"कन्नड़ साहित्य": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
[[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] में प्रारंभिक रचना, जिसे [[उपन्यास]] कहा जा सकता है, नेमिचंद्र की 'लीलावती' (1370) है, जो एक राजकुमार और राजकुमारी की प्रेम कहानी है। 'राजशेखरविलास' सबसे प्रसिद्ध कन्नड़ रचनाओं में एक है, जो 1657 में सदाक्षरदेव द्वारा [[छन्द|छंदों]] और बीच-बीच में गद्य में लिखी गई काल्पनिक [[कहानी]] है। यह रचना एक नीतिकथा है, जिसमें शिव का दैवी हस्तक्षेप एक राजपरिवार को नियम रक्षा के प्रयास में उनकी खुद की बुलाई विपदा से बचाता है।
[[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] में प्रारंभिक रचना, जिसे [[उपन्यास]] कहा जा सकता है, नेमिचंद्र की 'लीलावती' (1370) है, जो एक राजकुमार और राजकुमारी की प्रेम कहानी है। 'राजशेखरविलास' सबसे प्रसिद्ध कन्नड़ रचनाओं में एक है, जो 1657 में सदाक्षरदेव द्वारा [[छन्द|छंदों]] और बीच-बीच में गद्य में लिखी गई काल्पनिक [[कहानी]] है। यह रचना एक नीतिकथा है, जिसमें शिव का दैवी हस्तक्षेप एक राजपरिवार को नियम रक्षा के प्रयास में उनकी खुद की बुलाई विपदा से बचाता है।
==प्रमुख लेखक==
==प्रमुख लेखक==
आधुनिक कन्नड़ साहित्य की विशेषता [[नाटक]], [[उपन्यास]], [[कहानी|कहानियों]] और साहित्य अनुवाद<ref>शेक्सपियर और [[रबींद्रनाथ ठाकुर]] की रचनाओं के कन्नड़ अनुवाद उपलब्ध हैं।</ref> का उदय है। लघुकथा के जनक [[मास्ति वेंकटेश अय्यंगार]] और वरिष्ठ [[कवि]] [[दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे]] एवं के. वी. पुट्टप्पा उल्लेखनीय अग्रणी लेखक हैं। गोपालकृष्ण अडिगा एवं यू. आर. अनंतमूर्ति नए साहित्य आंदोलन से जुड़े हैं। वर्तमान में यह [[भाषा]] [[पत्रकारिता]], शिक्षा एवं प्रशासन के माध्यम के अतिरिक्त [[रंगमंच]] एवं [[सिनेमा]]<ref>[[शिवराम कारंत]] एवं [[गिरीश कर्नाड]] इससे जुड़े हैं।</ref> जैसी विभिन्न कला विधाओं का भी माध्यम है।<ref name="aa"/>
आधुनिक कन्नड़ साहित्य की विशेषता [[नाटक]], [[उपन्यास]], [[कहानी|कहानियों]] और साहित्य अनुवाद<ref>शेक्सपियर और [[रबींद्रनाथ ठाकुर]] की रचनाओं के कन्नड़ अनुवाद उपलब्ध हैं।</ref> का उदय है। लघुकथा के जनक [[मास्ति वेंकटेश अय्यंगार]] और वरिष्ठ [[कवि]] [[दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे]] एवं के. वी. पुट्टप्पा उल्लेखनीय अग्रणी लेखक हैं। गोपालकृष्ण अडिगा एवं [[यू. आर. अनंतमूर्ति]] नए साहित्य आंदोलन से जुड़े हैं। वर्तमान में यह [[भाषा]] [[पत्रकारिता]], शिक्षा एवं प्रशासन के माध्यम के अतिरिक्त [[रंगमंच]] एवं [[सिनेमा]]<ref>[[शिवराम कारंत]] एवं [[गिरीश कर्नाड]] इससे जुड़े हैं।</ref> जैसी विभिन्न कला विधाओं का भी माध्यम है।<ref name="aa"/>
====लेखकों को सम्मान====
====लेखकों को सम्मान====
कन्नड़ साहित्यकारों को [[भारत]] का सर्वोच्च साहित्यिक साम्मान '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' कई बार मिला है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले लेखक व साहित्यकार निम्न हैं<ref name="aa"/>-
कन्नड़ साहित्यकारों को [[भारत]] का सर्वोच्च साहित्यिक साम्मान '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' कई बार मिला है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले लेखक व साहित्यकार निम्न हैं<ref name="aa"/>-
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
#[[शिवराम कारंत]] - ([[1977]])
#[[शिवराम कारंत]] - ([[1977]])
#[[मास्ति वेंकटेश अय्यंगार]] - ([[1983]])
#[[मास्ति वेंकटेश अय्यंगार]] - ([[1983]])
#वी. के. गोकाक - ([[1930]])
#[[विनायक कृष्ण गोकाक|वी. के. गोकाक]] - ([[1930]])
#यू. आर. अनंतमूर्ति - ([[1994]])
#[[यू. आर. अनंतमूर्ति]] - ([[1994]])


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

10:03, 6 नवम्बर 2014 का अवतरण

कन्नड़ साहित्य कन्नड़ भाषा का रचनात्मक लेखन है, जो अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं की तरह द्रविड़ भाषा परिवार का है। कन्नड़ के प्रारंभिक दस्तावेज़ छठी शताब्दी और इसके बाद के शिलालेख हैं। शास्त्रीय परंपरा नृततुंग के 'कविराज मार्ग' (नौवीं सदी) से शुरू हुई, जो संस्कृत काव्यशास्त्र पर आधारित ग्रंथ है।

प्रारंभिक पाठ

कन्नड़ में उपलब्ध लगभग सभी प्रारंभिक पाठ जैन लेखकों द्वारा धार्मिक विषयों पर लिखी गई कविताएं हैं। भारत में सामाजिक एवं धार्मिक उथल-पुथल के काल (12वीं शताब्दी) में बोली जाने वाली भाषा में एक नई शैली, वचन का उद्भव हुआ, जिसमें अल्लामाप्रभु, वासवन्ना और अक्कमहादेवी[1] ने वचन को सामाजिक दर्शन व आध्यात्मिक अनुभवों के संप्रेषण का माध्यम बनाया। वचन साहित्य का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया है, विशेष रूप से ए. के. रामानुजन द्वारा। 16वीं सदी में भाषाई भक्ति गीतों के 'हरिदासी आंदोलन' को पुरंदरदास एवं कनकदास ने शीर्ष पर पहुंचाया।[2]

रचनाएँ

कन्नड़ में प्रारंभिक रचना, जिसे उपन्यास कहा जा सकता है, नेमिचंद्र की 'लीलावती' (1370) है, जो एक राजकुमार और राजकुमारी की प्रेम कहानी है। 'राजशेखरविलास' सबसे प्रसिद्ध कन्नड़ रचनाओं में एक है, जो 1657 में सदाक्षरदेव द्वारा छंदों और बीच-बीच में गद्य में लिखी गई काल्पनिक कहानी है। यह रचना एक नीतिकथा है, जिसमें शिव का दैवी हस्तक्षेप एक राजपरिवार को नियम रक्षा के प्रयास में उनकी खुद की बुलाई विपदा से बचाता है।

प्रमुख लेखक

आधुनिक कन्नड़ साहित्य की विशेषता नाटक, उपन्यास, कहानियों और साहित्य अनुवाद[3] का उदय है। लघुकथा के जनक मास्ति वेंकटेश अय्यंगार और वरिष्ठ कवि दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे एवं के. वी. पुट्टप्पा उल्लेखनीय अग्रणी लेखक हैं। गोपालकृष्ण अडिगा एवं यू. आर. अनंतमूर्ति नए साहित्य आंदोलन से जुड़े हैं। वर्तमान में यह भाषा पत्रकारिता, शिक्षा एवं प्रशासन के माध्यम के अतिरिक्त रंगमंच एवं सिनेमा[4] जैसी विभिन्न कला विधाओं का भी माध्यम है।[2]

लेखकों को सम्मान

कन्नड़ साहित्यकारों को भारत का सर्वोच्च साहित्यिक साम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' कई बार मिला है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वाले लेखक व साहित्यकार निम्न हैं[2]-

  1. के. वी. पुट्टप्पा - (1967)
  2. दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे - (1973)
  3. शिवराम कारंत - (1977)
  4. मास्ति वेंकटेश अय्यंगार - (1983)
  5. वी. के. गोकाक - (1930)
  6. यू. आर. अनंतमूर्ति - (1994)


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कन्नड़ की पहली प्रमुख कवयित्री
  2. 2.0 2.1 2.2 भारत ज्ञानकोश, खण्ड-6 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 132 |
  3. शेक्सपियर और रबींद्रनाथ ठाकुर की रचनाओं के कन्नड़ अनुवाद उपलब्ध हैं।
  4. शिवराम कारंत एवं गिरीश कर्नाड इससे जुड़े हैं।

संबंधित लेख