"ख़ून फिर ख़ून है -साहिर लुधियानवी": अवतरणों में अंतर
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जंग तो ख़ुद हीं एक मअसला है | जंग तो ख़ुद हीं एक मअसला है | ||
जंग क्या मअसलों का हल देगी | जंग क्या मअसलों का हल देगी | ||
आग और | आग और ख़ून आज बख़्शेगी | ||
भूख और अहतयाज कल देगी | भूख और अहतयाज कल देगी | ||
13:54, 31 जुलाई 2014 का अवतरण
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ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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