"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-2": अवतरणों में अंतर

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*देवासुर संग्राम के समय देव परस्पर विचार करके उद्गीथ '[[ॐ|ॐकार]]' की उपासना करते हैं और असुरों के पराभव की प्रार्थना करते हैं।
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*आसुरी शक्ति से बचने के लिए ॐकार साधना का विधान बताया गया है।
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-2
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय 8 (आठ)
प्रकार मुख्य उपनिषद
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह दूसरा खण्ड है। इसमें देवताओं और असुरों के मध्य हुए देवासुर संग्राम के विषय में बताया गया है।

  • देवासुर संग्राम के समय देव परस्पर विचार करके उद्गीथ 'ॐकार' की उपासना करते हैं और असुरों के पराभव की प्रार्थना करते हैं।
  • आसुरी शक्ति से बचने के लिए ॐकार साधना का विधान बताया गया है।
  • देवों की वाणी, उनके देखने व सुनने की शक्ति, मन की एकाग्रता, प्राण-शक्ति और अन्य ऋषियों की उपासना को असुर नष्ट कर डालते हैं। वे बार-बार ॐकार की उपासना में विघ्न डालते रहते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

खण्ड-1 से 6 | खण्ड-7 से 15