"चैतन्य महाप्रभु की कृष्ण भक्ति": अवतरणों में अंतर
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उपरोक्त अठारह शब्दीय [[कीर्तन]] महामन्त्र निमाई की ही देन है। इनका पूरा नाम 'विश्वम्भर मिश्र' और कहीं 'श्रीकृष्ण चैतन्यचन्द्र' मिलता है। चौबीसवें वर्ष की समाप्ति पर इन्होंने वैराग्य ले लिया। वे कर्मकांड के विरोधी और [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के प्रति आस्था के समर्थक थे। चैतन्य मत का एक नाम '[[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय वैष्णव मत]]' भी है। चैतन्य ने अपने जीवन का शेष भाग प्रेम और [[भक्ति]] का प्रचार करने में लगाया। उनके पंथ का द्वार सभी के लिए खुला था। [[हिन्दू]] और [[मुसलमान]] सभी ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। इनके अनुयायी चैतन्य को [[विष्णु के अवतार|विष्णु का अवतार]] मानते हैं। अपने जीवन के अठारह वर्ष उन्होंने [[ओडिशा|उड़ीसा]] में बिताये। छह वर्ष तक वे [[दक्षिण भारत]], [[वृन्दावन]] आदि स्थानों में विचरण करते रहे। छ: वर्ष [[मथुरा]] से [[जगन्नाथ पुरी|जगन्नाथ]] तक के सुविस्तृत प्रदेश में अपने सिद्धांतों का प्रचार किया तथा [[कृष्ण]] की भक्ति की ओर लोगों को प्रवृत्त किया। | उपरोक्त अठारह शब्दीय [[कीर्तन]] महामन्त्र निमाई की ही देन है। इनका पूरा नाम 'विश्वम्भर मिश्र' और कहीं 'श्रीकृष्ण चैतन्यचन्द्र' मिलता है। चौबीसवें वर्ष की समाप्ति पर इन्होंने वैराग्य ले लिया। वे कर्मकांड के विरोधी और [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के प्रति आस्था के समर्थक थे। चैतन्य मत का एक नाम '[[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय वैष्णव मत]]' भी है। चैतन्य ने अपने जीवन का शेष भाग प्रेम और [[भक्ति]] का प्रचार करने में लगाया। उनके पंथ का द्वार सभी के लिए खुला था। [[हिन्दू]] और [[मुसलमान]] सभी ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। इनके अनुयायी चैतन्य को [[विष्णु के अवतार|विष्णु का अवतार]] मानते हैं। अपने जीवन के अठारह वर्ष उन्होंने [[ओडिशा|उड़ीसा]] में बिताये। छह वर्ष तक वे [[दक्षिण भारत]], [[वृन्दावन]] आदि स्थानों में विचरण करते रहे। छ: वर्ष [[मथुरा]] से [[जगन्नाथ पुरी|जगन्नाथ]] तक के सुविस्तृत प्रदेश में अपने सिद्धांतों का प्रचार किया तथा [[कृष्ण]] की भक्ति की ओर लोगों को प्रवृत्त किया। | ||
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13:50, 27 अगस्त 2016 का अवतरण
चैतन्य को इनके अनुयायी कृष्ण का अवतार भी मानते रहे हैं। सन 1509 में जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने बिहार के गया नगर में गए, तब वहां इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक संत से हुई। उन्होंने निमाई से 'कृष्ण-कृष्ण' रटने को कहा। तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे।
कृष्ण के प्रति निष्ठा
भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गए। सर्वप्रथम नित्यानंद प्रभु व अद्वैताचार्य महाराज इनके शिष्य बने। इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की। निमाई ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झाँझ, मंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर 'हरि नाम संकीर्तन' करना प्रारंभ किया।
महामन्त्र
हरे-कृष्ण, हरे-कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण, हरे-हरे। हरे-राम, हरे-राम, राम-राम, हरे-हरे
उपरोक्त अठारह शब्दीय कीर्तन महामन्त्र निमाई की ही देन है। इनका पूरा नाम 'विश्वम्भर मिश्र' और कहीं 'श्रीकृष्ण चैतन्यचन्द्र' मिलता है। चौबीसवें वर्ष की समाप्ति पर इन्होंने वैराग्य ले लिया। वे कर्मकांड के विरोधी और श्रीकृष्ण के प्रति आस्था के समर्थक थे। चैतन्य मत का एक नाम 'गौड़ीय वैष्णव मत' भी है। चैतन्य ने अपने जीवन का शेष भाग प्रेम और भक्ति का प्रचार करने में लगाया। उनके पंथ का द्वार सभी के लिए खुला था। हिन्दू और मुसलमान सभी ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। इनके अनुयायी चैतन्य को विष्णु का अवतार मानते हैं। अपने जीवन के अठारह वर्ष उन्होंने उड़ीसा में बिताये। छह वर्ष तक वे दक्षिण भारत, वृन्दावन आदि स्थानों में विचरण करते रहे। छ: वर्ष मथुरा से जगन्नाथ तक के सुविस्तृत प्रदेश में अपने सिद्धांतों का प्रचार किया तथा कृष्ण की भक्ति की ओर लोगों को प्रवृत्त किया।
चैतन्य महाप्रभु की कृष्ण भक्ति |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- चैतन्य महाप्रभु
- गौरांग ने आबाद किया कृष्ण का वृन्दावन
- Gaudiya Vaishnava
- Lord Gauranga (Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu)
- Gaudiya History
- Sri Gaura Purnima Special: Scriptures that Reveal Lord Chaitanya’s Identity as Lord Krishna
- Gaudiya Vaishnavas
- चैतन्य महाप्रभु - जीवन परिचय
- परिचय- चैतन्य महाप्रभु
- जीवनी/आत्मकथा >> चैतन्य महाप्रभु (लेखक- अमृतलाल नागर)
- श्री संत चैतन्य महाप्रभु
- चैतन्य महाप्रभु यदि वृन्दावन न आये होते तो शायद ही कोई पहचान पाता कान्हा की लीला स्थली को
- Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)
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