"के. आसिफ़": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) (''''के. आसिफ़''' (अंग्रेज़ी: ''K. Asif'', पूरा नाम: करीम आसिफ़, जन...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
करीम आसिफ का जन्म [[14 जून]] [[1922]] को [[उत्तर प्रदेश]] के [[इटावा]] में हुआ था। पिता का नाम डॉ. फ़ज़ल करीम और माँ का नाम बीबी ग़ुलाम फ़ातिमा था। के. आसिफ ज्यादा पढ़े-लिखे नही थे। खुद उन्होंने भी कभी शिक्षित होने का दावा नहीं किया। बावजूद इसके वे महान फिल्मकार बने और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय [[सिनेमा]] के मंच पर अपनी एक अलग पहचान और जगह कायम की। एक मामूली कपड़े सिलने वाले दर्जी के रूप में उन्होंने अपना कॅरियर शुरू किया था। बाद में लगन और मेहनत से निर्माता-निर्देशक बन गए। अपने तीस साल के लम्बे फिल्म कॅरियर में के आसिफ ने सिर्फ तीन मुकम्मल फिल्में बनाई- फूल (1945), हलचल (1951) और मुग़ल-ए-आज़म (1960)। ये तीनों ही बड़ी फिल्में थीं और तीनों में सितारे भी बड़े थे। 'फूल' जहां अपने [[युग]] की सबसे बड़ी फिल्म थी, वहीं 'हलचल' ने भी अपने समय में काफी हलचल मचाई थी और मुग़ल-ए-आज़म तो हिंदी फिल्म जगत इतिहास का [[शिलालेख]] है। मोहब्बत को के.आसिफ कायनात की सबसे बड़ी दौलत मानते थे। इसी विचार को कैनवास पर लाते, अगर वे [[चित्रकार]] होते। इसी विचार को पर्दे पर लाने के लिए उन्होंने मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण किया।<ref name="डेली न्यूज़">{{cite web |url=http://www.dailynewsnetwork.in/news/fmclassic/04032012/FM-Classic/57191.html |title=भारतीय सिनेमा के मूवी-मुगल |accessmonthday=21 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=डेली न्यूज़ |language=हिंदी }} </ref> | करीम आसिफ का जन्म [[14 जून]] [[1922]] को [[उत्तर प्रदेश]] के [[इटावा]] में हुआ था। पिता का नाम डॉ. फ़ज़ल करीम और माँ का नाम बीबी ग़ुलाम फ़ातिमा था। के. आसिफ ज्यादा पढ़े-लिखे नही थे। खुद उन्होंने भी कभी शिक्षित होने का दावा नहीं किया। बावजूद इसके वे महान फिल्मकार बने और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय [[सिनेमा]] के मंच पर अपनी एक अलग पहचान और जगह कायम की। एक मामूली कपड़े सिलने वाले दर्जी के रूप में उन्होंने अपना कॅरियर शुरू किया था। बाद में लगन और मेहनत से निर्माता-निर्देशक बन गए। अपने तीस साल के लम्बे फिल्म कॅरियर में के आसिफ ने सिर्फ तीन मुकम्मल फिल्में बनाई- फूल (1945), हलचल (1951) और मुग़ल-ए-आज़म (1960)। ये तीनों ही बड़ी फिल्में थीं और तीनों में सितारे भी बड़े थे। 'फूल' जहां अपने [[युग]] की सबसे बड़ी फिल्म थी, वहीं 'हलचल' ने भी अपने समय में काफी हलचल मचाई थी और मुग़ल-ए-आज़म तो हिंदी फिल्म जगत इतिहास का [[शिलालेख]] है। मोहब्बत को के.आसिफ कायनात की सबसे बड़ी दौलत मानते थे। इसी विचार को कैनवास पर लाते, अगर वे [[चित्रकार]] होते। इसी विचार को पर्दे पर लाने के लिए उन्होंने मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण किया।<ref name="डेली न्यूज़">{{cite web |url=http://www.dailynewsnetwork.in/news/fmclassic/04032012/FM-Classic/57191.html |title=भारतीय सिनेमा के मूवी-मुगल |accessmonthday=21 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=डेली न्यूज़ |language=हिंदी }} </ref> | ||
== | ==फ़िल्मी सफ़र== | ||
;निर्देशक | |||
# फूल (1945) | # फूल (1945) | ||
# [[मुग़ल-ए-आज़म]] (1960) | # [[मुग़ल-ए-आज़म]] (1960) | ||
# लव एण्ड गॉड (1986) (अधूरी) | |||
;निर्माता | |||
# हलचल (1951) | # हलचल (1951) | ||
# | # मुग़ल-ए-आज़म (1960) | ||
==मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण== | ==मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण== | ||
वे यह जानते हुए भी कि इसी विषय पर अनारकली जैसी फिल्म बन चुकी है, के. आसिफ़ रत्तीभर भी विचलित नहीं हुए। उनका आत्म-विश्वास इस फिल्म के बारे में कितना जबरदस्त था, यह बाद में फिल्म ने साबित करके दिखा दिया। भव्य सैट, नाम कलाकर और मधुर संगीत की त्रिवेणी मुग़ल-ए-आज़म की सफलता के राज हैं। [[शकील बदायूँनी]] ने इस फिल्म में 12 गीत लिखे। नौशाद के संगीत में नहाकर [[बड़े ग़ुलाम अली खां]], [[लता मंगेशकर]], शमशाद बेगम, [[मोहम्मद रफ़ी]] की आवाज़ का जादू फिल्म के प्राण हैं। [[पृथ्वीराज कपूर]], [[दिलीप कुमार]] और [[मधुबाला]] के फिल्मी जीवन की यह सर्वोत्तम कृति है। महान फिल्मों की श्रेणी में मुग़ल-ए-आज़म वाकई महान है।<ref name="डेली न्यूज़"/> | वे यह जानते हुए भी कि इसी विषय पर अनारकली जैसी फिल्म बन चुकी है, के. आसिफ़ रत्तीभर भी विचलित नहीं हुए। उनका आत्म-विश्वास इस फिल्म के बारे में कितना जबरदस्त था, यह बाद में फिल्म ने साबित करके दिखा दिया। भव्य सैट, नाम कलाकर और मधुर संगीत की त्रिवेणी मुग़ल-ए-आज़म की सफलता के राज हैं। [[शकील बदायूँनी]] ने इस फिल्म में 12 गीत लिखे। [[नौशाद]] के संगीत में नहाकर [[बड़े ग़ुलाम अली खां]], [[लता मंगेशकर]], शमशाद बेगम, [[मोहम्मद रफ़ी]] की आवाज़ का जादू फिल्म के प्राण हैं। [[पृथ्वीराज कपूर]], [[दिलीप कुमार]] और [[मधुबाला]] के फिल्मी जीवन की यह सर्वोत्तम कृति है। महान फिल्मों की श्रेणी में मुग़ल-ए-आज़म वाकई महान है।<ref name="डेली न्यूज़"/> | ||
==अधूरी रही 'लव एण्ड गॉड'== | ==अधूरी रही 'लव एण्ड गॉड'== | ||
मुग़ल-ए-आज़म के बाद के. आसिफ ने लव एण्ड गॉड नामक भव्य फिल्म की शुरूआत की। वैसे तो के. आसिफ कोई बड़े धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, मगर मोहब्बत और खुदा में वे लैला-मजनूं की पुरानी भावना-प्रधान प्रेम कहानी के द्वारा दुनिया को कुछ ऎसा ही आनंद प्रदान करने वाला दर्शन देना चाहते थे। इस फिल्म को अपने जीवन का महान स्वप्न बनाने के लिए उन्होंने बहुत पापड़ भी बेले, मगर फिल्म के नायक [[गुरुदत्त]] की असमय मौत के कारण फिल्म रुक गई। फिर उन्होंने बड़े सितारों को लेकर एक और बड़ी फिल्म- सस्ता खून महंगा पानी शुरू की। किन्हीं कारणों वश बाद में यह फिल्म भी बंद हो गई। तत्पश्चात उन्होंने लव एण्ड गॉड फिर से शुरू की, जिसमें गुरुदत्त की जगह [[संजीव कुमार]] को लिया गया। इससे पहले कि के. आसिफ यह फिल्म पूरी कर पाते [[9 मार्च]] [[1971]] को दिल का दौरा पड़ने से उनका दुखद निधन हो गया। लव एण्ड गॉड को आसिफ जितना बना गए थे, उसे उसी रूप में उनकी पत्नी श्रीमती अख्तर आसिफ ने निर्माता-निर्देशक केसी बोकाडिया के सहयोग से [[1986]] में प्रदर्शित किया। अधूरी लव एण्ड गॉड देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि के. आसिफ इस फिल्म को कैसा रूप देना चाहते थे। अगर यह फिल्म उनके हाथों से पूर्ण हो जाती, तो निश्चित ही वह भी एक यादगार फिल्म बन जाती।<ref name="डेली न्यूज़"/> | मुग़ल-ए-आज़म के बाद के. आसिफ ने लव एण्ड गॉड नामक भव्य फिल्म की शुरूआत की। वैसे तो के. आसिफ कोई बड़े धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, मगर मोहब्बत और खुदा में वे लैला-मजनूं की पुरानी भावना-प्रधान प्रेम कहानी के द्वारा दुनिया को कुछ ऎसा ही आनंद प्रदान करने वाला दर्शन देना चाहते थे। इस फिल्म को अपने जीवन का महान स्वप्न बनाने के लिए उन्होंने बहुत पापड़ भी बेले, मगर फिल्म के नायक [[गुरुदत्त]] की असमय मौत के कारण फिल्म रुक गई। फिर उन्होंने बड़े सितारों को लेकर एक और बड़ी फिल्म- सस्ता खून महंगा पानी शुरू की। किन्हीं कारणों वश बाद में यह फिल्म भी बंद हो गई। तत्पश्चात उन्होंने लव एण्ड गॉड फिर से शुरू की, जिसमें गुरुदत्त की जगह [[संजीव कुमार]] को लिया गया। इससे पहले कि के. आसिफ यह फिल्म पूरी कर पाते [[9 मार्च]] [[1971]] को दिल का दौरा पड़ने से उनका दुखद निधन हो गया। लव एण्ड गॉड को आसिफ जितना बना गए थे, उसे उसी रूप में उनकी पत्नी श्रीमती अख्तर आसिफ ने निर्माता-निर्देशक केसी बोकाडिया के सहयोग से [[1986]] में प्रदर्शित किया। अधूरी लव एण्ड गॉड देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि के. आसिफ इस फिल्म को कैसा रूप देना चाहते थे। अगर यह फिल्म उनके हाथों से पूर्ण हो जाती, तो निश्चित ही वह भी एक यादगार फिल्म बन जाती।<ref name="डेली न्यूज़"/> | ||
==फ़िल्म बनाने का शाही अंदाज़== | ==फ़िल्म बनाने का शाही अंदाज़== | ||
के. आसिफ को फिल्म कला से सामान्य रूप में और अपनी फिल्म से विशेष रूप से ऐसा लगाव था, जैसे लगन में पूजा जैसी पवित्रता और जुनून की सीमाओं तक बढ़ती हुई एकाग्रता थी। अपनी इन्हीं खूबियों की बदौलत वे मूवी-मुगल के नाम से मशहूर हुए। कई लोग उन्हें भारतीय फिल्म जगत के सिसिल बी. डिमिल भी कहते हैं। के. आसिफ की एक विशेषता यह भी थी कि वे एक फिल्म के निर्माण में वर्षों लगा देते थे। कई बार आधी से अधिक फिल्म बनाकर उसे रद्द कर देना और फिर से शूटिंग करना उनकी आदत में शुमार था। जिस शान-ओ-शौकत से वे फिल्में बनाते थे और जिस शाही अंदाज में खर्च करते थे, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।<ref name="डेली न्यूज़"/> | के. आसिफ को फिल्म कला से सामान्य रूप में और अपनी फिल्म से विशेष रूप से ऐसा लगाव था, जैसे लगन में पूजा जैसी पवित्रता और जुनून की सीमाओं तक बढ़ती हुई एकाग्रता थी। अपनी इन्हीं खूबियों की बदौलत वे मूवी-मुगल के नाम से मशहूर हुए। कई लोग उन्हें भारतीय फिल्म जगत के सिसिल बी. डिमिल भी कहते हैं। के. आसिफ की एक विशेषता यह भी थी कि वे एक फिल्म के निर्माण में वर्षों लगा देते थे। कई बार आधी से अधिक फिल्म बनाकर उसे रद्द कर देना और फिर से शूटिंग करना उनकी आदत में शुमार था। जिस शान-ओ-शौकत से वे फिल्में बनाते थे और जिस शाही अंदाज में खर्च करते थे, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।<ref name="डेली न्यूज़"/> | ||
==सम्मान और पुरस्कार== | |||
* 1960 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - मुग़ल-ए-आज़म | |||
* 1960: सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रपति द्वारा रजत पदक - मुग़ल-ए-आज़म | |||
==निधन== | ==निधन== | ||
फ़िल्म 'लव एण्ड गॉड' को बनाते समय दिल का दौरा पड़ने के कारण [[9 मार्च]] [[1971]] को के. आसिफ़ का दुखद निधन हो गया। | फ़िल्म 'लव एण्ड गॉड' को बनाते समय दिल का दौरा पड़ने के कारण [[9 मार्च]] [[1971]] को के. आसिफ़ का दुखद निधन हो गया। |
07:45, 21 दिसम्बर 2012 का अवतरण
के. आसिफ़ (अंग्रेज़ी: K. Asif, पूरा नाम: करीम आसिफ़, जन्म: 14 जून 1922 – मृत्यु: 9 मार्च 1971) हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा की सर्वकालिक क्लासिक फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म बनाई थी। बहुत कम फिल्में और बहुत ज्यादा प्रसिद्धि हासिल करने वाले फिल्मकारों में के. आसिफ का नाम शायद अकेला है। भारतीय फिल्म जगत के इस महान फिल्मकार का पूरा नाम करीम आसिफ था।
जीवन परिचय
करीम आसिफ का जन्म 14 जून 1922 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था। पिता का नाम डॉ. फ़ज़ल करीम और माँ का नाम बीबी ग़ुलाम फ़ातिमा था। के. आसिफ ज्यादा पढ़े-लिखे नही थे। खुद उन्होंने भी कभी शिक्षित होने का दावा नहीं किया। बावजूद इसके वे महान फिल्मकार बने और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर अपनी एक अलग पहचान और जगह कायम की। एक मामूली कपड़े सिलने वाले दर्जी के रूप में उन्होंने अपना कॅरियर शुरू किया था। बाद में लगन और मेहनत से निर्माता-निर्देशक बन गए। अपने तीस साल के लम्बे फिल्म कॅरियर में के आसिफ ने सिर्फ तीन मुकम्मल फिल्में बनाई- फूल (1945), हलचल (1951) और मुग़ल-ए-आज़म (1960)। ये तीनों ही बड़ी फिल्में थीं और तीनों में सितारे भी बड़े थे। 'फूल' जहां अपने युग की सबसे बड़ी फिल्म थी, वहीं 'हलचल' ने भी अपने समय में काफी हलचल मचाई थी और मुग़ल-ए-आज़म तो हिंदी फिल्म जगत इतिहास का शिलालेख है। मोहब्बत को के.आसिफ कायनात की सबसे बड़ी दौलत मानते थे। इसी विचार को कैनवास पर लाते, अगर वे चित्रकार होते। इसी विचार को पर्दे पर लाने के लिए उन्होंने मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण किया।[1]
फ़िल्मी सफ़र
- निर्देशक
- फूल (1945)
- मुग़ल-ए-आज़म (1960)
- लव एण्ड गॉड (1986) (अधूरी)
- निर्माता
- हलचल (1951)
- मुग़ल-ए-आज़म (1960)
मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण
वे यह जानते हुए भी कि इसी विषय पर अनारकली जैसी फिल्म बन चुकी है, के. आसिफ़ रत्तीभर भी विचलित नहीं हुए। उनका आत्म-विश्वास इस फिल्म के बारे में कितना जबरदस्त था, यह बाद में फिल्म ने साबित करके दिखा दिया। भव्य सैट, नाम कलाकर और मधुर संगीत की त्रिवेणी मुग़ल-ए-आज़म की सफलता के राज हैं। शकील बदायूँनी ने इस फिल्म में 12 गीत लिखे। नौशाद के संगीत में नहाकर बड़े ग़ुलाम अली खां, लता मंगेशकर, शमशाद बेगम, मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ का जादू फिल्म के प्राण हैं। पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला के फिल्मी जीवन की यह सर्वोत्तम कृति है। महान फिल्मों की श्रेणी में मुग़ल-ए-आज़म वाकई महान है।[1]
अधूरी रही 'लव एण्ड गॉड'
मुग़ल-ए-आज़म के बाद के. आसिफ ने लव एण्ड गॉड नामक भव्य फिल्म की शुरूआत की। वैसे तो के. आसिफ कोई बड़े धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, मगर मोहब्बत और खुदा में वे लैला-मजनूं की पुरानी भावना-प्रधान प्रेम कहानी के द्वारा दुनिया को कुछ ऎसा ही आनंद प्रदान करने वाला दर्शन देना चाहते थे। इस फिल्म को अपने जीवन का महान स्वप्न बनाने के लिए उन्होंने बहुत पापड़ भी बेले, मगर फिल्म के नायक गुरुदत्त की असमय मौत के कारण फिल्म रुक गई। फिर उन्होंने बड़े सितारों को लेकर एक और बड़ी फिल्म- सस्ता खून महंगा पानी शुरू की। किन्हीं कारणों वश बाद में यह फिल्म भी बंद हो गई। तत्पश्चात उन्होंने लव एण्ड गॉड फिर से शुरू की, जिसमें गुरुदत्त की जगह संजीव कुमार को लिया गया। इससे पहले कि के. आसिफ यह फिल्म पूरी कर पाते 9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने से उनका दुखद निधन हो गया। लव एण्ड गॉड को आसिफ जितना बना गए थे, उसे उसी रूप में उनकी पत्नी श्रीमती अख्तर आसिफ ने निर्माता-निर्देशक केसी बोकाडिया के सहयोग से 1986 में प्रदर्शित किया। अधूरी लव एण्ड गॉड देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि के. आसिफ इस फिल्म को कैसा रूप देना चाहते थे। अगर यह फिल्म उनके हाथों से पूर्ण हो जाती, तो निश्चित ही वह भी एक यादगार फिल्म बन जाती।[1]
फ़िल्म बनाने का शाही अंदाज़
के. आसिफ को फिल्म कला से सामान्य रूप में और अपनी फिल्म से विशेष रूप से ऐसा लगाव था, जैसे लगन में पूजा जैसी पवित्रता और जुनून की सीमाओं तक बढ़ती हुई एकाग्रता थी। अपनी इन्हीं खूबियों की बदौलत वे मूवी-मुगल के नाम से मशहूर हुए। कई लोग उन्हें भारतीय फिल्म जगत के सिसिल बी. डिमिल भी कहते हैं। के. आसिफ की एक विशेषता यह भी थी कि वे एक फिल्म के निर्माण में वर्षों लगा देते थे। कई बार आधी से अधिक फिल्म बनाकर उसे रद्द कर देना और फिर से शूटिंग करना उनकी आदत में शुमार था। जिस शान-ओ-शौकत से वे फिल्में बनाते थे और जिस शाही अंदाज में खर्च करते थे, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।[1]
सम्मान और पुरस्कार
- 1960 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - मुग़ल-ए-आज़म
- 1960: सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रपति द्वारा रजत पदक - मुग़ल-ए-आज़म
निधन
फ़िल्म 'लव एण्ड गॉड' को बनाते समय दिल का दौरा पड़ने के कारण 9 मार्च 1971 को के. आसिफ़ का दुखद निधन हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 भारतीय सिनेमा के मूवी-मुगल (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) डेली न्यूज़। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख