"दिलीप कुमार": अवतरणों में अंतर

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==दिलीप कुमार के सह-अभिनेता==
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दिलीप कुमार के साथ काम करना हर कलाकार के लिए एक सपना होता है। ये सपना कम कलाकारों का ही पूरा हो पाया है क्योंकि दिलीप कुमार ने बेहद कम फिल्में की। साथ ही कुछ कलाकार उनके सामने आने से इसलिए बचते रहे क्योंकि वे दिलीप साहब के सामने कमजोर नहीं लगना चाहते थे। जिन प्रमुख कलाकारों ने उनके साथ काम किया है, वे इस प्रकार हैं :  
दिलीप कुमार के साथ काम करना हर कलाकार के लिए एक सपना होता है। ये सपना कम कलाकारों का ही पूरा हो पाया है क्योंकि दिलीप कुमार ने बेहद कम फिल्में की। साथ ही कुछ कलाकार उनके सामने आने से इसलिए बचते रहे क्योंकि वे दिलीप साहब के सामने कमजोर नहीं लगना चाहते थे। जिन प्रमुख कलाकारों ने उनके साथ काम किया है, वे इस प्रकार हैं :  

11:13, 19 दिसम्बर 2012 का अवतरण

दिलीप कुमार
दिलीप कुमार
दिलीप कुमार
पूरा नाम मोहम्मद युसूफ़ ख़ान
प्रसिद्ध नाम दिलीप कुमार
अन्य नाम ट्रेजडी किंग, दिलीप साहब
जन्म 11 दिसंबर, 1922
जन्म भूमि पेशावर (अब पाकिस्तान में)
पति/पत्नी सायरा बानो
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म अभिनेता
मुख्य फ़िल्में दाग़ (1954), आज़ाद (1956), देवदास (1957), नया दौर (1958), मुग़ल-ए-आज़म (1960), लीडर (1965), राम और श्याम (1968), शक्ति (1983) आदि
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, निशान-ए-इम्तियाज[1]
नागरिकता भारतीय

दिलीप कुमार (अंग्रेज़ी: Dilip Kumar, जन्म- 11 दिसंबर, 1922 पेशावर, पाकिस्तान) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता और राज्य सभा के पूर्व सदस्य है। दिलीप कुमार का वास्तविक नाम 'मोहम्मद युसुफ़ ख़ान' है। दिलीप कुमार को अपने दौर का बेहतरीन अभिनेता माना जाता है, त्रासद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हे 'ट्रेजडी किंग' भी कहा जाता था। दिलीप कुमार को भारतीय फ़िल्मों में यादगार अभिनय करने के लिए फ़िल्मों का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पद्म भूषण और पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'निशान-ए-इम्तियाज़' से सम्मानित किया गया है।

जीवन परिचय

जन्म और बचपन

दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके बचपन का नाम 'मोहम्मद युसूफ़ ख़ान था। उनके पिता का नाम लाला ग़ुलाम सरवर था जो फल बेचकर अपने परिवार का ख़र्च चलाते थे। विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका शुरुआती जीवन तंगहाली में ही गुजरा। पिता के व्यापार में घाटा होने के कारण वह पुणे की एक कैंटीन में काम करने लगे थे। यहीं देविका रानी की पहली नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने दिलीप कुमार को अभिनेता बना दिया। देविका रानी ने ही 'युसूफ़ ख़ान' की जगह उनका नया नाम 'दिलीप कुमार' रखा। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।[2]

फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत

दिलीप कुमार ने फ़िल्म “ज्वार भाटा” से अपने फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत की। हालांकि यह फ़िल्म सफल नहीं रही। उनकी पहली हिट फ़िल्म “जुगनू” थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म ने बॉलिवुड में दिलीप कुमार को हिट फ़िल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1949 में फ़िल्म “अंदाज” में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया। यह फ़िल्म एक हिट साबित हुई। दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहाँगीर की भूमिका निभाई। “राम और श्याम” में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया दोहरी भूमिका (डबल रोल) आज भी लोगों को गुदगुदाने में सफल साबित होता है। 1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फ़िल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं: क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज्जतदार (1990) और सौदागर (1991)। 1998 में बनी फ़िल्म “किला” उनकी आखिरी फ़िल्म थी।[2]

व्यक्तित्व

दिलीप कुमार अपने आप में सेल्फमेडमैन (स्वनिर्मित मनुष्य) की जीती-जागती मिसाल हैं। उनकी 'निजी ज़िन्दगी' हमेशा कौतुहल का विषय रही, जिसमें रोजमर्रा के सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, मिलना-बिछुड़ना, इकरार-तकरार सभी शामिल थे। ईश्वर-भीरू दिलीप कुमार को साहित्य, संगीत और दर्शन की अभिरुचि ने गंभीर और प्रभावशाली हस्ती बना दिया।[3]

अभिनय सम्राट

दिलीप कुमार (फ़िल्म- मुग़ले आज़म)

शहीद, अंदाज, आन, देवदास, नया दौर, मधुमती, यहूदी, पैग़ाम, मुगल-ए-आजम, गंगा-जमुना, लीडर तथा राम और श्याम जैसी फ़िल्मों के सलोने नायक दिलीप कुमार स्वतंत्र भारत के पहले दो दशकों में लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे। सभ्य, सुसंस्त, कुलीन इस अभिनेता ने रंगीन और रंगहीन (श्वेत-श्याम) सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया। असफल प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में वे किसी से कम नहीं हैं। वे ट्रेजेडी किंग भी कहलाए और ऑलराउंडर भी। उनकी गिनती अतिसंवेदनशील कलाकारों में की जाती है, लेकिन दिल और दिमाग के सामंजस्य के साथ उन्होंने अपने व्यक्तित्व और जीवन को ढाला। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे। वह आज़ादी का उदयकाल था। शीघ्र ही राजकपूर और देव आनंद के आगमन से 'दिलीप-राज-देव' की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ। ये नए चेहरे आम सिने दर्शकों को मोहक लगे। इनसे पूर्व के अधिकांश हीरो प्रौढ़ नजर आते थे।[3]

अच्छे पटकथा लेखक

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि अभिनय में सबसे ज्यादा नकल दिलीप कुमार के अभिनय की ही हुई है। शायद यह कम लोगों को ही पता हो कि दिलीप कुमार अच्छे पटकथा लेखक भी हैं। अपनी इस प्रतिभा का प्रदर्शन उन्होंने फिल्म 'लीडर' में किया था। हालांकि लीडर कामयाब फिल्म नहीं थी, लेकिन उसकी कहानी ऐसी थी, जिसमें भविष्य के संकेत छिपे थे। उसमें वोट और राजनीति के सही चेहरे को दिखाया गया था। दिलीप कुमार ने फ़िल्मालय स्टूडियो में एक पेड़ के नीचे बैठकर लीडर की पटकथा लिखी थी। पूरी कहानी वोट की राजनीति और उद्योगपति-राजनीतिज्ञों के संबंधों की थी। यह तब की बात है, जब देश को आजाद हुए डेढ़ दशक हुए थे। वह पंडित नेहरू का स्वप्न-काल था। राजनीति का आज जो स्वरूप है, वह उसी समय से गंदा होने लगा था। फिल्म में आचार्य जी (मोतीलाल) वैसे ही राजनीतिक किरदार थे, जो जनता के प्रति समर्पित थे। ईमानदारी और सेवा की राजनीति करते थे और जनता को भी उसी रास्ते पर ले जाना चाहते थे। चुनाव में वोट को बेचने को अपनी जमीर बेचने के बराबर समझते थे, लेकिन दूसरी तरफ काला करने वाले उद्योगपति दीवान महेंद्रनाथ (जयंत) थे, जो आचार्य जी के विचारों को खतरनाक मानते थे। उन्हें रुपये की ताकत पर भरोसा था और वे वोटों को खरीदने के हिमायती थे। कहानी में एक अखबार था यंग लीडर, जिसके संपादक थे विजय खन्ना यानी दिलीप कुमार। यह फिल्म छोटे बजट से शुरू हुई थी और ब्लैक एंड व्हाइट में बनाने का फैसला किया गया था।

दिलीप कुमार (युवावस्था में)

