"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-1": अवतरणों में अंतर
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14:57, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण
- छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह प्रथम खण्ड है।
मुख्य लेख : छान्दोग्य उपनिषद
- ॐकार सर्वोत्तम रस है।
- सर्वप्रथम उद्गाता 'ॐ' का उच्चारण करके सामगान करता है।
- वह बताता है कि समस्त प्राणियों और पदार्थों का रस अथवा सार पृथिवी है।
- पृथ्वी का सार जल है, जल का रस औषधियां हैं, औषधियों का रस पुरुष है, पुरुष का रस वाणी है, वाणी का रस साम है और साम का रस उद्गीथ 'ॐकार' है।
- यह ओंकार सभी रसों में सर्वोत्तम रस है।
- यह परमात्मा का प्रतीक होने के कारण 'उपास्य' है।
- जिस प्रकार स्त्री-पुरुष के मिलन से एक-दूसरे की कामनाओं की पूर्ति होती है, उसी प्रकार इस वाणी, प्राण और ऋचा तथा साम (गायन) के संयोग से 'ॐकार' का सृजन होता है।
- 'ॐकार' अनुभूति-जन्य है, जिसे अक्षरों के गायन से अनुभव किया जाता है।
- यह अक्षरब्रह्म की ही व्याख्या है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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