"श्राद्ध विधि (संक्षिप्त)": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('श्राद्ध दिवस से पूर्व दिवस को बुद्धिमान पुरुष श्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{अस्वीकरण}}
[[श्राद्ध]] दिवस से पूर्व दिवस को बुद्धिमान पुरुष श्रोत्रिय आदि से विहित ब्राह्मणों को 'पितृ-श्राद्ध' तथा 'वैश्व-देव-श्राद्ध' के लिए निमंत्रित करें। पितृ-श्राद्ध के लिए सामर्थ्यानुसार अयुग्म तथा वैश्व-देव-श्राद्ध के लिए युग्म ब्राह्मणों को निमंत्रित करना चाहिए। निमंत्रित तथा निमंत्रक क्रोध, स्त्रीगमन तथा परिश्रम आदि से दूर रहे। श्राद्ध-दिवस पर निम्न प्रक्रिया का पालन निमंत्रित तथा निमंत्रक को करना विहित है-
[[श्राद्ध]] दिवस से पूर्व दिवस को बुद्धिमान पुरुष श्रोत्रिय आदि से विहित ब्राह्मणों को 'पितृ-श्राद्ध' तथा 'वैश्व-देव-श्राद्ध' के लिए निमंत्रित करें। पितृ-श्राद्ध के लिए सामर्थ्यानुसार अयुग्म तथा वैश्व-देव-श्राद्ध के लिए युग्म ब्राह्मणों को निमंत्रित करना चाहिए। निमंत्रित तथा निमंत्रक क्रोध, स्त्रीगमन तथा परिश्रम आदि से दूर रहे। श्राद्ध-दिवस पर निम्न प्रक्रिया का पालन निमंत्रित तथा निमंत्रक को करना विहित है-
{| width="100%" class="bharattable" border="1"
{| width="100%" class="bharattable" border="1"

06:16, 20 सितम्बर 2011 का अवतरण

यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में देखें अस्वीकरण

श्राद्ध दिवस से पूर्व दिवस को बुद्धिमान पुरुष श्रोत्रिय आदि से विहित ब्राह्मणों को 'पितृ-श्राद्ध' तथा 'वैश्व-देव-श्राद्ध' के लिए निमंत्रित करें। पितृ-श्राद्ध के लिए सामर्थ्यानुसार अयुग्म तथा वैश्व-देव-श्राद्ध के लिए युग्म ब्राह्मणों को निमंत्रित करना चाहिए। निमंत्रित तथा निमंत्रक क्रोध, स्त्रीगमन तथा परिश्रम आदि से दूर रहे। श्राद्ध-दिवस पर निम्न प्रक्रिया का पालन निमंत्रित तथा निमंत्रक को करना विहित है-

श्राद्ध कर्म- एक संक्षिप्त विधि
क्रमांक विधि
1 सर्वप्रथम ब्राह्मण का पैर धोकर सत्कार करें।
2 हाथ धोकर उन्हें आचमन कराने के बाद साफ आसन प्रदान करें।
3 देवपक्ष के ब्राह्मणों को पूर्वाभिमुख तथा पितृ-पक्ष व मातामह-पक्ष के ब्राह्मणों को उत्तराभिमुख बिठाकर भोजन कराएं।
4 श्राद्ध विधि का ज्ञाता पुरुष यव-मिश्रित जल से देवताओं को अर्ध्य दान कर विधि-पूर्वक धूप, दीप, गंध, माला निवेदित करें।
5 इसके बाद पितृ-पक्ष के लिए अपसव्य भाव से यज्ञोपवीत को दाएँ कन्धे पर रखकर निवेदन करें, फिर ब्राह्मणों की अनुमति से दो भागों में बंटे हुए कुशाओं का दान करके मंत्रोच्चारण-पूर्वक पितृ-गण का आह्वान करें तथा अपसव्य भाव से तिलोसक से अर्ध्यादि दें।
6 यदि कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण या कोई भूखा पथिक अतिथि रूप में आ जाए तो निमंत्रित ब्राह्मणों की आज्ञा से उसे यथेच्छा भोजन निवेदित करें।
7 निमंत्रित ब्राह्मणों की आज्ञा से शाक तथा लवणहीन अन्न से श्राद्ध-कर्ता यजमान निम्न मंत्रों से अग्नि में तीन बार आहुति दें-

प्रथम आहुतिः- “अग्नये काव्यवाहनाय स्वाहा”
द्वितीय आहुतिः- “सोमाय पितृमते स्वाहा”

8 आहुतियों से शेष अन्न को ब्राह्मणों के पात्रों में परोस दें।
9 इसके बाद रुचि के अनुसार अन्न परोसें और अति विनम्रता से कहें कि ‘आप भोजम ग्रहण कीजिए”।
10 ब्राह्मणों को भी तद्चित और मौन होकर प्रसन्न मुख से सुखपूर्वक भोजन करना चाहिए तथा यजमान को क्रोध और उतावलेपन को छोड़कर भक्ति-पूर्वक परोसते रहना चाहिए।
11 फिर ऋग्वेदोक्त ‘रक्षोघ्न मंत्र’ ॐ अपहता असुरा रक्षांसि वेदिषद इत्यादि ऋचा का पाठ कर श्राद्ध-भूमि पर तिल छिड़कें तथा अपने पितृ-रुप से उन ब्राह्मणों का ही चिंतन करे तथा निवेदन करें कि ‘इन ब्राह्मणों के शरीर में स्थित मेरे पिता, पितामह और प्रपितामह आदि आज तृप्ति लाभ करें। [1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वैदिक जगत डॉट कॉम (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 2 अक्टूबर, 2010।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख