"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-13": अवतरणों में अंतर
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12:58, 13 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-13
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विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | प्रथम |
कुल खण्ड | 13 (तेरह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह तेरहवाँ खण्ड है। इस खण्ड में साम सम्बन्धित साधना को शास्त्रीय संगीत की भांति स्वरों का गायन बताया गया है।
- इसमें 'हाउ' का अर्थ पृथ्वी, 'हाई' का अर्थ वायु, 'अथ' का अर्थ चन्द्रमा, 'इह' का अर्थ आत्मा, 'ई' का अर्थ अग्नि, 'ऊ' का आदित्य, 'ए' का निमन्त्रण, 'औ होम' का अर्श विश्वदेवा, 'हि' का प्रजापति, 'स्वर' प्राण का रूप है, 'या' अन्न है और 'वाक्' विराट है।
- इसके अतिरिक्त जो अनिर्वचनीय है और समस्त कार्यों में संचरित होता है, वह तेरहवां स्तोम 'हुं' है। जो इस प्रकार साम सम्बन्धी उपनिषद का महत्त्व जानकर उपासना करता है, वह प्रचुर अन्न तथा प्रदीप्त पाचक अग्नि वाला होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |