"मनमोहन सिंह": अवतरणों में अंतर

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==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
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मनमोहन सिंह लोकसभा चुनाव [[2009]] में मिली जीत के बाद [[जवाहरलाल नेहरू]] के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं जिनको सफलतापूर्वक पाँच वर्षों का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार प्रधानमंत्री बनने का दूसरी बार अवसर मिला है। [[21 जून]] [[1991]] से [[16 मई]] [[1996]] तक मनमोहन सिंह ने [[नरसिंह राव]] के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। मनमोहन सिंह [[28 फ़रवरी]] को सउदी अरब की यात्रा पर गए। [[1982]] के बाद सउदी अरब की यात्रा करने वाले मनमोहन सिंह पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं।
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==शिक्षा==
==शिक्षा==

14:41, 17 जनवरी 2013 का अवतरण

मनमोहन सिंह
पूरा नाम डॉ. मनमोहन सिंह
जन्म 26 सितंबर सन् 1932 ई.
जन्म भूमि पंजाब, पाकिस्तान
पति/पत्नी गुरशरण कौर
संतान तीन बेटियाँ, श्रीमती दमन सिंह
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद भारत के 17वें प्रधानमंत्री
कार्य काल 22 मई 2004 से मई 2009, 22 मई 2009 से वर्तमान
शिक्षा बी.ए. (ऑनर्स), एम.ए. (इकॉनॉमिक्स), पी. एच. डी., डी.फिल.
विद्यालय पंजाब विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, नफील्ड कॉलेज (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी)
पुरस्कार-उपाधि 'पद्म विभूषण', जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का ऐडम स्मिथ पुरस्कार
रचनाएँ इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ
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मनमोहन सिंह (अंग्रेज़ी: Manmohan Singh, जन्म: 26 सितंबर, 1932) भारत के 13वें और वर्तमान प्रधानमंत्री हैं। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले पहले सिख हैं। मनमोहन सिंह की अपने कुशल और ईमानदार छवि के कारण सभी राजनीतिक दलों में अच्छी साख है। जब कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 2004 के चुनाव के बाद बहुमत मिला तो मनमोहन सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की इच्छा से प्रधानमंत्री चुना गया था।

जीवन परिचय

भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म पाकिस्तान में 26 सितंबर सन् 1932 ई. को 'गाह' नामक गाँव में हुआ था। गाह अब पाकिस्तान के पंजाब सूबे में स्थित है। उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था। देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत चला आया। मनमोहन सिंह एक कुशल राजनेता के साथ-साथ एक अच्छे विद्वान, अर्थशास्त्री और विचारक भी हैं। मनमोहन सिंह की पत्नी का नाम गुरशरण कौर है। श्रीमती दमन सिंह सहित मनमोहन सिंह की तीन बेटियाँ हैं। मनमोहन सिंह में चतुर एवं बुद्धिमानी के गुण हैं। मनमोहन सिंह ने अपनी बुद्धिमानी से कई उच्च पद की गरिमा को बनाए रखा है।[1] मनमोहन सिंह लोकसभा चुनाव 2009 में मिली जीत के बाद जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं जिनको सफलतापूर्वक पाँच वर्षों का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार प्रधानमंत्री बनने का दूसरी बार अवसर मिला है। 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक मनमोहन सिंह ने नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मंत्री के रूप में भी कार्य किया है। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। मनमोहन सिंह 28 फ़रवरी को सउदी अरब की यात्रा पर गए। 1982 के बाद सउदी अरब की यात्रा करने वाले मनमोहन सिंह पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं।

शिक्षा

मनमोहन सिंह ने सन् 1952 ई. में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से बीए (ऑनर्स) किया और अव्वल रहे थे। सन् 1954 में मनमोहन सिंह ने इसी यूनिवर्सिटी से एम. ए. इकॉनॉमिक्स से किया और फिर अव्वल रहे। मनमोहन सिंह इसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये। जहाँ से उन्होंने पी. एच. डी. की। मनमोहन सिंह को सन् 1955 और 1957 में कैंब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 'राइट्स पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। मनमोहन सिंह ने 'नफील्ड कॉलेज' (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी) से डी. फिल. पास किया। उनकी पुस्तक 'इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ' भारत के अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है।

