"वहाबी विद्रोह": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण") |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''वहाबी विद्रोह''' 1828 ई. से प्रारम्भ होकर 1888 ई. चलता रहा था। इतने लम्बे समय तक चलने वाले 'वहाबी विद्रोह' के प्रवर्तक [[रायबरेली]] के 'सैय्यद अहमद' थे। इस आन्दोलन का मुख्य केन्द्र [[पटना]] शहर था। पटना के विलायत अली और इनायत अली इस आन्दोलन के प्रमुख नायक थे। यह आन्दोलन मूल रूप से [[मुसलमान|मुस्लिम]] सुधारवादी आन्दोलन था, जो उत्तर पश्चिम, पूर्वी [[भारत]] तथा मध्य भारत में सक्रिय था। | |||
{{tocright}} | |||
==सैय्यद अहमद की इच्छा== | |||
सैय्यद अहमद [[इस्लाम धर्म]] में हुए सभी परिवर्तनों तथा सुधारों के विरुद्ध थे। उनकी इच्छा [[हजरत मोहम्मद]] के समय के इस्लाम धर्म को पुन:स्थापित करने की थी। सैय्यद अहमद [[पंजाब]] के [[सिक्ख|सिक्खों]] और [[बंगाल]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को अपदस्थ कर मुस्लिम शक्ति को पुर्नस्थापित करने के पक्षधर थे। इन्होंने अपने अनुयायियों को शस्त्र धारण करने के लिए प्रशिक्षित कर स्वयं भी सैनिक वेशभूषा धारण की। उन्होंने [[पेशावर]] पर 1830 ई. में कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया तथा अपने नाम के सिक्के भी चलवाए। इस संगठन ने सम्पूर्ण [[भारत]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के विरुद्ध भावनाओं का प्रचार-प्रसार किया। | |||
====फाँसी की सज़ा==== | |||
[[1857]] में इस आन्दोलन का नेतृत्व पीर अली ने किया था, जिन्हें कमिश्नर टेलबू ने वर्तमान एलिफिन्सटन सिनेमा के सामने एक बडे पेड़ पर लटकवाकर फांसी दिलवा दी, ताकि जनता में दहशत फैले। इनके साथ ही गुलाम अब्बास, जुम्मन, उंधु, हाजीमान, रमजान, पीर बख्श, वहीद अली, गुलाम अली, मुहम्मद अख्तर, असगर अली, नन्दलाल एवं छोटू यादव को भी फांसी पर लटका दिया गया। | |||
==विद्रोह की विफलता== | |||
1857 ई. के [[सिपाही क्रांति 1857|सिपाही विद्रोह]] में 'वहाबी' लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से विद्रोह में न शामिल होकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काने का प्रयास किया। 1860 ई. के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत इस विद्रोह को कुचलने में सफल रही। इस आन्दोलन के अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं में विलायत अली, इनायत अली, अली मौलवी, अब्दुल्ला आदि थे। 'वाहाबी विद्रोह' के बारे में यह कहा जाता है कि 'यह 1857 ई. के विद्रोह की तुलना में कहीं अधिक नियोजित, संगठित और सुव्यवस्थित था'। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{साँचा:आन्दोलन विप्लव सैनिक विद्रोह}} | {{साँचा:आन्दोलन विप्लव सैनिक विद्रोह}} |
11:52, 9 सितम्बर 2012 का अवतरण
वहाबी विद्रोह 1828 ई. से प्रारम्भ होकर 1888 ई. चलता रहा था। इतने लम्बे समय तक चलने वाले 'वहाबी विद्रोह' के प्रवर्तक रायबरेली के 'सैय्यद अहमद' थे। इस आन्दोलन का मुख्य केन्द्र पटना शहर था। पटना के विलायत अली और इनायत अली इस आन्दोलन के प्रमुख नायक थे। यह आन्दोलन मूल रूप से मुस्लिम सुधारवादी आन्दोलन था, जो उत्तर पश्चिम, पूर्वी भारत तथा मध्य भारत में सक्रिय था।
सैय्यद अहमद की इच्छा
सैय्यद अहमद इस्लाम धर्म में हुए सभी परिवर्तनों तथा सुधारों के विरुद्ध थे। उनकी इच्छा हजरत मोहम्मद के समय के इस्लाम धर्म को पुन:स्थापित करने की थी। सैय्यद अहमद पंजाब के सिक्खों और बंगाल में अंग्रेज़ों को अपदस्थ कर मुस्लिम शक्ति को पुर्नस्थापित करने के पक्षधर थे। इन्होंने अपने अनुयायियों को शस्त्र धारण करने के लिए प्रशिक्षित कर स्वयं भी सैनिक वेशभूषा धारण की। उन्होंने पेशावर पर 1830 ई. में कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया तथा अपने नाम के सिक्के भी चलवाए। इस संगठन ने सम्पूर्ण भारत में अंग्रेज़ों के विरुद्ध भावनाओं का प्रचार-प्रसार किया।
फाँसी की सज़ा
1857 में इस आन्दोलन का नेतृत्व पीर अली ने किया था, जिन्हें कमिश्नर टेलबू ने वर्तमान एलिफिन्सटन सिनेमा के सामने एक बडे पेड़ पर लटकवाकर फांसी दिलवा दी, ताकि जनता में दहशत फैले। इनके साथ ही गुलाम अब्बास, जुम्मन, उंधु, हाजीमान, रमजान, पीर बख्श, वहीद अली, गुलाम अली, मुहम्मद अख्तर, असगर अली, नन्दलाल एवं छोटू यादव को भी फांसी पर लटका दिया गया।
विद्रोह की विफलता
1857 ई. के सिपाही विद्रोह में 'वहाबी' लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से विद्रोह में न शामिल होकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काने का प्रयास किया। 1860 ई. के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत इस विद्रोह को कुचलने में सफल रही। इस आन्दोलन के अन्य महत्त्वपूर्ण नेताओं में विलायत अली, इनायत अली, अली मौलवी, अब्दुल्ला आदि थे। 'वाहाबी विद्रोह' के बारे में यह कहा जाता है कि 'यह 1857 ई. के विद्रोह की तुलना में कहीं अधिक नियोजित, संगठित और सुव्यवस्थित था'।
|
|
|
|
|