे सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता है। भगवत गीता स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। [[कुरुक्षेत्र]] के युद्ध में अर्जुन अपने सगे सम्बंधियों को दुश्मन के रूप में सामने देखकर, विचलित हो जाते हैं और वह शस्त्र उठाने से इंकार कर देते हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवं कर्म का उपदेश दिया। यही उपदेश '[[गीता]]' में लिखा हुआ है, जिसमें मनुष्य जाति के सभी धर्मों एवं कर्मों का समावेश है।<ref name="a">{{cite web |url=http://www.deepawali.co.in/gita-geeta-jayanti-mahatva-date-swadhyay-speech-history-in-hindi.html |title=गीता जयंती महत्व इतिहास एवं स्वाध्याय परिवार विवरण |accessmonthday=29 नवम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=deepawali.co.in |language=हिंदी }}</ref> कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है, कहा जाता है कलयुग के प्रारंभ के महज 30 वर्षों के पहले ही गीता का जन्म हुआ, जिसे जन्म स्वयं श्रीकृष्ण ने नंदीघोष रथ के सारथि के रूप में दिया था। गीता का जन्म आज से लगभग 5140 वर्ष पूर्व हुआ था। | ||
==हिन्दू सभ्यता का मार्गदर्शन 'गीता'== | ==हिन्दू सभ्यता का मार्गदर्शन 'गीता'== | ||
गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन ही नहीं देती, यह जातिवाद से कहीं ऊपर मानवता का ज्ञान देती है। गीता के अठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म एवं कर्म का ब्यौरा है। इसमें सतयुग से कलयुग तक मनुष्य के कर्म एवं धर्म का ज्ञान है। गीता के श्लोकों में मनुष्य जाति का आधार छिपा है। मनुष्य के लिए क्या कर्म है, उसका क्या धर्म है। इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था। उसी ज्ञान को गीता के पन्नों में लिखा गया है। यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ है। | गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन ही नहीं देती, यह जातिवाद से कहीं ऊपर मानवता का ज्ञान देती है। गीता के अठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म एवं कर्म का ब्यौरा है। इसमें सतयुग से कलयुग तक मनुष्य के कर्म एवं धर्म का ज्ञान है। गीता के श्लोकों में मनुष्य जाति का आधार छिपा है। मनुष्य के लिए क्या कर्म है, उसका क्या धर्म है। इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था। उसी ज्ञान को गीता के पन्नों में लिखा गया है। यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ है। | ||
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[[कुरुक्षेत्र]] का भयावह युद्ध, जिसमें भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था, वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था। उस युद्ध के दौरान [[अर्जुन]] ने जब अपने ही दादा, भाई एवं गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उनका गांडीव धनुष उनके हाथों से छुटने लगा, उनके पैर काँपने लगे। उन्होंने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया। इस प्रकार '[[गीता]]' का जन्म हुआ। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई। उसे निभाने की ताकत दी। एक मनुष्यरूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्रीकृष्ण ने स्वयं उसे दिया। उसी का विस्तार भगवत गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसका कर्तव्य एवं अधिकार का बोध कराता है। | [[कुरुक्षेत्र]] का भयावह युद्ध, जिसमें भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था, वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था। उस युद्ध के दौरान [[अर्जुन]] ने जब अपने ही दादा, भाई एवं गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उनका गांडीव धनुष उनके हाथों से छुटने लगा, उनके पैर काँपने लगे। उन्होंने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया। इस प्रकार '[[गीता]]' का जन्म हुआ। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई। उसे निभाने की ताकत दी। एक मनुष्यरूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्रीकृष्ण ने स्वयं उसे दिया। उसी का विस्तार भगवत गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसका कर्तव्य एवं अधिकार का बोध कराता है। | ||
==महत्त्व== | ==महत्त्व== | ||
'गीता' का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया। जब गीता का वाचन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किया, उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था। कलयुग ऐसा दौर है, जिसमें गुरु एवं ईश्वर स्वयं धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें। ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति की राह प्रशस्त करते हैं। इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्त्पत्ति की गई। [[हिन्दू धर्म]] ही एक ऐसा धर्म है, जिसमें किसी ग्रन्थ की जयंती मनाई जाती है, इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाये रखना है। कलयुग में गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो मनुष्य को सही गलत का बोध करा सकता है।<ref | 'गीता' का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया। जब गीता का वाचन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किया, उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था। कलयुग ऐसा दौर है, जिसमें गुरु एवं ईश्वर स्वयं धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें। ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति की राह प्रशस्त करते हैं। इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्त्पत्ति की गई। [[हिन्दू धर्म]] ही एक ऐसा धर्म है, जिसमें किसी ग्रन्थ की जयंती मनाई जाती है, इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाये रखना है। कलयुग में गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो मनुष्य को सही गलत का बोध करा सकता है।<ref name="a"/> | ||
इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है। गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी ज़िंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें। गीता का ज्ञान हमें धैर्य, दु:ख, लोभ व अज्ञानता से बाहर निकालने की प्रेरणा देता है। गीता मात्र एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण जीवन है। इसमें पुरुषार्थ व कर्तव्य के पालन की सीख है। | इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है। गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी ज़िंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें। गीता का ज्ञान हमें धैर्य, दु:ख, लोभ व अज्ञानता से बाहर निकालने की प्रेरणा देता है। गीता मात्र एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण जीवन है। इसमें पुरुषार्थ व कर्तव्य के पालन की सीख है। | ||
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#इस दिन कई लोग उपवास आदि भी रखते हैं। | #इस दिन कई लोग उपवास आदि भी रखते हैं। | ||
#'गीता' के उपदेश पढ़े एवं सुने जाते हैं। | #'गीता' के उपदेश पढ़े एवं सुने जाते हैं। | ||
'[[गीता]]' ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हर कोई काम में तुरंत नतीजा चाहते है, लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दु:ख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी। मंगलमय जीवन का ग्रंथ है गीता। गीता केवल ग्रंथ नहीं, [[कलियुग]] के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है, जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं, वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होनी चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है। दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश [[भक्ति]] और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं, यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/article/religious-article/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%80-%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82-%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5-110121700009_1.htm |title=मोक्षदा एकादशी एवं गीता जयंती का महत्व |accessmonthday=29 नवम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=webdunia.com|language=हिंदी }}</ref> | '[[गीता]]' ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हर कोई काम में तुरंत नतीजा चाहते है, लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दु:ख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी। मंगलमय जीवन का ग्रंथ है गीता। गीता केवल ग्रंथ नहीं, [[कलियुग]] के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है, जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं, वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होनी चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है। दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश [[भक्ति]] और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं, यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/article/religious-article/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B6%E0%A5%80-%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82-%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5-110121700009_1.htm |title=मोक्षदा एकादशी एवं गीता जयंती का महत्व |accessmonthday=29 नवम्बर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=webdunia.com|language=हिंदी }}</ref> |
11:08, 29 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
गीता जयंती
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अन्य नाम | मोक्षदा एकादशी |
अनुयायी | हिन्दू |
उद्देश्य | मनुष्य में 'गीता' के महत्त्व को जगाये रखना। कलयुग में 'गीता' ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो मनुष्य को सही गलत का बोध करा सकता है। |
तिथि | मार्गशीर्ष माह, शुक्ल पक्ष, एकादशी |
संबंधित लेख | गीता, कृष्ण, अर्जुन, महाभारत, मार्गशीर्ष कृत्य |
अन्य जानकारी | इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है। गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी ज़िंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें। |
गीता जयंती (अंग्रेज़ी: Gita Jayanti) मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। 'गीता' ग्रंथ का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष में शुक्ल एकादशी को कुरुक्षेत्र में हुआ था। महाभारत के समय श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को ज्ञान का मार्ग दिखाते हुए 'गीता' का आगमन होता है। इस ग्रंथ में छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्यमात्र के लिए बहुमूल्य है। अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर कर्म का महत्त्व स्थापित किया गया था। इस प्रकार अनेक कार्यों को करते हुए एक महान युग परवर्तक के रूप में श्रीकृष्ण ने सभी का मार्गदर्शन किया। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'गीता जयंती' के साथ-साथ मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है। मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को एकादशी के नाम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के योग बनते हैं।