व्यावसायिक जीवन

मनमोहन सिंह को पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ ने अर्थशास्त्र विभाग में व्याख्याता नियुक्त किया। फिर 14 सितम्बर, 1958 में इनका विवाह गुरशरण कौर के साथ सम्पन्न हुआ। इनकी तीन पुत्रियाँ हैं। पंजाब विश्वविद्यालय में इनका सफल अध्यापन जारी रहा और यह प्रोफ़ेसर के पद पर पहुँच गए। अध्यापन कौशल के कारण इनका सम्मान काफ़ी था। इन्होंने दो वर्ष तक 'दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स' में भी अध्यापन कार्य किया। वह दिल्ली विश्वविद्यालय में 1976 में मानद प्राध्यापक भी बने। इस समय तक डॉक्टर मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री के रूप में काफ़ी प्रसिद्ध हो चुके थे। विदेशी में भी इनका सम्मान था। वह अर्थशास्त्र पर व्याख्यान देने के लिए विदेशों में भी बुलाए गए। इनकी प्रतिभा को इंदिरा गांधी ने सम्मानित किया। वह 'रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया' के गवर्नर भी बनाए गए। यह पद सम्भालने के लिए व्यक्ति को अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग की जानकारी होने के अतिरिक्त मुद्रा विनिमय का भी ज्ञान आवश्यक होता है। उन्होंने जनवरी 1985 तक उपरोक्त पद पर रहकर प्रशासनिक निपुणता का परिचय दिया।

राजनीतिक जीवन

1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को 'योजना आयोग' का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने निरन्तर पाँच वर्षों तक कार्य किया, जबकि 1990 में यह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति होते हुए भी डॉ. मनमोहन सिंह को राजनीतिज्ञ पसन्द करते थे। कांग्रेस ने यह महसूस कर लिया था कि मनमोहन सिंह बेहद प्रतिभाशाली हैं, अत: उनकी प्रतिभा का लाभ देश को प्राप्त करना चाहिए। यही कारण है कि जब पी. वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह को 1991 में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ. मनमोहन सिंह न तो लोकसभा के सदस्य थे और न ही राज्यसभा के। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें 1991 में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया। जबकि यह मूलत: पंजाब के निवासी हैं। लेकिन यह परिपाटी इसके पहले भी प्रचलन में थी। राज्यसभा के कई सदस्य उन राज्यों से नहीं हैं, जहाँ उनका मूल निवास है।

डॉ. मनमोहन सिंह
Dr. Manmohan Singh

पी. वी. नरसिम्हा राव ने एक हीरे को पहचाना था, जिसका नाम मनमोहन सिंह था। श्री सिंह ने भी उन्हें निराश नहीं किया। उन्होंने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ. मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सरकारी समाजवाद का जो स्वप्न देखा था, उसे डॉ. मनमोहन सिंह ने निजी उद्योगों द्वारा साकार किया। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा। विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा। मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे। यही कारण है कि वर्ष 2002 में मनमोहन सिंह को 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' की उपाधि भी प्रदान की गई। इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।

पद

मनमोहन सिंह पहले पंजाब यूनिवर्सिटी और बाद में 'दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स' में प्रोफेसर के पद पर थे। 1971 में मनमोहन सिंह भारत सरकार की 'कॉमर्स मिनिस्ट्री' में आर्थिक सलाहकार के तौर पर शामिल हुए थे। 1972 में मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय में चीफ इकॉनॉमिक अडवाइज़र बन गए। अन्य जिन पदों पर वह रहे, वे हैं– वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष। मनमोहन सिंह 1991 से राज्यसभा के सदस्य हैं। 1998 से 2004 में वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे।[2]

प्रधानमंत्री पद पर

मनमोहन सिंह 72 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनाए गए। इन्होंने स्वप्न में भी यह कल्पना नहीं की थी कि वे देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं। वस्तुत: अखिल भारतीय कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने विपक्ष का विरोध देखते हुए स्वयं प्रधानमंत्री बनने से इंकार करके मनमोहन सिंह को भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में अनुमोदित किया था। डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई, 2004 से प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरम्भ किया, जो अप्रैल 2009 में सफलता के साथ पूर्ण हुआ। इसके पश्चात् लोकसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस पुन: विजयी हुई। इस कारण मनमोहन सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। यद्यपि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने स्वास्थ्य का काफ़ी ध्यान रखते हैं तथापि दो बार इनकी बाईपास सर्जरी हुई है। दूसरी बार फ़रवरी 2009 में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सकों की टीम ने एम्स में इनकी सर्जरी की है। अब यह स्वस्थ हैं और मार्च 2009 से प्रधानमंत्री कार्यालय के कार्यों को पूरी ऊर्जा के साथ देख रहे हैं। वह 1 मार्च, 2009 को रूटीन चैकअप के लिए 'एम्स' गए और उन्हें पूर्ण रूप से स्वस्थ पाया गया। प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह बैठकों, गोष्ठियों और सम्मेलनों में हिस्सा लेते रहे हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह
Dr. Manmohan Singh