बाद में विचार बदलकर बजट को बड़ा कर दिया गया। फिर भी फिल्म ज्यादा चल नहीं पाई। काफी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन फिल्म की चर्चा खूब हुई। इसी फिल्म से अमजद खान ने बतौर सहायक निर्देशक फिल्मों में प्रवेश किया था। दिलीप कुमार ने इस फिल्म में अभिनय के कई रंग दिखाए। कॉमेडी, ट्रैजिडी, चुलबुली, गंभीर, प्यार करने वाला आदि। आश्चर्य की बात तो यह है कि फिल्म न चलने के बावजूद उन्हें इस रोल के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेअर अवार्ड मिला था। इसमें शकील बदायूंनी का एक गाना था, जिसके बोल थे अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं..। इस गीत को मोहम्मद रफी ने पंडित नेहरू के समक्ष गाया था। जिस समय लीडर बननी शुरू हुई, उस समय भारत-चीन युद्ध चल रहा था। युद्ध को ध्यान में रखते हुए ही शकील बदायूंनी से यह गीत लिखने के लिए कहा गया था।[4]

सम्मान के महानायक

आज ज़्यादातर लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि इस महानायक ने सिर्फ 54 फ़िल्में क्यों की। लेकिन इसका उत्तर है दिलीप कुमार ने अपनी छवि का सदैव ध्यान रखा और अभिनय स्तर को कभी गिरने नहीं दिया। इसलिए आज तक वे अभिनय के पारसमणि बने हुए हैं जबकि धूम-धड़ाके के साथ कई सुपर स्टार, मेगा स्टार आए और आकर चले गए।दिलीप कुमार ने अभिनय के माध्यम से राष्ट्र की जो सेवा की, उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्म भूषण की उपाधि से नवाजा था और 1995 में फ़िल्म का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान 'दादा साहब फालके अवॉर्ड' भी प्रदान किया। पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें 1997 में 'निशान-ए-इम्तियाज' से नवाजा था, जो पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। 1997 में ही उन्हें भारतीय सिनेमा के बहुमूल्य योगदान देने के लिए एनटी रामाराव अवॉर्ड दिया गया, जबकि 1998 में समाज कल्याण के क्षेत्र में योगदान के लिए रामनाथ गोयनका अवॉर्ड दिया गया।[3]दिलीप कुमार का नाम सबसे ज़्यादा पुरस्कार पाने वाले भारतीय अभिनेता के रूप में "गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स" में दर्ज़ है।[5]

विवाह

दिलीप कुमार ने 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की थी। जिस समय दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी हुई थी उस समय सायरा बानो 22 साल और दिलीप साहब 44 साल के थे। आज यह जोड़ी बॉलीवुड की सबसे प्रसिद्ध जोड़ियों में से एक है। जब लोगों ने अखबारों में यह पढ़ा कि दिलीप कुमार अभिनेत्री सायरा बानो से शादी कर रहे हैं, तो वे चौंक गए। वैसे, उनका चौंकना स्वाभाविक ही था, क्योंकि शादी से पहले तक दिलीप कुमार ने सायरा बानो के साथ एक भी फिल्म नहीं की थी। दोनों में न दोस्ती थी और न ही मिलना-जुलना था। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों की उम्र में बहुत बड़ा फर्क था। एक और सच यह था कि उन दिनों फिल्मी पत्रिकाएं सायरा बानो का नाम भी उनके सहअभिनेता राजेंद्र कुमार से जोड़ रही थीं।

दिलीप-सायरा की जोड़ी

सायरा बानो उन नसीम बानो की बेटी हैं, जिन्होंने सोहराब मोदी की फिल्म पुकार में मलिका नूरजहां का किरदार निभाकर अपनी खूबसूरती से सबको चकाचौंध कर दिया था। इस फिल्म के बाद नसीम बानो के साथ परी चेहरा का विशेषण जुड़ गया। सायरा जब पढ़ाई पूरी करके मुंबई लौटीं, तो अम्मी ने सायरा को अपने कदमों पर चलाया। पुराने मित्र सुबोध मुखर्जी से कहकर जंगली की हीरोइन बनवा दिया। रातोंरात सायरा स्टार बन गई। जंगली की कामयाबी के कुछ दिनों बाद एक पार्टी में सायरा ने जब दिलीप कुमार को देखा, तो मां से कहा, अम्मी दिलीप साहब से मिलाओ न। नसीम ने मिलाया, यूसुफ साहब, यह है मेरी बेटी सायरा। सायरा ने आदाब किया। कानों में धीरे से खुश रहो के लफ्ज घुल गए। इस मुलाकात के दौरान दरअसल, सायरा ने यह सोचा था कि दिलीप कुमार जंगली की कामयाबी की बधाई देंगे, लेकिन उन्होंने दो लफ्ज बोलने के बाद कोई तवज्जो नहीं दी। अलबत्ता नसीम बानो से बात जरूर करते रहे। सायरा दिलीप कुमार की जबरदस्त फैन थीं। इतनी कि जब लंदन में स्कूली पढ़ाई कर रही थीं, तो उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में से तस्वीरें काटकर दीवारों पर चिपका लिए थे, लेकिन वे दिलीप कुमार के साथ कभी हीरोइन बनेंगी, इसकी उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी। वजह दोनों में उम्र का अंतर। शादी की बात तो सायरा के दिमाग में आने का सवाल ही नहीं था। हां, उनकी यह तमन्ना जरूर थी कि दिलीप साहब के साथ कम से कम एक फिल्म जरूर करूं।

