"लकुलीश सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर
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*लकुलीश की यह मूर्ति सातवीं शताब्दी की बनी हुई प्रतीत होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=564|url=}}</ref> | *लकुलीश की यह मूर्ति सातवीं शताब्दी की बनी हुई प्रतीत होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=564|url=}}</ref> | ||
*लिंगपुराण<ref>लिंगपुराण (24|131)</ref> में लकुलीश के मुख्य चार शिष्यों के नाम 'कुशिक', 'गर्ग', 'मित्र' और 'कौरुष्य' मिलते हैं। | *लिंगपुराण<ref>लिंगपुराण (24|131)</ref> में लकुलीश के मुख्य चार शिष्यों के नाम 'कुशिक', 'गर्ग', 'मित्र' और 'कौरुष्य' मिलते हैं। | ||
*प्राचीन काल में इस सम्प्रदाय के अनुयायी बहुत थे, जिनमें मुख्य [[साधु]]<ref>कनफटे, नाथ</ref> होते थे। | *प्राचीन काल में इस सम्प्रदाय के अनुयायी बहुत थे, जिनमें मुख्य [[साधु]]<ref>[[कनफटा|कनफटे]], नाथ</ref> होते थे। | ||
*इस संप्रदाय का विशेष वृत्तांत [[शिलालेख|शिलालेखों]] तथा [[विष्णुपुराण]], लिंगपुराण आदि में मिलता है। | *इस संप्रदाय का विशेष वृत्तांत [[शिलालेख|शिलालेखों]] तथा [[विष्णुपुराण]], लिंगपुराण आदि में मिलता है। | ||
*इसके अनुयायी [[लकुलीश]] को [[शिव]] का अवतार मानते और उनका उत्पत्ति-स्थान 'कायावरोहण'<ref>कायारोहण, कारवान्, [[बड़ौदा]] राज्य में</ref> बतलाते थे।<ref>{{cite web |url=http://www.definition-of.net/%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B6|title=लकुलीश|accessmonthday=28 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *इसके अनुयायी [[लकुलीश]] को [[शिव]] का अवतार मानते और उनका उत्पत्ति-स्थान 'कायावरोहण'<ref>कायारोहण, कारवान्, [[बड़ौदा]] राज्य में</ref> बतलाते थे।<ref>{{cite web |url=http://www.definition-of.net/%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%80%E0%A4%B6|title=लकुलीश|accessmonthday=28 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> |
13:09, 27 फ़रवरी 2014 का अवतरण
लकुलीश | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- लकुलीश (बहुविकल्पी) |
लकुलीश सम्प्रदाय या 'नकुलीश सम्प्रदाय' के प्रवर्तक 'लकुलीश' माने जाते हैं। लकुलीश को स्वयं भगवान शिव का अवतार माना गया है। लकुलीश सिद्धांत पाशुपतों का ही एक विशिष्ट मत है। इसका उदय गुजरात में हुआ था। वहाँ इसके दार्शनिक साहित्य का सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ के पहले ही विकास हो चुका था। इसलिए उन लोगों ने शैव आगमों की नयी शिक्षाओं को नहीं माना।
- यह सम्प्रदाय छठी से नवीं शताब्दी के बीच मैसूर और राजस्थान में भी फैल चुका था।
- शिव के अवतारों की सूची, जो वायुपुराण से लिंगपुराण और कूर्मपुराण में उद्धृत है, लकुलीश का उल्लेख करती है।
- लकुलीश की मूर्ति का भी उल्लेख किया गया है, जो गुजरात के 'झरपतन' नामक स्थान में है।
- लकुलीश की यह मूर्ति सातवीं शताब्दी की बनी हुई प्रतीत होती है।[1]
- लिंगपुराण[2] में लकुलीश के मुख्य चार शिष्यों के नाम 'कुशिक', 'गर्ग', 'मित्र' और 'कौरुष्य' मिलते हैं।
- प्राचीन काल में इस सम्प्रदाय के अनुयायी बहुत थे, जिनमें मुख्य साधु[3] होते थे।
- इस संप्रदाय का विशेष वृत्तांत शिलालेखों तथा विष्णुपुराण, लिंगपुराण आदि में मिलता है।
- इसके अनुयायी लकुलीश को शिव का अवतार मानते और उनका उत्पत्ति-स्थान 'कायावरोहण'[4] बतलाते थे।[5]
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