"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-10": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:उपनिषद" to "Category:उपनिषदCategory:संस्कृत साहित्य") |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | |||
|चित्र=Chandogya-Upanishad.jpg | |||
|चित्र का नाम=छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ | |||
|विवरण='छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस [[उपनिषद|उपनिषदों]] में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार [[छन्द]] है। | |||
|शीर्षक 1=अध्याय | |||
|पाठ 1=प्रथम | |||
उषस्ति ने कहा-'इन्हीं में से मुझे दे दो।' | |शीर्षक 2=कुल खण्ड | ||
महावत ने उड़द दे दिये और जल पीने को दिया। उस पर उषस्ति ने कहा कि जल पीने से उन्हें जूठा जल पीने का दोष लग जायेगा। | |पाठ 2=13 (तेरह) | ||
महावत ने कहा-'क्या ये उड़द जूठे नहीं है?' | |शीर्षक 3=सम्बंधित वेद | ||
उषस्ति-'इन्हें खाये बिना मैं जीवित नहीं रह सकता था, परन्तु जल तो मुझे कहीं भी मिल जायेगा।' | |पाठ 3=[[सामवेद]] | ||
|शीर्षक 4= | |||
|पाठ 4= | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|शीर्षक 6= | |||
|पाठ 6= | |||
|शीर्षक 7= | |||
|पाठ 7= | |||
|शीर्षक 8= | |||
|पाठ 8= | |||
|शीर्षक 9= | |||
|पाठ 9= | |||
|शीर्षक 10= | |||
|पाठ 10= | |||
|संबंधित लेख=[[उपनिषद]], [[वेद]], [[वेदांग]], [[वैदिक काल]], [[संस्कृत साहित्य]] | |||
|अन्य जानकारी= [[सामवेद]] की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1|अध्याय प्रथम]] का यह दसवाँ खण्ड है। | |||
एक समय की बात है, ओलों की वृष्टि से कुरुदेश की खेती नष्ट हो गयी। उस समय इम्य ग्राम में चक्र ऋषि के पुत्र उषस्ति अपनी कम उम्र पत्नी के साथ बड़ी दीन अवस्था में रहने लगे थे। एक दिन उषस्ति ने अत्यन्त घुने उड़द खाने वाले एक निर्धन महावत से भिक्षा मांगी। तब उसने कहा- 'ऋषिवर! इन जूठे उड़द के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं है।' | |||
:उषस्ति ने कहा- 'इन्हीं में से मुझे दे दो।' | |||
:महावत ने उड़द दे दिये और [[जल]] पीने को दिया। उस पर उषस्ति ने कहा कि 'जल पीने से उन्हें जूठा जल पीने का दोष लग जायेगा।' | |||
:महावत ने कहा- 'क्या ये उड़द जूठे नहीं है?' | |||
:उषस्ति- 'इन्हें खाये बिना मैं जीवित नहीं रह सकता था, परन्तु जल तो मुझे कहीं भी मिल जायेगा।' | |||
उषस्ति ऋषि ने उन उड़द का एक भाग खाकर, दूसरा भाग अपनी पत्नी को ले जाकर दिया, परन्तु वह पहले ही बहुत-सी भिक्षा प्राप्त कर चुकी थी। अत: उसने उड़द लेकर रख लिये। दूसरे दिन प्राप्त:काल उषस्ति ऋषि ने अपनी पत्नी से थोड़ा-सा अन्न मांगा। उषस्ति ऋषि की पत्नी ने उनके दिये उड़द उन्हें सौंप दिये। ऋषि उषस्ति उन्हें खाकर समीप के राजा के यहाँ होने वाले [[यज्ञ]] में गये। वहां जाकर उन्होंने प्रस्तोता से कहा- 'जिस [[देवता]] की आप स्तुति करते हो, यदि उसे जाने बिना स्तुति करोगे, तो आपका सिर गिर जायेगा।' यही बात उन्होंने उद्गाता के पास जाकर कही और प्रतिहर्ता से भी कही। उनकी बात सुनकर प्रस्तोता, उद्गाता और प्रतिहर्ता अपने-अपने कर्मों से विरत होकर बैठ गये। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{छान्दोग्य उपनिषद}} | {{छान्दोग्य उपनिषद}} | ||
[[Category:छान्दोग्य उपनिषद]] | [[Category:छान्दोग्य उपनिषद]][[Category:दर्शन कोश]][[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | |||
[[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
14:03, 12 अगस्त 2016 का अवतरण
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-10
| |
विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | प्रथम |
कुल खण्ड | 13 (तेरह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह दसवाँ खण्ड है।
एक समय की बात है, ओलों की वृष्टि से कुरुदेश की खेती नष्ट हो गयी। उस समय इम्य ग्राम में चक्र ऋषि के पुत्र उषस्ति अपनी कम उम्र पत्नी के साथ बड़ी दीन अवस्था में रहने लगे थे। एक दिन उषस्ति ने अत्यन्त घुने उड़द खाने वाले एक निर्धन महावत से भिक्षा मांगी। तब उसने कहा- 'ऋषिवर! इन जूठे उड़द के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं है।'
- उषस्ति ने कहा- 'इन्हीं में से मुझे दे दो।'
- महावत ने उड़द दे दिये और जल पीने को दिया। उस पर उषस्ति ने कहा कि 'जल पीने से उन्हें जूठा जल पीने का दोष लग जायेगा।'
- महावत ने कहा- 'क्या ये उड़द जूठे नहीं है?'
- उषस्ति- 'इन्हें खाये बिना मैं जीवित नहीं रह सकता था, परन्तु जल तो मुझे कहीं भी मिल जायेगा।'
उषस्ति ऋषि ने उन उड़द का एक भाग खाकर, दूसरा भाग अपनी पत्नी को ले जाकर दिया, परन्तु वह पहले ही बहुत-सी भिक्षा प्राप्त कर चुकी थी। अत: उसने उड़द लेकर रख लिये। दूसरे दिन प्राप्त:काल उषस्ति ऋषि ने अपनी पत्नी से थोड़ा-सा अन्न मांगा। उषस्ति ऋषि की पत्नी ने उनके दिये उड़द उन्हें सौंप दिये। ऋषि उषस्ति उन्हें खाकर समीप के राजा के यहाँ होने वाले यज्ञ में गये। वहां जाकर उन्होंने प्रस्तोता से कहा- 'जिस देवता की आप स्तुति करते हो, यदि उसे जाने बिना स्तुति करोगे, तो आपका सिर गिर जायेगा।' यही बात उन्होंने उद्गाता के पास जाकर कही और प्रतिहर्ता से भी कही। उनकी बात सुनकर प्रस्तोता, उद्गाता और प्रतिहर्ता अपने-अपने कर्मों से विरत होकर बैठ गये।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |