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'''यिमा''' प्राचीन ईरानी धर्म में आदिमानव, मानव सभ्यता के प्रजनक व [[सूर्य]] के पुत्र। यिमा विरोधाभासी दंतकथाओं के पात्र हैं। ये दंतकथाएँ भिन्न धार्मिक विचारधाराओं को अस्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।  
'''यिमा''' प्राचीन ईरानी धर्म में आदिमानव, मानव सभ्यता के प्रजनक व [[सूर्य]] के पुत्र। यिमा विरोधाभासी दंतकथाओं के पात्र हैं। ये दंतकथाएँ भिन्न धार्मिक विचारधाराओं को अस्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।  
==किंवदंती के अनुसार==
==किंवदंती के अनुसार==
एक [[किंवदंती]] के अनुसार, यिमा ने ईश्वर (अहुर मज़्दा) द्वारा उन्हें [[धर्म]] का वाहन बनाने के दिए गए प्रस्ताव को नकार दिया और उन्हें [[पृथ्वी]] पर मानव जीवन की स्थापना का कार्य सौंपा गया। वह एक स्वर्णिम काल में बादशाह बने, जिसमें ग़रीबी, मृत्यु, बीमारियाँ, बुढ़ापा व [[तापमान]] की पराकाष्ठाओं को उनकी शक्ति के बल पर पृथ्वी से हटा दिया गया था।  
एक [[किंवदंती]] के अनुसार, यिमा ने ईश्वर ([[अहुर मज़्दा]]) द्वारा उन्हें [[धर्म]] का वाहन बनाने के दिए गए प्रस्ताव को नकार दिया और उन्हें [[पृथ्वी]] पर मानव जीवन की स्थापना का कार्य सौंपा गया। वह एक स्वर्णिम काल में बादशाह बने, जिसमें ग़रीबी, मृत्यु, बीमारियाँ, बुढ़ापा व [[तापमान]] की पराकाष्ठाओं को उनकी शक्ति के बल पर पृथ्वी से हटा दिया गया था।  
==दंतकथा के अनुसार==
==दंतकथा के अनुसार==
एक दंतकथा के अनुसार, इस स्वर्णिम काल का अंत तब हुआ, जब अहुत मज़्दा ने यिमा को एक आसन्न भयानक सर्दी के विषय में बताया। उन्हें ज़मीन के नीचे एक उत्कृष्ट शरणस्थली बनाने का आदेश दिया गया, जो स्वयं अपने प्रकाश से प्रकाशित हो और उसमें सभी प्रजातियों के श्रेष्ठ जीवों को उनके बीजों की रक्षा के लिए रखने को कहा गया। वहाँ उन्हें उस सर्दी के प्रकोप के पूरे समय तक रहना था और फिर बाहर आकर पृथ्वी पर जीवन को बढ़ाना था।  
एक दंतकथा के अनुसार, इस स्वर्णिम काल का अंत तब हुआ, जब अहुत मज़्दा ने यिमा को एक आसन्न भयानक सर्दी के विषय में बताया। उन्हें ज़मीन के नीचे एक उत्कृष्ट शरणस्थली बनाने का आदेश दिया गया, जो स्वयं अपने प्रकाश से प्रकाशित हो और उसमें सभी प्रजातियों के श्रेष्ठ जीवों को उनके बीजों की रक्षा के लिए रखने को कहा गया। वहाँ उन्हें उस सर्दी के प्रकोप के पूरे समय तक रहना था और फिर बाहर आकर पृथ्वी पर जीवन को बढ़ाना था।  

07:52, 11 मई 2014 के समय का अवतरण

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यिमा प्राचीन ईरानी धर्म में आदिमानव, मानव सभ्यता के प्रजनक व सूर्य के पुत्र। यिमा विरोधाभासी दंतकथाओं के पात्र हैं। ये दंतकथाएँ भिन्न धार्मिक विचारधाराओं को अस्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।

किंवदंती के अनुसार

एक किंवदंती के अनुसार, यिमा ने ईश्वर (अहुर मज़्दा) द्वारा उन्हें धर्म का वाहन बनाने के दिए गए प्रस्ताव को नकार दिया और उन्हें पृथ्वी पर मानव जीवन की स्थापना का कार्य सौंपा गया। वह एक स्वर्णिम काल में बादशाह बने, जिसमें ग़रीबी, मृत्यु, बीमारियाँ, बुढ़ापा व तापमान की पराकाष्ठाओं को उनकी शक्ति के बल पर पृथ्वी से हटा दिया गया था।

दंतकथा के अनुसार

एक दंतकथा के अनुसार, इस स्वर्णिम काल का अंत तब हुआ, जब अहुत मज़्दा ने यिमा को एक आसन्न भयानक सर्दी के विषय में बताया। उन्हें ज़मीन के नीचे एक उत्कृष्ट शरणस्थली बनाने का आदेश दिया गया, जो स्वयं अपने प्रकाश से प्रकाशित हो और उसमें सभी प्रजातियों के श्रेष्ठ जीवों को उनके बीजों की रक्षा के लिए रखने को कहा गया। वहाँ उन्हें उस सर्दी के प्रकोप के पूरे समय तक रहना था और फिर बाहर आकर पृथ्वी पर जीवन को बढ़ाना था।

पारसी परंपरा

पारसी परंपरा ने यिमा के बजाय गायोमार्त को प्रथम मानव माना। परवर्ती पारसी साहित्य में यिमा जमशेद के नाम से कई कहानियों के पात्र हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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