"राजपाल एण्ड सन्स": अवतरणों में अंतर
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'''राजपाल एण्ड सन्स''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajpal & Sons'') [[हिन्दी]] पुस्तकों के एक प्रमुख प्रकाशन कम्पनी है। इसकी स्थापना [[1912]] में [[लाहौर]] में [[महाशय राजपाल]] द्वारा की गयी थी। आरम्भ में इस प्रकाशन ने हिन्दी, [[उर्दू]], [[अंग्रेज़ी]] तथा [[पंजाबी]] भाषाओं में आध्यात्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित कीं। [[भारत का विभाजन|भारत के विभाजन]] के उपरान्त [[1947]] में यह प्रकाशन [[दिल्ली]] आ गया और [[भारत]] के प्रमुख हिन्दी प्रकाशक के रूप में जाने जाने लगा। महाशय राजपाल की विलक्षण सूझ को वही लोग जानते हैं, जिन्होंने उनके द्वारा प्रकाशित व सम्पादित पुस्तकों की उनके द्वारा लिखित भूमिकाएँ पढ़ी हैं। उनके द्वारा स्थापित आर्य पुस्तकालय व सरस्वती आश्रम का एक गौरवपूर्ण इतिहास है। आर्य सामाजिक साहित्य की कई ऐसी पुस्तकें हैं, जो अपने-अपने विषय की बेजोड़ पुस्तकें मानी जाती हैं। ऐसी बीसियों पुस्तकों को लिखने का विचार उन पुस्तकों के लेखकों को महाशय राजपाल जी ने ही सुझाया। महाशय जी ने ‘भक्ति दर्पण’ नाम का एक गुटका स्वयं सम्पादित किया था। सन [[1997]] में ‘राजपाल एण्ड संस’ ने इसका 60वाँ संस्करण निकाला था। | '''राजपाल एण्ड सन्स''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajpal & Sons'') [[हिन्दी]] पुस्तकों के एक प्रमुख प्रकाशन कम्पनी है। इसकी स्थापना [[1912]] में [[लाहौर]] में [[महाशय राजपाल]] द्वारा की गयी थी। आरम्भ में इस प्रकाशन ने हिन्दी, [[उर्दू]], [[अंग्रेज़ी]] तथा [[पंजाबी]] भाषाओं में आध्यात्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित कीं। [[भारत का विभाजन|भारत के विभाजन]] के उपरान्त [[1947]] में यह प्रकाशन [[दिल्ली]] आ गया और [[भारत]] के प्रमुख हिन्दी प्रकाशक के रूप में जाने जाने लगा। महाशय राजपाल की विलक्षण सूझ को वही लोग जानते हैं, जिन्होंने उनके द्वारा प्रकाशित व सम्पादित पुस्तकों की उनके द्वारा लिखित भूमिकाएँ पढ़ी हैं। उनके द्वारा स्थापित आर्य पुस्तकालय व सरस्वती आश्रम का एक गौरवपूर्ण इतिहास है। आर्य सामाजिक साहित्य की कई ऐसी पुस्तकें हैं, जो अपने-अपने विषय की बेजोड़ पुस्तकें मानी जाती हैं। ऐसी बीसियों पुस्तकों को लिखने का विचार उन पुस्तकों के लेखकों को महाशय राजपाल जी ने ही सुझाया। महाशय जी ने ‘भक्ति दर्पण’ नाम का एक गुटका स्वयं सम्पादित किया था। सन [[1997]] में ‘राजपाल एण्ड संस’ ने इसका 60वाँ संस्करण निकाला था। | ||
==प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें== | ==प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें== |
14:25, 5 अप्रैल 2015 का अवतरण
राजपाल एण्ड सन्स
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स्थापना | 1912 |
संस्थापक | महाशय राजपाल |
मुख्यालय | स्थापना लाहौर में हुई लेकिन भारत के विभाजन के उपरान्त 1947 में दिल्ली आ गया। |
अन्य जानकारी | आरम्भ में इस प्रकाशन ने हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी तथा पंजाबी भाषाओं में आध्यात्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित कीं। |
राजपाल एण्ड सन्स (अंग्रेज़ी: Rajpal & Sons) हिन्दी पुस्तकों के एक प्रमुख प्रकाशन कम्पनी है। इसकी स्थापना 1912 में लाहौर में महाशय राजपाल द्वारा की गयी थी। आरम्भ में इस प्रकाशन ने हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी तथा पंजाबी भाषाओं में आध्यात्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित कीं। भारत के विभाजन के उपरान्त 1947 में यह प्रकाशन दिल्ली आ गया और भारत के प्रमुख हिन्दी प्रकाशक के रूप में जाने जाने लगा। महाशय राजपाल की विलक्षण सूझ को वही लोग जानते हैं, जिन्होंने उनके द्वारा प्रकाशित व सम्पादित पुस्तकों की उनके द्वारा लिखित भूमिकाएँ पढ़ी हैं। उनके द्वारा स्थापित आर्य पुस्तकालय व सरस्वती आश्रम का एक गौरवपूर्ण इतिहास है। आर्य सामाजिक साहित्य की कई ऐसी पुस्तकें हैं, जो अपने-अपने विषय की बेजोड़ पुस्तकें मानी जाती हैं। ऐसी बीसियों पुस्तकों को लिखने का विचार उन पुस्तकों के लेखकों को महाशय राजपाल जी ने ही सुझाया। महाशय जी ने ‘भक्ति दर्पण’ नाम का एक गुटका स्वयं सम्पादित किया था। सन 1997 में ‘राजपाल एण्ड संस’ ने इसका 60वाँ संस्करण निकाला था।
प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें
राजपाल एण्ड सन्स द्वारा प्रकाशित प्रमुख पुस्तकें निम्न हैं-
- हैमलेट -रांगेय राघव
- दीपगीत -महादेवी वर्मा
- मैकबेथ -रांगेय राघव
- मधुशाला -हरिवंशराय बच्चन
- जूलियस सीज़र -रांगेय राघव
- भारत 2020 नवनिर्माण की रूपरेखा -अब्दुल कलाम
- कब तक पुकारूँ -रांगेय राघव
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख