"भोग": अवतरणों में अंतर
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{{शब्द संदर्भ नया | {{शब्द संदर्भ नया | ||
|अर्थ=भोगने की अवस्था/क्रिया/भाव | |अर्थ=# भोगने की अवस्था/क्रिया/भाव | ||
# सुख-दु:ख, पाप-पुण्य का फल या कर्म-फल आदि का अनुभव | |||
# सांसारिक सुख। जैसे- भोग और योग दोनों के मार्ग अलग हैं। | |||
# सुख देने वाले वस्तु, सुख देने वाली वस्तु का इच्छानुसार उपयोग। जैसे- धन का भोग। | |||
# खाद्य सामग्री (भोग बहुभार सजायौ। -[[सूरसागर]]) | |||
# भक्षण, भोजन, खाना | |||
# भोज, दावत | |||
# देव-मूर्ति के लिए [[नैवेद्य]] जैसे- ठाकुरजी का भोग | |||
# अधिकार, क़ब्ज़ा | |||
# शासन, हुकूमत जैसे- भोगपति =राजा | |||
# आय, आमदनी | |||
# लाभ, फ़ायदा | |||
# काम-क्रीड़ा | |||
# सर्प या नाग जैसे- भोगवती नगरी = नागों की एक नगरी | |||
# किसी [[ग्रह]] की किसी [[राशि]] में रहने की अवधि। जैसे- [[शनि ग्रह|शनि]] का [[मकर राशि]] में भोग अभी एक वर्ष शेष है। | |||
|व्याकरण=[[पुल्लिंग]] | |व्याकरण=[[पुल्लिंग]] | ||
|उदाहरण=भगवान के '''भोग''' के लिए कौड़ी-भर [[घी]] चाहिए। | |उदाहरण=भगवान के '''भोग''' के लिए कौड़ी-भर [[घी]] चाहिए। |
10:12, 28 फ़रवरी 2015 का अवतरण
उत्तर भारत में 'प्राचीन भारतीय कृषिजन्य व्यवस्था एवं राजस्व संबंधी पारिभाषिक शब्दावली' के अनुसार भोग का अर्थ है- राजा के उपभोग के लिए ग्रामीणों द्वारा उपहार या कर के रूप में समय-समय पर राजा को दिए जाने वाले फल-फूल, जलाऊ लकड़ी आदि। इन्हें भी देखें: सल्तनत काल की शब्दावली एवं भूगोल शब्दावली
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