"जीवन-मृतक का अंग -कबीर": अवतरणों में अंतर
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तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥ | तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥ | ||
जीवन | जीवन तै मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ । | ||
मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥ | मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥ | ||
11:23, 8 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
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`कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर । |
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