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा था, जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया। लेकिन 2009 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला। परन्तु भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मज़बूत होने के कारण उसे उतना नुक़सान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को उठाना पड़ा है। विश्व स्तर की मंदी की मार ने वहाँ के कई बैंकों तथा उद्योगों को बिल्कुल बर्बाद कर दिया। 26 नवम्बर, 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकियों ने हमला किया। दिल दहला देने वाले उस हमले ने देश को हिलाकर रख दिया था। तब मनमोहन सिंह ने केन्द्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल को हटाकर पी. चिदम्बरम को गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी और प्रणब मुखर्जी को नया वित्त मंत्री बना दिया। इस प्रकार श्री सिंह सामयिक और दूरदर्शितापूर्ण फ़ैसले अपने कार्यकाल के दौरान लेते रहे हैं।

कृषि सुधार

भारत एक कृषि प्रधान देश है। मनमोहन सिंह ने भारतीय उद्योगों के साथ कृषि की दशा को भी उन्नत करने का प्रयास किया। देश की सिंचाई व्यवस्था में अपेक्षित सुधार की ज़रूरत है, इस कारण मनोवांछित उन्नति नहीं हुई, लेकिन किसानों के लिए फ़सलों का समर्थित मूल्य बढ़ाया गया, ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके। यद्यपि महाराष्ट्र में किसानों के द्वारा की गई आत्महत्याएँ देश की कृषि व्यवस्था को चौपट बताती हैं।

गाँवों में रोज़गार

फ़रवरी 2006 में गाँवों में रोज़गार योजना का श्रीगणेश हैदराबाद से किया गया। गाँवों में रोज़गार की भीषण समस्या है। इस कारण 'ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम' के अंतर्गत देश के प्रत्येक ग्रामीण बेरोज़गार को एक वर्ष में 100 दिन का रोज़गार प्रदान करने का कार्यक्रम बनाया गया है। लेकिन राज्य सरकारों की यह ज़िम्मेदारी है कि केन्द्र द्वारा प्रदान किए जा रहे धन का निवेश इस योजना में कुशलता के साथ करके कार्यक्रम को सफल बनाएँ। इस प्रकार सामाजिक सरोकार की योजनाओं को प्रशासनिक स्तर पर लागू किया जा सकता है। यहाँ इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस योजना से अधिकाधिक ग्रामीणों को फ़ायदा हो। इस योजना ने अब तक बेहद सफलता के साथ निर्धारित लक्ष्य प्राप्त किया है। विपक्ष ने इसे लोकलुभावनी योजना बताई जो चुनाव को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी।

चहुँमुखी विकास

डॉ. मनमोहन सिंह अपनी पत्नी के गुरशरण कौर के साथ (साभार- आउटलुक)

डॉ. मनमोहन सिंह ने देश के चहुँमुखी विकास के लिए अनेकानेक क्षेत्रों को स्पर्श किया है। उन्होंने देश के हवाई अड्डों में वांछित सुधार लाने के लिए उन्हें निजी हाथों में सौंपने का फ़ैसला किया। इसके लिए एक पारदर्शी नीति के अंतर्गत उन कम्पनियों को उत्तरदायित्व सौंपा गया जो खुली बोली लगाकर उसे निभाने में प्रस्तुत हुई। यद्यपि इसका व्यापक विरोध भी किया गया, लेकिन मनमोहन सिंह ने विरोधों को दरकिनार करते हुए दिल्ली एवं मुम्बई के हवाई अड्डों के विकास की योजना निजी हाथों में सौंप दी। इसके अलावा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने निरन्तर घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या को भी सीमित करने का कार्य किया। देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बने सार्वजनिक उपक्रमों का आर्थिक उपचार करने से अब वे मुनाफ़े की ओर अग्रसर हैं। सूचना तकनीक और दूरसंचार के क्षेत्र में भी श्री सिंह की दूरगामी नीतियों के परिणाम काफ़ी सार्थक रहे हैं। यद्यपि 2008 की आर्थिक मंदी का असर अवश्य हुआ है, परन्तु इस क्षेत्र में विदेशी निवेश दुगुना हो गया है। इस प्रकार सूचना तकनीक एवं दूरसंचार के क्षेत्र में भारत की स्थिति विकसित देशों के समकक्ष हो चुकी है।

इसी प्रकार विदेशी पर्यटन उद्योग में भी भारी सुधार हुआ है। विदेशी पर्यटक भारत की ओर भारी तादाद में आकृष्ट हो रहे हैं। भारत के लिए वीजा प्राप्त करने वाले लोगों की लम्बी क़तारें हैं, यद्यपि 26 नवम्बर, 2008 के हमले के बाद इनमें थोड़ी कमी अवश्य आई है। इसी तरह भारत की अर्थव्यवस्था को रोज़गारोन्मुखी बनाया गया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में लाखों व्यक्तियों को रोज़गार प्राप्त हुआ है। यद्यपि देशव्यापी बेरोज़गारी को देखते हुए इस दिशा में काफ़ी प्रयास करने की आवश्यकता है तथापि निजी क्षेत्रों को उत्साहित करने के परिणाम बेहतर रहे हैं। पहले व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए क़तार में था, लेकिन अब बैंकों द्वारा रोज़गारपरक ऋण प्रदान किए जा रहे हैं। इससे व्यक्ति में अपना रोज़गार स्थापित करने की इच्छा शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ है। सकल राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय के वर्तमान आंकड़े भी इसी स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। सामाजिक सरोकार के कल्याणकारी कार्यों की दिशा में मनमोहन सरकार ने प्रगतिशील क़दम उठाए हैं। दलित एवं आदिवासी छात्रों को शिक्षा की ओर प्रेरित करने के लिए विभिन्न छात्रवृत्तियां प्रदान की जाने लगी हैं। इन पर 20 करोड़ रुपये वार्षिक व्यय का प्रावधान किया गया है।

मनमोहन सरकार ने अपनी विदेश नीति में व्यापक सुधार करते हुए सभी पश्चिमी देशों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित किए हैं। उदारवादी आर्थिक नीति के कारण पश्चिमी देशों ने भी भारत के साथ सम्बन्धों में सुधार की आवश्यकता को महसूस किया है। सबसे अच्छी बात इनकी विदेश नीति की रही है। अमेरिका और रूस से समान स्तर पर मित्रता हो गई है। ईरान एवं भारत के मध्य पेट्रोलियम पाइप लाइन बिछाने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है। पाकिस्तान के साथ रेल तथा बस सेवा शुरू हो चुकी है।

परमाणु समझौता

2 मार्च, 2006 को भारत ने परमाणु शक्ति के सम्बन्ध में अमेरिका के साथ राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के दिल्ली आगमन पर समझौता किया। राजनीतिज्ञों को इस बात की आशंका थी कि परमाणु समझौता शायद नहीं हो पाए। विपक्ष इस समझौते के सख़्त ख़िलाफ़ था। लेकिन मनमोहन सिंह को मालूम था कि ऊर्जा संसाधन के क्षेत्र में यह समझौता किया जाना भारत के हित में होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इसका मसौदा तय होने के बाद कहा कि दोनों देशों की सरकारों का इस समझौते के लिए तैयार होना काफ़ी कठिन कार्य था। लेकिन यह समझौता भारत और अमेरिका दोनों के लिए काफ़ी आवश्यक था। पत्रकार सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए अमेरिकी नेता जॉर्ज बुश ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की काफ़ी प्रशंसा की। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत के प्रति अमेरिकी के रुख़ में काफ़ी बदलाव आया है। इसके पहले परमाणु समझौता होने में यह गतिरोध था कि अमेरिका भारतीय परमाणु संयंत्रों पर निगरानी करने का कार्य अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सुपुर्द करना चाहता था, जबकि भारतवासी इस शर्त के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन दोनों देशों ने मध्य मार्ग विकसित करते हुए समझौता किया। इस मध्यमार्गी समझौते के अनुसार भारत के 22 परमाणु संयंत्रों में से 14 परमाणु संयंत्र निगरानी में होंगे और 8 सैन्य परमाणु संयंत्र उससे मुक्त रहेंगे। भारत का स्वदेशी परमाणु रियेक्टर प्लांट भी अंतर्राष्ट्रीय निगरानी एजेंसी से मुक्त रखा गया है। इस प्रकार भारत वैधानिक रूप से परमाणु सम्पन्न देशों की सूची में आ गया है। पाकिस्तान ने भी इस प्रकार के समझौते की पेशक़श अमेरिका से की थी, लेकिन अमेरिका ने इंकार कर दिया। ज़ाहिर है कि अमेरिका भारत को एक शान्तिप्रिय देश मानता है।

