"दक्ष": अवतरणों में अंतर
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'''प्रजापति दक्ष''' | '''प्रजापति दक्ष''' [[महाभारत]] के अनुसार जिसकी उत्पत्ति [[ब्रह्मा]] के अंगूठे से हुई थी। उसी अंगूठे से यज्ञ-पत्नी भी पैदा हुई। दक्ष की गणना उन प्रजातियों में होती है, जिनमें देवता उत्पन्न हुए थे। दक्ष, आदित्यवर्ग के [[देवता|देवताओं]] में से एक माने जाते हैं। कहा जाता है कि [[अदिति]] ने दक्ष को तथा दक्ष ने अदिति को जन्म दिया। यहाँ अदिति सृष्टि के स्त्रीतत्त्व एवं दक्ष पुरुषतत्त्व का प्रतीक दिया है। दक्ष को बलशाली, बुद्धिशाली, अन्तर्दृष्टि-युक्त एवं इच्छाशक्ति सम्पन्न कहा गया है। उसकी तुलना वरुण के उत्पादनकार्य, शक्ति एवं कला से हो सकती है। [[स्कन्द पुराण]] में दक्ष प्रजापति की विस्तुत पौराणिक कथा दी हुई है। दक्ष की पुत्री [[सती]] [[शिव]] से ब्याही गयी थी। दक्ष ने एक यज्ञ किया, जिसमें अन्य देवताओं को निमन्त्रण दिया किंतु शिव को नहीं बुलाया। सती अनिमंत्रित पिता के यहाँ गयी और यज्ञ में पति का भाग न देखकर उसने अपना शरीर त्याग दिया। इस घटना से कुद्ध हो-कर शिव ने अपने गणों को भेजा जिन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। शिव सती के शव को कंधे पर लेकर विक्षिप्त घूमते रहे। जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग गिरे वहाँ-वहाँ विविध तीर्थ बन गये।<ref>पुस्तक- हिंदू धर्मकोश |लेखक- डॉ. राजबली पाण्डेय| प्रकाशन- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान | पृष्ठ- 309</ref> | ||
==दक्ष की 84 पुत्रियों और उनके पतियों के नाम== | |||
[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता [[ब्रह्मा]] के पुत्र थे जो उनके दाहिने पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियाँ थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएँ थीं और वीरणी से साठ कन्याएँ। उन सभी का वर्णन नीचे दिया है और साथ हीं साथ उनके पतियों का नाम भी दिया गया है- | |||
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# क्षमा (महर्षि पुलह) | |||
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# अनुसूया (महर्षि अत्रि) | |||
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;वीरणी से दक्ष की 60 पुत्रियाँ और उनके पति | |||
# मरुवती (धर्म) | |||
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# जामी (धर्म) | |||
# लंबा (धर्म) | |||
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# अदिति (महर्षि कश्यप) | |||
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# अभिजीत (चंद्रमा) | |||
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# अश्वयुज (चंद्रमा) | |||
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==दक्ष की पुत्री सती का विवाह== | |||
