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'''वृषपर्वा''' [[दक्ष]] कन्या [[दनु]] के पुत्र थे। ये [[ययाति]] की पत्नि व [[शर्मिष्ठा]] के पिता थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=महाभारत शब्दकोश|लेखक=एस.पी. परमहंस|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=101|url=}}</ref>  
'''वृषपर्वा''' का उल्लेख [[हिन्दू]] पौराणिक [[ग्रन्थ]] [[महाभारत]] में हुआ है। महाभारत के अनुसार ये एक राज ऋषि थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=महाभारत शब्दकोश|लेखक=एस.पी. परमहंस|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=101|url=}}</ref>
*वृषपर्वा [[कश्यप|कश्यप ऋषि]] द्वारा [[दनु]] के गर्भ से उत्पन्न एक दानव थे, जो [[दैत्य|दैत्यों]] के राजा थे।
==महाभारत के अनुसार==
*शर्मिष्ठा, जो 1000 दासियों के साथ [[देवयानी]] की सेविका हुई थी, वृषपर्वा उसके पिता थे। इस प्रकार ये ययाति के श्वसुर थे।
जटासुर के मारे जाने पर [[युधिष्ठिर|महाराज युधिष्ठिर]] श्रीनर-नारायण के आश्रम में आकर रहने लगे थे। इस समय बाद उन्हें अपने भाई [[अर्जुन]] का स्मरण हो आया। वे [[द्रौपदी]] सहित सब भाइयों को बुलाकर कहने लगे- "अर्जुन ने मुझसे कहा था कि मैं पाँच वर्ष तक स्वर्ग में अस्त्र विद्या सीखने के बाद यहाँ मृत्युलोक में लौट आऊँगा। इसलिये अर्जुन जब अस्त्रविद्या सीखकर यहाँ आवे, उस समय हम लोगों को उससे मिलने के लिये तैयार रहना चाहिये।" इस प्रकार बातचीत करते हुए उन्होंने आगे के लिये प्रस्थान किया।
*दैत्य-पुरोहित शुक्राचार्य वृषपर्वा के नगर में रहते थे।
 
*वह दूसरे जन्म में दीर्घ प्रज्ञ नामक राजा के रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुआ था<ref>[[महाभारत आदि पर्व|महाभा. आदि.]] 64.24; 67.15-16</ref> <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक= राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=476|url=}}</ref>
वे कहीं तो पैदल चलते थे, कहीं राक्षस लोग उन्हें कन्धे पर बैठाकर ले चलते। इस प्रकार रास्ते में कैलास पर्वत, मैनाक पर्वत और गन्धमादन की तलहटी को, श्वेतगिरि को तथा ऊपर-ऊपर के पहाड़ों की अनेकों निर्मल नदियों को देखते हुए वे सातवें दिन हिमालय के पवित्र पृष्ठ पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने राजर्षि वृषपर्वा का पवित्र आश्रम देखा। पांडवों ने उस आश्रम में पहुँचकर राजर्षि वृषपर्वा को प्रणाम किया। राजर्षि ने पुत्रों के समान उनका अभिनन्दन किया। पांडवों ने वहाँ सात रात निवास किया। आठवें दिन उन्होंने वृषपर्वा जी से आगे जाने की इच्छा प्रकट की। चलते समय वृषपर्वा ने [[पांडव|पांडवों]] को पुत्रों की तरह उपदेश दिया। फिर उनकी आज्ञा लेकर वे उत्तर दिशा को चले।<ref>{{cite web |url=http://mahabhatatastories.blogspot.in/2015/09/blog-post_82.html|title=पाण़्डवों का वृषपर्वा और आर्ष्टिषेण के आश्रमों पर जाना |accessmonthday=17 दिसम्बर|accessyear=2015|last= |first= |authorlink=उषा सिंह|format= |publisher=MAHABHARATA STORIES|language=हिन्दी}}</ref>


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06:36, 10 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

वृषपर्वा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वृषपर्वा (बहुविकल्पी)

वृषपर्वा का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रन्थ महाभारत में हुआ है। महाभारत के अनुसार ये एक राज ऋषि थे।[1]

महाभारत के अनुसार

जटासुर के मारे जाने पर महाराज युधिष्ठिर श्रीनर-नारायण के आश्रम में आकर रहने लगे थे। इस समय बाद उन्हें अपने भाई अर्जुन का स्मरण हो आया। वे द्रौपदी सहित सब भाइयों को बुलाकर कहने लगे- "अर्जुन ने मुझसे कहा था कि मैं पाँच वर्ष तक स्वर्ग में अस्त्र विद्या सीखने के बाद यहाँ मृत्युलोक में लौट आऊँगा। इसलिये अर्जुन जब अस्त्रविद्या सीखकर यहाँ आवे, उस समय हम लोगों को उससे मिलने के लिये तैयार रहना चाहिये।" इस प्रकार बातचीत करते हुए उन्होंने आगे के लिये प्रस्थान किया।

वे कहीं तो पैदल चलते थे, कहीं राक्षस लोग उन्हें कन्धे पर बैठाकर ले चलते। इस प्रकार रास्ते में कैलास पर्वत, मैनाक पर्वत और गन्धमादन की तलहटी को, श्वेतगिरि को तथा ऊपर-ऊपर के पहाड़ों की अनेकों निर्मल नदियों को देखते हुए वे सातवें दिन हिमालय के पवित्र पृष्ठ पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने राजर्षि वृषपर्वा का पवित्र आश्रम देखा। पांडवों ने उस आश्रम में पहुँचकर राजर्षि वृषपर्वा को प्रणाम किया। राजर्षि ने पुत्रों के समान उनका अभिनन्दन किया। पांडवों ने वहाँ सात रात निवास किया। आठवें दिन उन्होंने वृषपर्वा जी से आगे जाने की इच्छा प्रकट की। चलते समय वृषपर्वा ने पांडवों को पुत्रों की तरह उपदेश दिया। फिर उनकी आज्ञा लेकर वे उत्तर दिशा को चले।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस.पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 101 |
  2. पाण़्डवों का वृषपर्वा और आर्ष्टिषेण के आश्रमों पर जाना (हिन्दी) MAHABHARATA STORIES। अभिगमन तिथि: 17 दिसम्बर, 2015।

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