"ऐ शरीफ़ इन्सानो -साहिर लुधियानवी": अवतरणों में अंतर
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कोख धरतीकी बौझ होती है ! | कोख धरतीकी बौझ होती है ! | ||
फतह का जश्न हो की हारका सोग, | फतह का जश्न हो की हारका सोग, | ||
ज़िंदगी मय्यतोंपे रोंती है ! | |||
जंग तो खुदही एक मसलआ है | जंग तो खुदही एक मसलआ है |
17:09, 30 दिसम्बर 2013 का अवतरण
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खून आपना हो या पराया हो |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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