दिलीप कुमार अपनी पत्नी सायरा बानो के साथ

दिलीप साहब से बात करने के लिए एक पार्टी में सायरा ने हैंडशेक के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन तब तक दिलीप आदाब कह चुके थे। मजबूरन सायरा को हाथ वापस लेना पड़ा। उन दिनों कुछ लोगों का मानना यह था कि सायरा के राजेंद्र कुमार से रिश्ते जुड़ने की खबरों से उनकी मां नसीम बानो परेशान थीं। राजेंद्र कुमार जुबली कुमार के नाम से कामयाब हीरो जरूर हो गए थे, लेकिन वे शादीशुदा ही नहीं, एक बेटे के बाप भी थे। कुछ लोगों ने इस रिश्ते को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की। इन सबसे परेशान हो नसीम बानो ने अपनी बेटी के हाथ पीले करने का फैसला किया। जाहिर है कि बेटी के लिए नसीम बानो कोई कद्दावर दामाद ढूंढतीं-एक ऐसा व्यक्ति, जिसका रुतबा हो, इज्जत हो और जो उनकी लाडली को वह सब दे सके, जो एक ऊंचे घराने की दुल्हन को मिलना चाहिए। इस नजरिए से दिलीप कुमार सही पसंद थे। वे कुंवारे थे और बॉलीवुड के सबसे कद्दावर आर्टिस्ट माने जाते थे। अगर कोई कसर थी, तो वह थी उम्र की, क्योंकि सायरा से वे काफी बड़े थे। सायरा को 'सस्ता खून महंगा पानी' की शूटिंग से बुलाया गया। मां की पसंद पर बेटी ने भी हां की मुहर तुरंत लगा दी। दिलीप-सायरा की शादी कराने का सारा श्रेय नसीम बानो को ही जाता है। सायरा से बात करने से पहले नसीम ने दिलीप से रिश्ते की बात की। उन्होंने कहा, पहले बेटी की रजामंदी तो ले लीजिए। नसीम बानो ने कहा, शादी! सायरा तो आपकी हीरोइन बन जाती, तो अपने को धन्य मानती। यहां तो बात हो रही है दिलीप की असली जिंदगी की हीरोइन बनने की। पहले तो सायरा को लगा कि अम्मी मजाक कर रही हैं, लेकिन जब यकीन हो गया कि बात सचमुच शादी की है और दिलीप की मंजूरी मिल चुकी है, तब तो जैसे सायरा के पंख लग गए। उन्होंने दिलीप को फोन किया। रिश्ते के लिए मुबारकबाद दी और शुक्रिया सुनकर शादी की तारीख पूछ बैठीं। जवाब मिला, सास से पूछिए। दरअसल, एक मुलाकात के दौरान नसीम बानो ने यह बताया था कि उनके मन में चार महीना पहले ही यह खयाल आया था कि सायरा के हाथ में हकीकत में शादी की मेहंदी लगे, लेकिन उन्होंने पल भर के लिए भी यह नहीं सोचा था कि उनकी तमन्ना इतनी जल्द पूरी हो जाएगी। शादी धूमधाम से हुई। दिलीप घोड़े पर सवार होकर बैंड बाजे के साथ अपने बंगले से निकल कर नसीम बानो के बंगले पर पहुंचे। काजी ने निकाह कराया। दावतें हुई सायरा के यहां और दिलीप के यहां भी। इस शादी ने सायरा बानो को अपने वक्त के सबसे बड़े अदाकार की बीवी बनने का मौका दिया। सच तो यह है कि बाद के दिनों में सायरा को अपने आइडल स्टार के साथ गोपी, सगीना, बैराग, दुनिया जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम करने का अवसर भी मिला।[6]

