"होलिका": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{पात्र परिचय | |||
|चित्र=Holika-Prahlad-1.jpg | |||
|चित्र का नाम=प्रह्लाद को गोद में बिठाकर बैठी होलिका | |||
|अन्य नाम= | |||
|अवतार= | |||
|वंश-गोत्र= | |||
|कुल=[[दैत्य]] | |||
|पिता= | |||
|माता= | |||
|धर्म पिता= | |||
|धर्म माता= | |||
|पालक पिता= | |||
|पालक माता= | |||
|जन्म विवरण= | |||
|समय-काल= | |||
|धर्म-संप्रदाय= | |||
|परिजन=[[हिरण्यकशिपु]], [[प्रह्लाद]] | |||
|गुरु= | |||
|विवाह= | |||
|संतान= | |||
|विद्या पारंगत= | |||
|रचनाएँ= | |||
|महाजनपद= | |||
|शासन-राज्य= | |||
|मंत्र= | |||
|वाहन= | |||
|प्रसाद= | |||
|प्रसिद्ध मंदिर= | |||
|व्रत-वार= | |||
|पर्व-त्योहार= | |||
|श्रृंगार= | |||
|अस्त्र-शस्त्र= | |||
|निवास= | |||
|ध्वज= | |||
|रंग-रूप= | |||
|पूजन सामग्री= | |||
|वाद्य= | |||
|सिंहासन= | |||
|प्राकृतिक स्वरूप= | |||
|प्रिय सहचर= | |||
|अनुचर= | |||
|शत्रु-संहार= | |||
|संदर्भ ग्रंथ= | |||
|प्रसिद्ध घटनाएँ= | |||
|अन्य विवरण= | |||
|मृत्यु= | |||
|यशकीर्ति= | |||
|अपकीर्ति=होकिका को [[अग्नि]] में न जल पाने का वरदान था। इसीलिए वह [[विष्णु]] [[भक्त]] अपने भतीजे [[प्रह्लाद]] को समाप्त करने की मंशा से जलती हुई अग्नि में बैठ गई, किंतु स्वयं ही जलकर भस्म हो गई। | |||
|संबंधित लेख=[[हिरण्यकशिपु]], [[प्रह्लाद]], [[होली]], [[होलिका दहन]], [[नृसिंह अवतार]] | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=[[भारत]] में [[होलिका दहन]] के पश्चात ही अगले दिन हर्ष और उल्लास का पर्व तथा पुराने द्वेष-भाव आदि को भुला देने वाला त्योहार '[[होली]]' मनाया जाता है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''होलिका''' [[हिरण्यकशिपु]] नामक [[दैत्य]] की बहन और [[प्रह्लाद]] नामक [[विष्णु]] के [[भक्त]] की बुआ थी। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह [[अग्नि]] में नहीं जलेगी। इस वरदान का लाभ उठाने के लिए विष्णु-विरोधी हिरण्यकशिपु ने उसे आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाए, जिससे प्रह्लाद की मृत्यु हो जाए। होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया। ईश्वर कृपा से प्रह्लाद तो बच गया किंतु होलिका जलकर भस्म हो गई। होलिका के अंत की खुशी में ही '[[होली]]' का उत्सव मनाया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.holifestival.org/legend-holika-prahlad.html |title=The Legend of Holika and Prahlad |accessmonthday=[[15 मार्च]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=holifestival.org |language=[[अंग्रेज़ी]] }}</ref> | '''होलिका''' [[हिरण्यकशिपु]] नामक [[दैत्य]] की बहन और [[प्रह्लाद]] नामक [[विष्णु]] के [[भक्त]] की बुआ थी। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह [[अग्नि]] में नहीं जलेगी। इस वरदान का लाभ उठाने के लिए विष्णु-विरोधी हिरण्यकशिपु ने उसे आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाए, जिससे प्रह्लाद की मृत्यु हो जाए। होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया। ईश्वर कृपा से प्रह्लाद तो बच गया किंतु होलिका जलकर भस्म हो गई। होलिका के अंत की खुशी में ही '[[होली]]' का उत्सव मनाया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.holifestival.org/legend-holika-prahlad.html |title=The Legend of Holika and Prahlad |accessmonthday=[[15 मार्च]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=holifestival.org |language=[[अंग्रेज़ी]] }}</ref> | ||
==कथा== | ==कथा== |
06:49, 3 मार्च 2015 का अवतरण
होलिका
| |
कुल | दैत्य |
परिजन | हिरण्यकशिपु, प्रह्लाद |
अपकीर्ति | होकिका को अग्नि में न जल पाने का वरदान था। इसीलिए वह विष्णु भक्त अपने भतीजे प्रह्लाद को समाप्त करने की मंशा से जलती हुई अग्नि में बैठ गई, किंतु स्वयं ही जलकर भस्म हो गई। |
संबंधित लेख | हिरण्यकशिपु, प्रह्लाद, होली, होलिका दहन, नृसिंह अवतार |
अन्य जानकारी | भारत में होलिका दहन के पश्चात ही अगले दिन हर्ष और उल्लास का पर्व तथा पुराने द्वेष-भाव आदि को भुला देने वाला त्योहार 'होली' मनाया जाता है। |
होलिका हिरण्यकशिपु नामक दैत्य की बहन और प्रह्लाद नामक विष्णु के भक्त की बुआ थी। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। इस वरदान का लाभ उठाने के लिए विष्णु-विरोधी हिरण्यकशिपु ने उसे आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश कर जाए, जिससे प्रह्लाद की मृत्यु हो जाए। होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया। ईश्वर कृपा से प्रह्लाद तो बच गया किंतु होलिका जलकर भस्म हो गई। होलिका के अंत की खुशी में ही 'होली' का उत्सव मनाया जाता है।[1]
कथा
प्रसिद्ध हिन्दू त्योहार 'होली' को लेकर हिरण्यकशिपु और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है, जो इस प्रकार है-
हिरण्यकशिपु को वरदान
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकशिपु ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में; न पृथ्वी पर, न आकाश में; न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई अस्त्र-शस्त्र भी उसे न मार पाए। ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा। हिरण्यकशिपु के यहां प्रह्लाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।[2]
प्रह्लाद वध की योजना
हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकशिपु उसे जान से मारने पर उतारू हो गया। उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए, लेकिन वह प्रभु-कृपा से बचता रहा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी, जिसे ओढ़कर यदि अग्निस्नान किया जाए तो अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।
होलिका की मृत्यु
होलिका अपने भतीजे बालक प्रह्लाद को गोद में लेकर उसे जलाकर मार डालने के उद्देश्य से चादर ओढ़कर धूँ-धूँ कर जलती हुई अग्नि में जा बैठी। प्रभु-कृपा से वह चादर वायु के वेग से उड़कर बालक प्रह्लाद पर जा पड़ी और चादर न होने पर होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई। इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् हिरण्यकशिपु को मारने के लिए भगवान विष्णु ने 'नृसिंह अवतार' में खंभे से निकल कर गोधूली के समय[3] में दरवाज़े की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ The Legend of Holika and Prahlad (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) holifestival.org। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2011।
- ↑ 2.0 2.1 प्रह्लाद-होकिका की कथा (हिन्दू) भारत दर्शन। अभिगमन तिथि: 03 मार्च, 2015।
- ↑ सुबह और शाम के समय का संधिकाल
संबंधित लेख