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प्राचीन काल से | '''जौ''' प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है। [[संस्कृत]] में इसे "यव" कहते हैं। [[रूस]], [[अमरीका]], [[जर्मनी]], कनाडा और [[भारत]] में यह मुख्यत: पैदा होता है। हमारे [[ऋषि|ऋषियों]]-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था। [[वेद|वेदों]] द्वारा [[यज्ञ]] की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। स्वाद और आकृति के दृष्टिकोण से जौ, [[गेहूँ]] से एकदम भिन्न दिखाई पड़ते हैं, किन्तु यह गेहूँ की जाति का ही अन्न है। यदि गुण की नज़र से देखा जाये तो जौ-गेहूँ की अपेक्षा हल्का होता है और मोटा अनाज भी होता है जो कि पूरे [[भारत]] में पाया जाता है। जौ के पौधे गेहूँ के पौधे के समान होते हैं और उतनी ही ऊंचाई भी होती है। जौ ख़ासतौर पर 3 तरह की होती है। तीक्ष्ण नोक वाले, नोकरहित और हरापन लिए हुए बारीक। नोकदार जौ को यव, बिना नोक के काले तथा लालिमा लिए हुए जौ को अतियव एवं हरापन लिए हुए नोकरहित बारीक जौ को तोक्ययव कहते हैं। यव की अपेक्षा अतियव और अतियव की अपेक्षा तोक्ययव कम गुण माने वाले जाते हैं। | ||
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जौ एक प्रकार का अनाज है। | |||
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जौ की एक जंगली जाति भी होती है। उस जाति के जौ का उपयोग- [[यूरोप]], [[अमेरिका]], [[चीन]], जापान आदि देशों में औषधियाँ बनाने के लिए होता है। | जौ की एक जंगली जाति भी होती है। उस जाति के जौ का उपयोग- [[यूरोप]], [[अमेरिका]], [[चीन]], जापान आदि देशों में औषधियाँ बनाने के लिए होता है। | ||
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जौ को भूनकर, | जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा [[नमक]] और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में [[घी]] और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है। | ||
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*सुप्रसिद्ध मलटाइन काडलीवर नामक दवा में जौ का उपयोग होता है। | *सुप्रसिद्ध मलटाइन काडलीवर नामक दवा में जौ का उपयोग होता है। | ||
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10:17, 22 अप्रैल 2012 का अवतरण
जौ प्राचीन काल से कृषि किये जाने वाले अनाजों में से एक है। इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है। संस्कृत में इसे "यव" कहते हैं। रूस, अमरीका, जर्मनी, कनाडा और भारत में यह मुख्यत: पैदा होता है। हमारे ऋषियों-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था। वेदों द्वारा यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। स्वाद और आकृति के दृष्टिकोण से जौ, गेहूँ से एकदम भिन्न दिखाई पड़ते हैं, किन्तु यह गेहूँ की जाति का ही अन्न है। यदि गुण की नज़र से देखा जाये तो जौ-गेहूँ की अपेक्षा हल्का होता है और मोटा अनाज भी होता है जो कि पूरे भारत में पाया जाता है। जौ के पौधे गेहूँ के पौधे के समान होते हैं और उतनी ही ऊंचाई भी होती है। जौ ख़ासतौर पर 3 तरह की होती है। तीक्ष्ण नोक वाले, नोकरहित और हरापन लिए हुए बारीक। नोकदार जौ को यव, बिना नोक के काले तथा लालिमा लिए हुए जौ को अतियव एवं हरापन लिए हुए नोकरहित बारीक जौ को तोक्ययव कहते हैं। यव की अपेक्षा अतियव और अतियव की अपेक्षा तोक्ययव कम गुण माने वाले जाते हैं।
- रंग और स्वरूप
जौ का रंग पीला व सफ़ेद होता है। जौ एक प्रकार का अनाज है।
- जंगली जाति
जौ की एक जंगली जाति भी होती है। उस जाति के जौ का उपयोग- यूरोप, अमेरिका, चीन, जापान आदि देशों में औषधियाँ बनाने के लिए होता है।
सत्तू
जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा नमक और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में घी और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है।
गुण
- जौ बीमार लोगों के लिए उत्तम पथ्य है।
- जौ में से लेक्टिक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, फास्फोरिक एसिड, पोटैशियम और कैल्शियम उपलब्ध होता है।
- जौ में अल्पमात्रा में कैरोटिन भी है।
- सुप्रसिद्ध मलटाइन काडलीवर नामक दवा में जौ का उपयोग होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख