"श्याम बेनेगल": अवतरणों में अंतर
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07:26, 21 जनवरी 2012 का अवतरण
श्याम बेनेगल
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पूरा नाम | श्याम बेनेगल |
जन्म | 4 दिसम्बर, 1934 |
जन्म भूमि | हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश, भारत |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | फ़िल्म निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | 'अंकुर', 'मंथन', 'कलयुग', 'जुनून', 'त्रिकाल', 'मंडी', 'सूरज का सातवां घोड़ा', 'सरदारी बेगम', 'समर', 'हरी भरी' और 'जुबैदा' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्मश्री' (1976), 'पद्मभूषण' (1961), 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' (2007), 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार' (पाँच बार) |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | श्याम बेनेगल प्रख्यात फ़िल्मकार गुरुदत्त के भतीजे हैं। हिन्दी सिनेमा को नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी और स्मिता पाटिल जैसे बेहतरीन कलाकार श्याम बेनेगल ने दिये हैं। |
श्याम बेनेगल (जन्म-14 दिसम्बर, 1934, हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश, भारत), मुख्यधारा से अलग भारत में हिन्दी सिनेमा के एक अग्रणी फ़िल्म निर्देशक हैं। सार्थक सिनेमा के प्रति प्रतिबद्ध फ़िल्मकार श्याम बेनेगल अपनी श्रेणी के किसी भी फ़िल्मकार की तुलना में अधिक सक्रिय रहे हैं।
व्यावसायिक जीवन की शुरुआत
एक व्यावसायिक छायाकार के बेटे और प्रख्यात फ़िल्मकार गुरुदत्त के भतीजे श्याम बेनेगल ने बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में एक निर्माता के रूप में अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की। अपनी पहली फ़िल्म 'अंकुर' (1973) बनाने से पहले उन्होंने 900 से भी ज़्यादा विज्ञापन फ़िल्में और 11 कारपोरेट फ़िल्में बनाई थीं। ग्रामीण आन्ध्र प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी यथार्थवादी फ़िल्म 'अंकुर' की व्यावसायिक सफलता से भारतीय समान्तर सिनेमा आन्दोलन के युग का उदय हुआ, जिसकी शुरुआत कुछ वर्ष पहले मृणाल सेन की 'भुवनशोम' ने की थी।
फ़िल्म निर्माण
श्याम बेनेगल की आरम्भिक फ़िल्मों 'अंकुर', 'निशांत' (1975) और 'मंथन' (1975) ने भारतीय सिनेमा को बेहतरीन कलाकार (नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी और स्मिता पाटिल) दिए। मनोरंजन और सामाजिक सरोकार के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश में बेनेगल ने अपनी बाद की फ़िल्मों 'कलयुग' (1980), 'जुनून' (1979), 'त्रिकाल' (1985) और 'मंडी' (1983) से ग्रामीण पृष्ठभूमि को छोड़कर नाटकीय और शहरी विषय-वस्तुओं पर फ़िल्में बनानी शुरू कीं। जवाहरलाल नेहरू और सत्यजित राय पर वृत्तचित्र बनाने के अलावा उन्होंने 1980 के दशक के मध्य में दूरदर्शन के लिए बहुत-से धारावाहिक ('यात्रा', 'कथा सागर' और 'भारत एक खोज') भी बनाए। यह समय उनके लिए फ़िल्म निर्माण से लम्बे अलगाव का था।
'अंतर्नाद' (1992) के साथ फ़िल्मी दुनिया में वापसी के साथ बेनेगल अपनी पुरानी और सक्रिय कार्यशैली में लौटे। उन्होंने चार फ़ीचर फ़िल्में 'सूरज का सातवां घोड़ा' (1993), 'मम्मो' (1995), 'सरदारी बेगम' (1997), 'समर' (1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में) 'हरी भरी' और 'जुबैदा' (दोनों 2001) बनाईं।
पुरस्कार
1976 में श्याम बेनेगल को 'पद्मश्री' और 1961 में 'पद्मभूषण' सम्मान प्रदान किया गया था। इनके विशिष्ट योगदान के लिए 2007 में इन्हें भारतीय सिनेमा के श्रेष्ठ पुरस्कार 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया। अपनी श्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्मों के लिये श्याम बेनेगल ने 5 बार 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार' जीता है। ऐसा करने वाले वे एकमात्र फ़िल्म निर्देशक हैं। भारत सरकार ने 1991 में कला के क्षेत्र में इनके योगदान को देखते हुम इन्हें 'पद्मभूषण' देकर सम्मानित किया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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