फ़िल्मी सूची

दिलीप कुमार के अभिनय के विभिन्न रूप
मधुबाला और दिलीप कुमार (मुग़ल ए आज़म)
अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार (फ़िल्म- शक्ति)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- नया दौर)
अशोक कुमार और दिलीप कुमार (फ़िल्म- दीदार)
राज कपूर, नर्गिस और दिलीप कुमार (फ़िल्म-अंदाज़)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- गंगा जमुना)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- कर्मा)
राज कुमार और दिलीप कुमार (फ़िल्म- सौदागर)
दिलीप कुमार और अमरीश पुरी (फ़िल्म- विधाता)
अनिल कपूर और दिलीप कुमार (फ़िल्म- मशाल)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- देवदास)
राखी गुलज़ार और दिलीप कुमार (फ़िल्म- शक्ति)
दिलीप कुमार (फ़िल्म- राम और श्याम)
वहीदा रहमान और दिलीप कुमार (फ़िल्म- दिल दिया दर्द लिया)
मनोज कुमार और दिलीप कुमार (फ़िल्म- आदमी)
दिलीप कुमार का फ़िल्मी सफ़र
वर्ष फ़िल्म का नाम चरित्र का नाम विशेष
1944 ज्वार भाटा जगदीश पहली फ़िल्म
1945 प्रतिमा
1947 मिलन रमेश
1947 जुगनू सूरज
1948 शहीद राम
1948 नदिया के पार
1948 मेला मोहन
1948 घर की इज़्ज़त चंदा
1948 अनोखा प्यार अशोक
1949 शबनम मनोज
1949 अंदाज़ दिलीप
1950 जोगन विजय
1950 बाबुल अशोक
1950 आरज़ू बादल
1951 तराना मोतीलाल
1951 हलचल किशोर
1951 दीदार शामू
1952 संगदिल शंकर
1952 दाग शंकर फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1952 आन जय तिलक
1953 शिकस्त डॉ. राम सिंह
1953 फ़ुटपाथ नोशू
1954 अमर अमरनाथ
1955 उडन खटोला
1955 इंसानियत मंगल
1955 देवदास देवदास फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1955 आज़ाद फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1957 नया दौर शंकर फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1957 मुसाफिर
1958 यहूदी प्रिंस मार्क्स
1958 मधुमती आनंद / देवन नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1959 पैग़ाम रतन लाल नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1960 कोहिनूर फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1960 मुग़ल ए आज़म प्रिंस सलीम
1961 गंगा जमुना गंगा नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1964 लीडर विजय खन्ना फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1966 दिल दिया दर्द लिया शंकर / राजासाहब नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1967 राम और श्याम राम और श्याम फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1968 संघर्ष नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1968 आदमी राजेश / राजा साहब नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1970 सगीना महतो सगीना
1970 गोपी गोपी नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1972 दास्तान अनिल / सुनील
1972 अनोखा मिलन
1974 सगीना नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1974 फिर कब मिलोगी
1976 बैराग नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1981 क्रांति संगा / क्रांति
1982 विधाता शमशेर सिंह
1982 शक्ति अश्विनी कुमार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1983 मज़दूर दीनानाथ सक्सेना
1984 दुनिया मोहन कुमार
1984 मशाल विनोद कुमार नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1986 धरम अधिकारी
1986 कर्मा विश्वनाथ प्रताप सिंह / राना
1989 कानून अपना अपना कलैक्टर जगत प्रताप सिंह
1990 इज़्ज़तदार ब्रह्मादत्त
1990 आग का दरिया
1991 सौदागर ठाकुर वीर सिंह नामित फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
1998 क़िला जगनाथ / अमरनाथ सिंह

दिलीप कुमार के सह-अभिनेता

दिलीप कुमार के साथ काम करना हर कलाकार के लिए एक सपना होता है। ये सपना कम कलाकारों का ही पूरा हो पाया है क्योंकि दिलीप कुमार ने बेहद कम फिल्में की। साथ ही कुछ कलाकार उनके सामने आने से इसलिए बचते रहे क्योंकि वे दिलीप साहब के सामने कमजोर नहीं लगना चाहते थे। जिन प्रमुख कलाकारों ने उनके साथ काम किया है, वे इस प्रकार हैं :

