"अहम् ब्रह्मास्मि -किरण मिश्रा": अवतरणों में अंतर
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जैसे आत्माएँ दबी हो आकांक्षाओं में | |||
और कामनाएँ अपने नुकीले नाखूनों से | |||
किरच रही हों बुद्ध के साधन चातुष्टय को | |||
माया डोर ले हाथों में | |||
बना कर कठपुतली | |||
दिग्भ्रमित करती है दुनिया के पथिक को | |||
भ्रमित पथिक कहाँ सुन पता है | |||
आत्मा की वेदना और कहा देख पता है | |||
माया के खेल को | |||
वो मगन रहता है अहम् ब्रह्मास्मि में | |||
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10:59, 10 अप्रैल 2015 का अवतरण
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जैसे आत्माएँ दबी हो आकांक्षाओं में |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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