डॉ. मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी
Manmohan Singh and Sonia Gandhi

इस समझौते के प्रारूप को 'व्हाइट हाउस' और भारतीय संसद की स्वीकृति मिलना आवश्यक था। इस दौरान मनमोहन सिंह ने अपना मन बना लिया था कि संसद में प्रारूप को स्वीकृति के लिए पेश किया जाएगा। लेकिन यू. पी. ए. में सम्मिलित वामदलों ने यह घोषणा कर दी कि यदि ऐसा प्रयत्न किया गया तो वे सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे। मनमोहन सिंह के सामने यह बड़ी समस्या थी। यदि परमाणु समझौता किया जाता तो सरकार गिर सकती थी। इस दौरान व्हाइट हाउस की सीनेट ने समझौते को हरी झण्डी प्रदान कर दी। लेकिन मनमोहन सरकार के सामने विषम स्थिति थी। वामदलों को समझाने के लिए व्यापक प्रयास किए गए लेकिन वे अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए। तब मनमोहन सिंह ने घोषणा की कि समझौते के प्रारूप को संसद में स्वीकृति के लिए अवश्य पेश किया जाएगा और उन्हें यह परवाह नहीं कि इस कोशिश में उनकी सरकार गिर जाएगी। लेकिन वामदलों ने इसके बाद भी सकारात्मक संकेत नहीं दिए। मनमोहन सिंह चाहते थे कि समझौते को संसद की स्वीकृति प्राप्त हो जाए, ताकि भारत परमाणु ऊर्जा के माध्यम से विकास के पथ पर अग्रसर हो सके। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुलायम सिंह यादव से बात की और उनकी समाजवादी पार्टी अपना समर्थन देने को तैयार हो गई। तब वामदलों ने समर्थन वापस ले लिया, लेकिन समाजवादी पार्टी की सहायता से संसद में परमाणु प्रस्ताव पारित हो गया। इस प्रकार अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर मनमोहन सिंह ने एक ऐतिहासिक सफलता अर्जित कर ली। इस सम्बन्ध में भारत ने यूरेनियम प्राप्ति के लिए रूस और फ़्राँस सरकार से भी बात की। अब भारत को यूरेनियम की कोई कमी नहीं आएगी।

महत्त्वपूर्ण पड़ाव

वर्ष विवरण
1957 से 1965 चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक
1969-1971 दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर
1976 दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर
1982 से 1985 भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
1985 से 1987 योजना आयोग के उपाध्यक्ष
1990 से 1991 भारतीय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार
1991 नरसिंहराव के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार में वित्तमंत्री
1991 असम से राज्यसभा के सदस्य
1995 दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
1996 दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
1999 दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गये
2001 तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
2004 भारत के प्रधानमंत्री

इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के लिये भी काफी महत्वपूर्ण काम किया है।

पुरस्कार

डा. मनमोहन सिंह को भारत के सार्वजनिक जीवन में बहुत से पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया है। इनमें प्रमुख पुरस्कार हैं-

  • 1987 में मनमोहन सिंह को 'पद्म विभूषण' से सम्मानित
  • 1995 में इंडियन साइंस कांग्रेस का 'जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार',
  • 1993 और 1994 का 'एशिया मनी अवार्ड फॉर फाइनैन्स मिनिस्टर ऑफ़ द इयर'
  • 1994 का यूरो मनी 'अवार्ड फॉर द फाइनेंस मिनिस्टर ऑफ़ द इयर'
  • 1956 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का 'ऐडम स्मिथ पुरस्कार'



भारत के प्रधानमंत्री
पूर्वाधिकारी
अटल बिहारी वाजपेयी
मनमोहन सिंह उत्तराधिकारी


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनमोहन सिंह: पुन: पद पाना मुश्किल (हिन्दी) (एच.टी.एम) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 22 सितंबर, 2010
  2. मनमोहन सिंह (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 22 सितंबर, 2010

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