"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-6": अवतरणों में अंतर

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-6
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय प्रथम
कुल खण्ड 13 (तेरह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह छठा खण्ड है। इस खण्ड में पृथ्वी को 'ऋक् और अग्नि को 'साम' कहा गया है। यह अग्नि-रूप साम, पृथ्वी-रूप ऋक् में प्रतिष्ठित है। अत: ऋचा में इसी अधिष्ठित साम का गायन किया जाता है।

  • पृथ्वी को 'सा' और अग्नि को 'अम' मानकर दोनों के मिलन से 'साम' बनता है।
  • ऋषि आगे कहते हैं कि अन्तरिक्ष ही 'ऋक्' है और वायु 'साम' है। वह वायु-रूप साम अन्तरिक्ष-रूप ऋक् में प्रतिष्ठित है। अत: ऋचा में अधिष्ठित साम का गायन किया जाता है।
  • इसी प्रकार नक्षत्र, आकाश व आदित्य को 'ऋक्' मानकर और क्रमश: चन्द्र, आदित्य और नीलवर्ण मिश्रित कृष्ण प्रकाश को 'साम' मानकर उनकी उपासना की गयी है।
  • ऋग्वेद और सामवेद उसी परमपुरुष की उपासना गायन द्वारा करते हैं। वह परमपुरुष आदित्य आदि से भी ऊंचे लोकों तथा देवों का नियामक है और देवों की कामनाओं का पूरक है। यह उद्गीथ की आधिदैविक उपासना का स्वरूप है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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