"महा नवमी": अवतरणों में अंतर
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'''महानवमी''' [[हिन्दू धर्म]] में बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। [[आश्विन माह]] में [[शुक्ल पक्ष]] की [[नवमी]] या [[कार्तिक माह]] में शुक्ल पक्ष की नवमी या फिर [[मार्गशीर्ष माह]] में शुक्ल पक्ष की नवमी को 'महानवमी' कहा जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले '[[नवरात्र]]' में नवमी की तिथि 'महानवमी' कहलाती है। इस दिन [[दुर्गा|देवी दुर्गा]] के नौवें स्वरूप [[सिद्धिदात्री नवम|माँ सिद्धिदात्री]] की [[पूजा]] विशेष रूप से की जाती है। यह दुर्गापूजा उत्सव ही है।<ref>कृत्यकल्पतरु (राजधर्म।, पृष्ठ 191-195), राजनीतिप्रकाश (पृष्ठ 439-444); हेमाद्रि (व्रत। 1, 903-920); निर्णयसिन्धु (161-185); कृत्यरत्नाकर (349-364);</ref> महानवमी के दिन भक्तजन कुमारी कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराते हैं तथा दान आदि देकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। | |||
==माँ सिद्धिदात्री== | |||
[[हिन्दू धर्म]] में विशेष रूप से पूजनीय और नौ दिनों तक चलने वाले '[[नवरात्र]]' का समापन महानवमी पर होता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के व्रत में हर तरफ़ भक्तिमय माहौल रहता है। नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा होती है। माँ दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती हैं। आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएँ हैं। उनका आसन [[कमल]] है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में [[चक्र अस्त्र|चक्र]], ऊपर वाले हाथ में [[गदा शस्त्र|गदा]], बाई ओर से नीचे वाले हाथ में [[शंख]] और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं। जैसा कि माँ के नाम से ही प्रतीत होता है, माँ सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं। [[हिमालय]] के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2011/04/12/festival-of-navratri/|title=श्रीदुर्गा महानवमी, नवरात्र का अंतिम दिन|accessmonthday= 13 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
==कन्या पूजन== | |||
'नवरात्र' के अंतिम दिन महानवमी पर कन्या पूजन का विशेष विधान है। इस दिन नौ कन्याओं को विधिवत तरीके से भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा देकर आशिर्वाद मांगा जाता है। इनके पूजन से दु:ख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। कन्या पूजन में कन्या की आयु के अनुसार फल प्राप्त होते हैं, जैसे- | |||
#'त्रिमूर्ति' - तीन वर्ष की कन्या 'त्रिमूर्ति' मानी जाती है। इनके पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है। | |||
#'कल्याणी' - चार वर्ष की कन्या 'कल्याणी' के नाम से संबोधित की जाती है। 'कल्याणी' की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। | |||
#'रोहिणी' - पाँच वर्ष की कन्या 'रोहिणी' कही जाती है। इसके पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है। | |||
#'कालिका' - छ:वर्ष की कन्या 'कालिका' की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। | |||
#'चण्डिका' - सात वर्ष की कन्या 'चण्डिका' के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है। | |||
#'शाम्भवी' - आठ वर्ष की कन्या 'शाम्भवी' की [[पूजा]] से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है। | |||
#'दुर्गा' - नौ वर्ष की कन्या 'दुर्गा' की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं। | |||
#'सुभद्रा' - दस वर्ष की कन्या 'सुभद्रा' कही जाती है। 'सुभद्रा' के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।<ref name="aa"/> | |||
==पूजन विधि== | |||
वैसे तो 'महानवमी' पर [[सिद्धिदात्री नवम|माँ सिद्धिदात्री]] की [[पूजा]] पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए, लेकिन अगर ऐसा संभव ना हो सके तो कुछ आसान तरीकों से माँ को प्रसन्न किया जा सकता है। सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के [[फल]]-[[फूल]] आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार '[[नवरात्र]]' का समापन करने से इस संसार में [[धर्म]], अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। | |||
====मंत्र==== | |||
देवी की स्तुति के लिए निम्न [[मंत्र]] कहा गया है- | |||
<blockquote><poem>या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता। | |||
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥</poem></blockquote> | |||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | ;ध्यान मंत्र | ||
<blockquote><poem>वन्दे वंछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्। | |||
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥ | |||
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम। | |||
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥ | |||
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्। | |||
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥ | |||
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्। | |||
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥</poem></blockquote> | |||
;स्तोत्र मंत्र | |||
<blockquote><poem>कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां। | |||
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥ | |||
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां। | |||
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥ | |||
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा। | |||
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥ | |||
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता। | |||
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥ | |||
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी। | |||
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।। | |||
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी। | |||
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥</poem> | |||
</blockquote> | |||
;कवच मंत्र | |||
<blockquote><poem>ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो। | |||
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥ | |||
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो। | |||
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥</poem></blockquote> | |||
[[सिद्धिदात्री नवम|भगवती सिद्धिदात्री]] का [[ध्यान]], स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है, जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यों में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं।<ref name="aa"/> कामनाओं की पूर्ति होती है। इस व्रत को करने से कर्ता देवी लोक को जाता है।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रत॰ 296-299); हेमाद्रि (व्रत॰ 1, 937-939, यहाँ दुर्गानवमी नाम है); पुरुषार्थचिन्तामणि (134); हेमाद्रि (काल, 107); देखिए [[गरुड़ पुराण]] (1|133|3-18 तथा अध्याय 134); कालिकापुराण (अध्याय 62);</ref> | |||
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07:03, 13 अक्टूबर 2013 का अवतरण
महानवमी हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या फिर मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को 'महानवमी' कहा जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले 'नवरात्र' में नवमी की तिथि 'महानवमी' कहलाती है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है। यह दुर्गापूजा उत्सव ही है।[1] महानवमी के दिन भक्तजन कुमारी कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराते हैं तथा दान आदि देकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।
माँ सिद्धिदात्री
हिन्दू धर्म में विशेष रूप से पूजनीय और नौ दिनों तक चलने वाले 'नवरात्र' का समापन महानवमी पर होता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के व्रत में हर तरफ़ भक्तिमय माहौल रहता है। नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा होती है। माँ दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती हैं। आदि शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार भुजाएँ हैं। उनका आसन कमल है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के लिए पूजनीय हैं। जैसा कि माँ के नाम से ही प्रतीत होता है, माँ सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26 वरदान मिलते हैं। हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है।[2]
कन्या पूजन
'नवरात्र' के अंतिम दिन महानवमी पर कन्या पूजन का विशेष विधान है। इस दिन नौ कन्याओं को विधिवत तरीके से भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा देकर आशिर्वाद मांगा जाता है। इनके पूजन से दु:ख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है। कन्या पूजन में कन्या की आयु के अनुसार फल प्राप्त होते हैं, जैसे-
- 'त्रिमूर्ति' - तीन वर्ष की कन्या 'त्रिमूर्ति' मानी जाती है। इनके पूजन से धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
- 'कल्याणी' - चार वर्ष की कन्या 'कल्याणी' के नाम से संबोधित की जाती है। 'कल्याणी' की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- 'रोहिणी' - पाँच वर्ष की कन्या 'रोहिणी' कही जाती है। इसके पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।
- 'कालिका' - छ:वर्ष की कन्या 'कालिका' की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
- 'चण्डिका' - सात वर्ष की कन्या 'चण्डिका' के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
- 'शाम्भवी' - आठ वर्ष की कन्या 'शाम्भवी' की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है।
- 'दुर्गा' - नौ वर्ष की कन्या 'दुर्गा' की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
- 'सुभद्रा' - दस वर्ष की कन्या 'सुभद्रा' कही जाती है। 'सुभद्रा' के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।[2]
पूजन विधि
वैसे तो 'महानवमी' पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए, लेकिन अगर ऐसा संभव ना हो सके तो कुछ आसान तरीकों से माँ को प्रसन्न किया जा सकता है। सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवान्न का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदि का अर्पण करना चाहिए। इस प्रकार 'नवरात्र' का समापन करने से इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मंत्र
देवी की स्तुति के लिए निम्न मंत्र कहा गया है-
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेणसंस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
- ध्यान मंत्र
वन्दे वंछितमनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।
शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥
- स्तोत्र मंत्र
कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।
स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।
नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।
विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।
धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥
- कवच मंत्र
ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।
हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥
ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥
भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र, कवच का पाठ करने से निर्वाण चक्र जाग्रत होता है, जिससे ऋद्धि, सिद्धि की प्राप्ति होती है। कार्यों में चले आ रहे व्यवधान समाप्त हो जाते हैं।[2] कामनाओं की पूर्ति होती है। इस व्रत को करने से कर्ता देवी लोक को जाता है।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (राजधर्म।, पृष्ठ 191-195), राजनीतिप्रकाश (पृष्ठ 439-444); हेमाद्रि (व्रत। 1, 903-920); निर्णयसिन्धु (161-185); कृत्यरत्नाकर (349-364);
- ↑ 2.0 2.1 2.2 श्रीदुर्गा महानवमी, नवरात्र का अंतिम दिन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 अक्टूबर, 2013।
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रत॰ 296-299); हेमाद्रि (व्रत॰ 1, 937-939, यहाँ दुर्गानवमी नाम है); पुरुषार्थचिन्तामणि (134); हेमाद्रि (काल, 107); देखिए गरुड़ पुराण (1|133|3-18 तथा अध्याय 134); कालिकापुराण (अध्याय 62);
अन्य संबंधित लिंक
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