"उपदेश का अंग -कबीर": अवतरणों में अंतर
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बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त | बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार। | ||
दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न | दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार॥1॥ | ||
`कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै | `कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार। | ||
तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न | तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार॥2॥ | ||
ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा | ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ। | ||
अपना तन सीतल करै, औरन को सुख | अपना तन सीतल करै, औरन को सुख होइ॥3॥ | ||
कोइ एक राखै सावधां, चेतनि पहरै | कोइ एक राखै सावधां, चेतनि पहरै जागि। | ||
बस्तर बासन सूं खिसै, चोर न सकई | बस्तर बासन सूं खिसै, चोर न सकई लागि॥4॥ | ||
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल | जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होइ। | ||
या आपा को डारिदे, दया करै सब | या आपा को डारिदे, दया करै सब कोइ॥5॥ | ||
आवत गारी एक है, उलटत होइ | आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक। | ||
कह `कबीर' नहिं उलटिए, वही एक की | कह `कबीर' नहिं उलटिए, वही एक की एक॥6॥ | ||
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14:10, 19 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
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बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार। |
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