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''' | '''दुर्मुख''' [[हिन्दू धर्म]] में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में तीसवाँ है। इस [[संवत्सर]] के आने पर विश्व में मनुष्यों की वाणी में कटुता रहती है, रोग तथा अग्नि का भय रहता है और ब्राह्मणों को धन की हानि होती है। इस संवत्सर का स्वामी अहिर्बुधन्य को माना गया है। | ||
* | *दुर्मुख संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु क्रूर स्वभाव वाला, निन्दित बुद्धि से युक्त, लोभी, वक्र अंगों व विरोधी स्वभाव का और दुष्ट चेष्टाएँ करने वाला होता है। | ||
*[[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] ने सृष्टि का आरम्भ [[चैत्र]] माह में [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] से किया था, अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। | *[[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] ने सृष्टि का आरम्भ [[चैत्र]] माह में [[शुक्ल पक्ष]] की [[प्रतिपदा]] से किया था, अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। | ||
*[[हिन्दू]] परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है। | *[[हिन्दू]] परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है। |
12:47, 9 मार्च 2018 के समय का अवतरण
दुर्मुख हिन्दू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में तीसवाँ है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में मनुष्यों की वाणी में कटुता रहती है, रोग तथा अग्नि का भय रहता है और ब्राह्मणों को धन की हानि होती है। इस संवत्सर का स्वामी अहिर्बुधन्य को माना गया है।
- दुर्मुख संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु क्रूर स्वभाव वाला, निन्दित बुद्धि से युक्त, लोभी, वक्र अंगों व विरोधी स्वभाव का और दुष्ट चेष्टाएँ करने वाला होता है।
- ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से किया था, अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।
- हिन्दू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है।
- संवत्सर 60 हैं। जब 60 संवत पूरे हो जाते हैं तो फिर पहले से संवत्सर का प्रारंभ हो जाता है।
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