दिलीप कुमार के सह-अभिनेता[7]
अभिनेता फ़िल्म
अजीत नया दौर, मुगल-ए-आजम
अमिताभ बच्चन शक्ति
अनिल कपूर शक्ति, मशाल, कर्मा
अशोक कुमार दीदार, शक्ति
बलराज साहनी हलचल, संघर्ष
देव आनंद इंसानियत
गोविंदा इज्जतदार
जैकी श्रॉफ कर्मा, सौदागर
मनोज कुमार आदमी, क्रांति
नसीरुद्दीन शाह कर्मा
पृथ्वीराज कपूर मुगल-ए-आजम
राज कपूर अंदाज
राज कुमार पैगाम, सौदागर
संजय दत्त विधाता, कानून अपना-अपना
संजीव कुमार संघर्ष, विधाता
शम्मी कपूर विधाता
शशि कपूर क्रांति
शत्रुघ्न सिन्हा क्रांति

राज कपूर और देवानंद से दोस्ती

दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद

दिलीप साहब की देवानंद और राज कपूर दोनों से दोस्ती थी। लेकिन राज साहब के साथ उनके बड़े नज़दीकी रिश्ते थे। दोनों ही पाकिस्तान के पेशावर शहर में एक ही मोहल्ले, एक ही सड़क के रहने वाले थे। बिलकुल भाइयों जैसा रिश्ता था उनका। देव साहब थोड़ा अलग किस्म के शख़्स थे, लेकिन उनके साथ भी साहब ने बड़ी दोस्ती निभाई। एक बार देव अपनी फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' की शूटिंग के सिलसिले में मुमताज के साथ काठमांडू जा रहे थे, तब किसी पार्टी ने मुसीबत खड़ी कर दी और ऐलान किया कि वो इस फिल्म की शूटिंग नहीं होने देंगे। वो लोग देव को रोकने एयरपोर्ट तक पहुंच गए, तब दिलीप जी एयरपोर्ट तक गए और देव की हिफाज़त में वहां खड़े रहे। सायरो बानो और दिलीप साहब दोनों ने फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों को इकट्ठा किया और देव के लिए एयरपोर्ट में जाकर डट गए। तब जाकर सही सलामत देव काठमांडू रवाना हो सके।[8]

फ़िल्मफेयर पुरस्कार

1953 में फ़िल्म फेयर पुरस्कारों के श्रीगणेश के साथ दिलीप कुमार को फ़िल्म 'दाग' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार‍ दिया था। अपने जीवनकाल में दिलीप कुमार कुल आठ बार फ़िल्म फेयर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पा चुके हैं और यह एक कीर्तिमान है जिसे अभी तक तोड़ा नहीं जा सका। अंतिम बार उन्हें सन् 1982 में फ़िल्म 'शक्ति' के लिए यह इनाम दिया गया था, जबकि फ़िल्म फेयर ने ही उन्हें 1993 में राज कपूर की स्मृति में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया। फ़िल्म फेयर ने जिन छह अन्य फ़िल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया वे हैं आज़ाद (1955), देवदास (1956), नया दौर (1957), कोहिनूर (1960), लीडर (1964) तथा राम और श्याम (1967)।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'निशान-ए-इम्तियाज' पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
  2. 2.0 2.1 बॉलिवुड के असली महानायक – दिलीप कुमार (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 18 सितंबर, 2011।
  3. 3.0 3.1 3.2 3.3 दिलीप कुमार : एक महानायक की गाथा (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 18 सितंबर, 2011।
  4. अच्छे स्क्रिप्ट राइटर भी है दिलीप कुमार (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 18 दिसम्बर, 2012।
  5. Dilip Kumar on TV show?
  6. दिलीप-सायरा: शादी से लोग चौंक गये थे (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 18 दिसम्बर, 2012।
  7. दिलीप कुमार : सह अभिनेता (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 18 दिसम्बर, 2012।
  8. दिलीप की कहानी बेगम की ज़ुबानी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) बी.बी.सी हिंदी। अभिगमन तिथि: 18 दिसम्बर, 2012।

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