दक्ष की पुत्री सती का विवाह [[शिव]] के साथ हुआ था। शिव सदा भभूत लगाए, सर्प लपेटे और मुंडमाला पहने रहते थे। उनका यह विचित्र वेश देखकर दक्ष उनसे असंतुष्ट रहते थे। उसने एक बार यज्ञ का आयोजन किया। उनमें अपने अन्य सभी जामाताओं को आमंत्रित किया, किंतु शिव को नहीं बुलाया। शिव की पत्नी सती बिना बुलाए ही वहाँ पहुंच गई। उसने देखा कि अन्य सब देवताओं का प्राप्तांश यज्ञ में रखा गया है, पर शिव का अंश नहीं रखा गया। वह अपने पति का यह अपमान न सह सकी और उसने यज्ञकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। इस पर शिव के गणों ने यज्ञ विध्वंस कर डाला। शिव सती का शव लेकर उन्मत की भांति भ्रमण करने लगे। उनका मोह भंग करने के लिए [[विष्णु]] ने अपने [[चक्र]] से सती की मृत देह को काट-काट कर गिराना आरम्भ किया वे अंग 51 स्थानों पर गिरे जो देवी के [[शक्तिपीठ]] कहलाते हैं।<ref>पुस्तक- भारतीय संस्कृति कोश | प्रकाशन- यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन नई दिल्ली | पृष्ठ- 404</ref> | |||
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14:03, 9 अक्टूबर 2016 का अवतरण
प्रजापति दक्ष महाभारत के अनुसार जिसकी उत्पत्ति ब्रह्मा के अंगूठे से हुई थी। उसी अंगूठे से यज्ञ-पत्नी भी पैदा हुई। दक्ष की गणना उन प्रजातियों में होती है, जिनमें देवता उत्पन्न हुए थे। दक्ष, आदित्यवर्ग के देवताओं में से एक माने जाते हैं। कहा जाता है कि अदिति ने दक्ष को तथा दक्ष ने अदिति को जन्म दिया। यहाँ अदिति सृष्टि के स्त्रीतत्त्व एवं दक्ष पुरुषतत्त्व का प्रतीक दिया है। दक्ष को बलशाली, बुद्धिशाली, अन्तर्दृष्टि-युक्त एवं इच्छाशक्ति सम्पन्न कहा गया है। उसकी तुलना वरुण के उत्पादनकार्य, शक्ति एवं कला से हो सकती है। स्कन्द पुराण में दक्ष प्रजापति की विस्तुत पौराणिक कथा दी हुई है। दक्ष की पुत्री सती शिव से ब्याही गयी थी। दक्ष ने एक यज्ञ किया, जिसमें अन्य देवताओं को निमन्त्रण दिया किंतु शिव को नहीं बुलाया। सती अनिमंत्रित पिता के यहाँ गयी और यज्ञ में पति का भाग न देखकर उसने अपना शरीर त्याग दिया। इस घटना से कुद्ध हो-कर शिव ने अपने गणों को भेजा जिन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। शिव सती के शव को कंधे पर लेकर विक्षिप्त घूमते रहे। जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग गिरे वहाँ-वहाँ विविध तीर्थ बन गये।[1]
दक्ष की 84 पुत्रियों और उनके पतियों के नाम
पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे जो उनके दाहिने पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियाँ थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएँ थीं और वीरणी से साठ कन्याएँ। उन सभी का वर्णन नीचे दिया है और साथ हीं साथ उनके पतियों का नाम भी दिया गया है-
- प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियाँ और उनके पति
- श्रद्धा (धर्म)
- लक्ष्मी (धर्म)
- धृति (धर्म)
- तुष्टि (धर्म)
- पुष्टि (धर्म)
- मेधा (धर्म)
- क्रिया (धर्म)
- बुद्धि (धर्म)
- लज्जा (धर्म)
- वपु (धर्म)
- शांति (धर्म)
- सिद्धि (धर्म)
- कीर्ति (धर्म)
- ख्याति (महर्षि भृगु)
- सती (रूद्र)
- सम्भूति (महर्षि मरीचि)
- स्मृति (महर्षि अंगिरस)
- प्रीति (महर्षि पुलत्स्य)