गीता उत्पत्ति तथा विस्तार
हिन्दू धर्म के सबसे बड़े ग्रन्थ के जन्म दिवस को 'गीता जयंती' कहा जाता हैं। भगवत गीता का हिन्दू समाज में सबसे ऊपर स्थान माना जाता है। इसे सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता है। भगवत गीता स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन अपने सगे सम्बंधियों को दुश्मन के रूप में सामने देखकर, विचलित हो जाते हैं और वह शस्त्र उठाने से इंकार कर देते हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवं कर्म का उपदेश दिया। यही उपदेश 'गीता' में लिखा हुआ है, जिसमें मनुष्य जाति के सभी धर्मों एवं कर्मों का समावेश है।[1] कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है, कहा जाता है कलयुग के प्रारंभ के महज 30 वर्षों के पहले ही गीता का जन्म हुआ, जिसे जन्म स्वयं श्रीकृष्ण ने नंदीघोष रथ के सारथि के रूप में दिया था। गीता का जन्म आज से लगभग 5140 वर्ष पूर्व हुआ था।
हिन्दू सभ्यता का मार्गदर्शन 'गीता'
गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन ही नहीं देती, यह जातिवाद से कहीं ऊपर मानवता का ज्ञान देती है। गीता के अठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म एवं कर्म का ब्यौरा है। इसमें सतयुग से कलयुग तक मनुष्य के कर्म एवं धर्म का ज्ञान है। गीता के श्लोकों में मनुष्य जाति का आधार छिपा है। मनुष्य के लिए क्या कर्म है, उसका क्या धर्म है। इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था। उसी ज्ञान को गीता के पन्नों में लिखा गया है। यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ है।
गीता वाचन और उद्देश्य
कुरुक्षेत्र का भयावह युद्ध, जिसमें भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था, वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था। उस युद्ध के दौरान अर्जुन ने जब अपने ही दादा, भाई एवं गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उनका गांडीव धनुष उनके हाथों से छुटने लगा, उनके पैर काँपने लगे। उन्होंने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया। इस प्रकार 'गीता' का जन्म हुआ। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई। उसे निभाने की ताकत दी। एक मनुष्यरूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्रीकृष्ण ने स्वयं उसे दिया। उसी का विस्तार भगवत गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसका कर्तव्य एवं अधिकार का बोध कराता है।
महत्त्व
'गीता' का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया। जब गीता का वाचन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने किया, उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था। कलयुग ऐसा दौर है, जिसमें गुरु एवं ईश्वर स्वयं धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें। ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति की राह प्रशस्त करते हैं। इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्त्पत्ति की गई। हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है, जिसमें किसी ग्रन्थ की जयंती मनाई जाती है, इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाये रखना है। कलयुग में गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो मनुष्य को सही गलत का बोध करा सकता है।[1]
इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है। गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी ज़िंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें। गीता का ज्ञान हमें धैर्य, दु:ख, लोभ व अज्ञानता से बाहर निकालने की प्रेरणा देता है। गीता मात्र एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण जीवन है। इसमें पुरुषार्थ व कर्तव्य के पालन की सीख है।
कैसे मनाते हैं गीता जयंती
- गीता जयंती के दिन 'भगवत गीता' का पाठ किया जाता है।
- देश भर के इस्कॉन मंदिर में भगवान कृष्ण एवं गीता की पूजा की जाती है। भजन एवं आरती की जाती है।
- महाविद्वान इस दिन गीता का सार कहते हैं। कई वाद-विवाद का आयोजन होता है, जिसके जरिये मनुष्य जाति को इसका ज्ञान मिलता है।
- इस दिन कई लोग उपवास आदि भी रखते हैं।
- 'गीता' के उपदेश पढ़े एवं सुने जाते हैं।
'गीता' ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हर कोई काम में तुरंत नतीजा चाहते है, लेकिन भगवान ने कहा है कि धैर्य के बिना अज्ञान, दु:ख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी। मंगलमय जीवन का ग्रंथ है गीता। गीता केवल ग्रंथ नहीं, कलियुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है, जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं, वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होनी चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है। दुर्लभ मनुष्य जीवन हमें केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश भक्ति और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं, यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 गीता जयंती महत्व इतिहास एवं स्वाध्याय परिवार विवरण (हिंदी) deepawali.co.in। अभिगमन तिथि: 29 नवम्बर, 2011।
- ↑ मोक्षदा एकादशी एवं गीता जयंती का महत्व (हिंदी) webdunia.com। अभिगमन तिथि: 29 नवम्बर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- गीता जयंती 2017
- मोक्षदा एकादशी एवं गीता जयंती का महत्व
- गीता जयंती: क्या है महत्व?
- गीता जयंती, जानिए क्या है इसका महत्व
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