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12:27, 10 जनवरी 2011 का अवतरण
- तारामती राजा हरिश्चन्द्र की राजमहिषी, शैव्य देश के राजा की पुत्री थी।
- इन्हें शैव्या भी कहते हैं।
- सत्यवादी हरिश्चन्द्र डोम के हाथ बिक गये थे और तारामती एक ब्राह्मण के यहाँ दासी का काम करने लगीं।
- वहाँ इनके पुत्र रोहिताश्व की सर्प-दंश से मृत्यु हो गयी।
- अत: वे उसे श्मशान लेकर पहुँची, जहाँ डोम द्वारा नियुक्त हरिश्चन्द्र ने 'कर' माँगा।
- शैव्या के पास कर चुकाने के लिए बालक का कफ़न भी नहीं था किन्तु कर्त्तव्यारूढ़ हरिश्चन्द्र बिना 'कर' लिये दाह नहीं करने दे रहे थे।
- उनकी सत्यनिष्ठा से प्रसन्न होकर इन्द्र प्रकट हुए और विश्वामित्र ने परीक्षा में सफल हरिश्चन्द्र के पुत्र को जीवित कर दिया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देखिए 'सत्यहरिश्चन्द्र' :भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, मोहन अवस्थी