- क्षमा (महर्षि पुलह)
- सन्नति (कृतु)
- अनुसूया (महर्षि अत्रि)
- उर्जा (महर्षि वशिष्ठ)
- स्वाहा (अग्नि)
- स्वधा (पितृस)
- वीरणी से दक्ष की 60 पुत्रियाँ और उनके पति
- मरुवती (धर्म)
- वसु (धर्म)
- जामी (धर्म)
- लंबा (धर्म)
- भानु (धर्म)
- अरुंधती (धर्म)
- संकल्प (धर्म)
- महूर्त (धर्म)
- संध्या (धर्म)
- विश्वा (धर्म)
- अदिति (महर्षि कश्यप)
- दिति (महर्षि कश्यप)
- दनु (महर्षि कश्यप)
- काष्ठा (महर्षि कश्यप)
- अरिष्टा (महर्षि कश्यप)
- सुरसा (महर्षि कश्यप)
- इला (महर्षि कश्यप)
- मुनि (महर्षि कश्यप)
- क्रोधवषा (महर्षि कश्यप)
- तामरा (महर्षि कश्यप)
- सुरभि (महर्षि कश्यप)
- सरमा (महर्षि कश्यप)
- तिमि (महर्षि कश्यप)
- कृतिका (चंद्रमा)
- रोहिणी (चंद्रमा)
- मृगशिरा (चंद्रमा)
- आद्रा (चंद्रमा)
- पुनर्वसु (चंद्रमा)
- सुन्रिता (चंद्रमा)
- पुष्य (चंद्रमा)
- अश्लेषा (चंद्रमा)
- मेघा (चंद्रमा)
- स्वाति (चंद्रमा)
- चित्रा (चंद्रमा)
- फाल्गुनी (चंद्रमा)
- हस्ता (चंद्रमा)
- राधा (चंद्रमा)
- विशाखा (चंद्रमा)
- अनुराधा (चंद्रमा)
- ज्येष्ठा (चंद्रमा)
- मुला (चंद्रमा)
- अषाढ़ (चंद्रमा)
- अभिजीत (चंद्रमा)
- श्रावण (चंद्रमा)
- सर्विष्ठ (चंद्रमा)
- सताभिषक (चंद्रमा)
- प्रोष्ठपदस (चंद्रमा)
- रेवती (चंद्रमा)
- अश्वयुज (चंद्रमा)
- भरणी (चंद्रमा)
- रति (कामदेव)
- स्वरूपा (भूत)
- भूता (भूत)
- स्वधा (अंगिरा प्रजापति)
- अर्चि (कृशाश्वा)
- दिशाना (कृशाश्वा)
- विनीता (तार्क्ष्य कश्यप)
- कद्रू (तार्क्ष्य कश्यप)
- पतंगी (तार्क्ष्य कश्यप)
- यामिनी (तार्क्ष्य कश्यप)[2]
दक्ष की पुत्री सती का विवाह
दक्ष की पुत्री सती का विवाह शिव के साथ हुआ था। शिव सदा भभूत लगाए, सर्प लपेटे और मुंडमाला पहने रहते थे। उनका यह विचित्र वेश देखकर दक्ष उनसे असंतुष्ट रहते थे। उसने एक बार यज्ञ का आयोजन किया। उनमें अपने अन्य सभी जामाताओं को आमंत्रित किया, किंतु शिव को नहीं बुलाया। शिव की पत्नी सती बिना बुलाए ही वहाँ पहुंच गई। उसने देखा कि अन्य सब देवताओं का प्राप्तांश यज्ञ में रखा गया है, पर शिव का अंश नहीं रखा गया। वह अपने पति का यह अपमान न सह सकी और उसने यज्ञकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। इस पर शिव के गणों ने यज्ञ विध्वंस कर डाला। शिव सती का शव लेकर उन्मत की भांति भ्रमण करने लगे। उनका मोह भंग करने के लिए विष्णु ने अपने चक्र से सती की मृत देह को काट-काट कर गिराना आरम्भ किया वे अंग 51 स्थानों पर गिरे जो देवी के शक्तिपीठ कहलाते हैं।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- हिंदू धर्मकोश |लेखक- डॉ. राजबली पाण्डेय| प्रकाशन- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान | पृष्ठ- 309
- ↑ दक्ष प्रजापति की पुत्रियों और उनके पतियों के नाम (हिन्दी) धर्मसंसार। अभिगमन तिथि: 09 अक्टूबर, 2016।
- ↑ पुस्तक- भारतीय संस्कृति कोश | प्रकाशन- यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन नई दिल्ली | पृष्ठ- 404
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