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'''प्रजापति दक्ष''' भगवान [[ब्रह्मा]] के दक्षिणा अंगुष्ठ से उत्पन्न हुए। कल्पान्तर में वही [[प्रचेता]] के पुत्र हुए। सृष्टा की आज्ञा से वे प्रजा की सृष्टि करने में लगे। उन्होंने प्रजापति वीरण की कन्या असिकी को पत्नी बनाया। इनकी पुत्री का नाम [[अरिष्टा]] था। सर्वप्रथम इन्होंने दस सहस्त्र हर्यश्व नामक पुत्र उत्पन्न किये। ये सब समान स्वभाव के थे। पिता की आज्ञा से ये सृष्टि के निमित्त तप में प्रवृत्त हुए, परंतु देवर्षि [[नारद]] ने उपदेश देकर उन्हें विरक्त बना दिया।  दूसरी बार एक सहस्त्र शबलाश्व (सरलाश्व) नामक पुत्र उत्पन्न किये। ये भी देवर्षि के उपदेश से यति हो गये। दक्ष को रोष आया। उन्होंने देवर्षि को शाप दे दिया- 'तुम दो घड़ी से अधिक कहीं स्थिर न रह सकोगे।' भगवान ब्रह्मा ने प्रजापति को शान्त किया। अब मानसिक सृष्टि से वे उपरत हुए। उन्होंने अपनी पत्नी से 53 कन्याएँ उत्पन्न कीं। इनमें 10 धर्म को, 13 महर्षि [[कश्यप]] को, 27 [[चंद्रमा देवता|चंद्रमा]] को, एक पितरों को, एक [[अग्निदेव|अग्नि]] को और एक भगवान [[शंकर]] को ब्याही गयीं। [[कश्यप|महर्षि कश्यप]] को विवाहित 13 कन्याओं से ही जगत के समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। वे लोकमाताएँ कही जाती हैं।
'''प्रजापति दक्ष''' [[महाभारत]] के अनुसार जिसकी उत्पत्ति [[ब्रह्मा]] के अंगूठे से हुई थी। उसी अंगूठे से यज्ञ-पत्नी भी पैदा हुई। दक्ष की गणना उन प्रजातियों में होती है, जिनमें देवता उत्पन्न हुए थे। दक्ष, आदित्यवर्ग के [[देवता|देवताओं]] में से एक माने जाते हैं। कहा जाता है कि [[अदिति]] ने दक्ष को तथा दक्ष ने अदिति को जन्म दिया। यहाँ अदिति सृष्टि के स्त्रीतत्त्व एवं दक्ष पुरुषतत्त्व का प्रतीक दिया है। दक्ष को बलशाली, बुद्धिशाली, अन्तर्दृष्टि-युक्त एवं इच्छाशक्ति सम्पन्न कहा गया है। उसकी तुलना वरुण के उत्पादनकार्य, शक्ति एवं कला से हो सकती है। [[स्कन्द पुराण]] में दक्ष प्रजापति की विस्तुत पौराणिक कथा दी हुई है। दक्ष की पुत्री [[सती]] [[शिव]] से ब्याही गयी थी। दक्ष ने एक यज्ञ किया, जिसमें अन्य देवताओं को निमन्त्रण दिया किंतु शिव को नहीं बुलाया। सती अनिमंत्रित पिता के यहाँ गयी और यज्ञ में पति का भाग न देखकर उसने अपना शरीर त्याग दिया। इस घटना से कुद्ध हो-कर शिव ने अपने गणों को भेजा जिन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। शिव सती के शव को कंधे पर लेकर विक्षिप्त घूमते रहे। जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग गिरे वहाँ-वहाँ विविध तीर्थ बन गये।<ref>पुस्तक- हिंदू धर्मकोश |लेखक- डॉ. राजबली पाण्डेय| प्रकाशन- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान | पृष्ठ- 309</ref>
==अश्वमेध यज्ञ का आयोजन==
==दक्ष की 84 पुत्रियों और उनके पतियों के नाम==
दक्ष प्रजापति ने [[अश्वमेध यज्ञ]] का आयोजन किया। भगवान शंकर से विवाद करके दक्ष ने उन्हें यज्ञ में भाग नहीं दिया। उस यज्ञ में दधीचि मुनि भी उपस्थित थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय संस्कृति-कोश|लेखक= लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजपाल एण्ड सन्स, दिल्ली|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=404|url=}}</ref> उन्होंने देखा कि शिव के अतिरिक्त सभी देवता वहाँ विद्यमान है।, अत: उन्होंने दक्ष का ध्यान इस ओर केंद्रित किया। दक्ष ने उपेक्षा भाव से कहा- '''हाथों में त्रिशूल और मस्तक पर जटाजूट धारण करनेवाले ग्यारह रुद्र हमारे यहाँ रहते हैं। उनके अलावा किसी महादेव को मैं नहीं जानता।''' दधीचि को लगा, सब देवताओं ने मिलकर शिव को न बुलाने की मंत्रणा की है। उन्होंने कहा- ''मैं भावी संहार की आंशका से त्रस्त हूं- बड़ों की अवमानना का फल यही होता है।'' किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। कैलास पर्वत पर पार्वती ने भी शिव को ध्यान दिलाया- ''सब देवता यज्ञ में सम्मिलित हो रहे हैं?'' शिव ने क्रुद्ध होकर अपने मुंह से वीरभद्र नामक भयंकर प्राणी की सृष्टि की तथा उसे दक्ष का यज्ञ नष्ट करने के लिए कहा। भवानी के क्रोध से प्रकट महाकाली महेश्वरी भी यज्ञ नष्ट करने के लिए गयी। समस्त अतिथि, देवता, दास इत्यादि भयभीत होने लगे। देवताओं ने वीरभद्र के आने का निमित्त पूछा। वीरभद्र ने पार्वती के रोष के कारण यज्ञ नष्ट करने का अपना निश्चय बताया तो दक्ष ने शिव की आराधना प्रारंभ की। वीरभद्र के रोम-कूपों से अनेक रौम्य नामक गणेश्वर प्रकट हुए थे। वे विध्वंस कार्य में लगे हुए थे। दक्ष की आराधना से प्रसन्न होकर शिव ने अग्नि के समान ओजस्वी रूप में दर्शन दिये और उसकी मनोकामना जानकर यज्ञ के नष्ट-भ्रष्ट तत्त्वों को पुन: ठीक कर दिया। दक्ष ने एक हज़ार आठ नामों (शिव सहस्त्र नाम स्तोत्र) से शिव की आराधना की और उनकी शरण ग्रहण की। शिव ने प्रसन्न होकर उसे एक हज़ार अश्वमेध यज्ञों, एक सौ [[वाजपेय|वाजपेय यज्ञों]] तथा पाशुपत् व्रत का फल प्रदान किया।
[[पुराण|पुराणों]] के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता [[ब्रह्मा]] के पुत्र थे जो उनके दाहिने पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियाँ थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएँ थीं और वीरणी से साठ कन्याएँ। उन सभी का वर्णन नीचे दिया है और साथ हीं साथ उनके पतियों का नाम भी दिया गया है-
;प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियाँ और उनके पति
# श्रद्धा ([[धर्मराज (यमराज) |धर्म]])
# लक्ष्मी (धर्म)
# धृति (धर्म) 
# तुष्टि (धर्म) 
# पुष्टि (धर्म) 
# मेधा (धर्म)
# क्रिया (धर्म) 
# बुद्धि (धर्म) 
# लज्जा (धर्म) 
# वपु (धर्म) 
# शांति (धर्म) 
# सिद्धि (धर्म) 
# कीर्ति (धर्म)
# ख्याति ([[भृगु|महर्षि भृगु]])
# [[सती]] (रूद्र)
# सम्भूति ([[मरीचि|महर्षि मरीचि]])
# स्मृति ([[अंगिरस|महर्षि अंगिरस]])
# प्रीति (महर्षि पुलत्स्य)
# क्षमा (महर्षि पुलह)
# सन्नति (कृतु)
# अनुसूया (महर्षि अत्रि)
# उर्जा (महर्षि वशिष्ठ)
# स्वाहा (अग्नि)
# स्वधा (पितृस)
;वीरणी से दक्ष की 60 पुत्रियाँ और उनके पति
# मरुवती (धर्म)
# वसु (धर्म)
# जामी (धर्म) 
# लंबा (धर्म)
# भानु (धर्म)
# अरुंधती (धर्म)
# संकल्प (धर्म)
# महूर्त (धर्म)
# संध्या (धर्म)
# विश्वा (धर्म)
# अदिति (महर्षि कश्यप)
# दिति (महर्षि कश्यप)
# दनु (महर्षि कश्यप)
# काष्ठा (महर्षि कश्यप)
# अरिष्टा (महर्षि कश्यप)
# सुरसा (महर्षि कश्यप)
# इला (महर्षि कश्यप)
# मुनि (महर्षि कश्यप)
# क्रोधवषा (महर्षि कश्यप)
# तामरा (महर्षि कश्यप)
# सुरभि (महर्षि कश्यप)
# सरमा (महर्षि कश्यप)
# तिमि (महर्षि कश्यप)
# कृतिका (चंद्रमा)
# रोहिणी (चंद्रमा)
# मृगशिरा (चंद्रमा)
# आद्रा (चंद्रमा)
# पुनर्वसु (चंद्रमा)
# सुन्रिता (चंद्रमा)
# पुष्य (चंद्रमा)
# अश्लेषा (चंद्रमा)
# मेघा (चंद्रमा)
# स्वाति (चंद्रमा)
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# हस्ता (चंद्रमा) 
# राधा (चंद्रमा)
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# सर्विष्ठ (चंद्रमा)
# सताभिषक (चंद्रमा)
# प्रोष्ठपदस (चंद्रमा)
# रेवती (चंद्रमा)
# अश्वयुज (चंद्रमा)
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# स्वरूपा (भूत)
# भूता (भूत)
# स्वधा (अंगिरा प्रजापति)
# अर्चि (कृशाश्वा)
# दिशाना (कृशाश्वा)
# विनीता (तार्क्ष्य कश्यप)
# कद्रू (तार्क्ष्य कश्यप)
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# यामिनी (तार्क्ष्य कश्यप)<ref>{{cite web |url=http://www.dharmsansar.com/2013/08/blog-post.html|title=दक्ष प्रजापति की पुत्रियों और उनके पतियों के नाम |accessmonthday=09 अक्टूबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=धर्मसंसार |language=हिन्दी }}</ref>
==दक्ष की पुत्री सती का विवाह==
दक्ष की पुत्री सती का विवाह [[शिव]] के साथ हुआ था। शिव सदा भभूत लगाए, सर्प लपेटे और मुंडमाला पहने रहते थे। उनका यह विचित्र वेश देखकर दक्ष उनसे असंतुष्ट रहते थे। उसने एक बार यज्ञ का आयोजन किया। उनमें अपने अन्य सभी जामाताओं को आमंत्रित किया, किंतु शिव को नहीं बुलाया। शिव की पत्नी सती बिना बुलाए ही वहाँ पहुंच गई। उसने देखा कि अन्य सब देवताओं का प्राप्तांश यज्ञ में रखा गया है, पर शिव का अंश नहीं रखा गया। वह अपने पति का यह अपमान न सह सकी और उसने यज्ञकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। इस पर शिव के गणों ने यज्ञ विध्वंस कर डाला। शिव सती का शव लेकर उन्मत की भांति भ्रमण करने लगे। उनका मोह भंग करने के लिए [[विष्णु]] ने अपने [[चक्र]] से सती की मृत देह को काट-काट कर गिराना आरम्भ किया वे अंग 51 स्थानों पर गिरे जो देवी के [[शक्तिपीठ]] कहलाते हैं।<ref>पुस्तक- भारतीय संस्कृति कोश | प्रकाशन- यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन नई दिल्ली | पृष्ठ- 404</ref>
 


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14:03, 9 अक्टूबर 2016 का अवतरण

प्रजापति दक्ष महाभारत के अनुसार जिसकी उत्पत्ति ब्रह्मा के अंगूठे से हुई थी। उसी अंगूठे से यज्ञ-पत्नी भी पैदा हुई। दक्ष की गणना उन प्रजातियों में होती है, जिनमें देवता उत्पन्न हुए थे। दक्ष, आदित्यवर्ग के देवताओं में से एक माने जाते हैं। कहा जाता है कि अदिति ने दक्ष को तथा दक्ष ने अदिति को जन्म दिया। यहाँ अदिति सृष्टि के स्त्रीतत्त्व एवं दक्ष पुरुषतत्त्व का प्रतीक दिया है। दक्ष को बलशाली, बुद्धिशाली, अन्तर्दृष्टि-युक्त एवं इच्छाशक्ति सम्पन्न कहा गया है। उसकी तुलना वरुण के उत्पादनकार्य, शक्ति एवं कला से हो सकती है। स्कन्द पुराण में दक्ष प्रजापति की विस्तुत पौराणिक कथा दी हुई है। दक्ष की पुत्री सती शिव से ब्याही गयी थी। दक्ष ने एक यज्ञ किया, जिसमें अन्य देवताओं को निमन्त्रण दिया किंतु शिव को नहीं बुलाया। सती अनिमंत्रित पिता के यहाँ गयी और यज्ञ में पति का भाग न देखकर उसने अपना शरीर त्याग दिया। इस घटना से कुद्ध हो-कर शिव ने अपने गणों को भेजा जिन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। शिव सती के शव को कंधे पर लेकर विक्षिप्त घूमते रहे। जहाँ-जहाँ सती के शरीर के अंग गिरे वहाँ-वहाँ विविध तीर्थ बन गये।[1]

दक्ष की 84 पुत्रियों और उनके पतियों के नाम

पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे जो उनके दाहिने पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियाँ थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएँ थीं और वीरणी से साठ कन्याएँ। उन सभी का वर्णन नीचे दिया है और साथ हीं साथ उनके पतियों का नाम भी दिया गया है-

प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियाँ और उनके पति
  1. श्रद्धा (धर्म)
  2. लक्ष्मी (धर्म)
  3. धृति (धर्म)
  4. तुष्टि (धर्म)
  5. पुष्टि (धर्म)
  6. मेधा (धर्म)
  7. क्रिया (धर्म)
  8. बुद्धि (धर्म)
  9. लज्जा (धर्म)
  10. वपु (धर्म)
  11. शांति (धर्म)
  12. सिद्धि (धर्म)
  13. कीर्ति (धर्म)
  14. ख्याति (महर्षि भृगु)
  15. सती (रूद्र)
  16. सम्भूति (महर्षि मरीचि)
  17. स्मृति (महर्षि अंगिरस)
  18. प्रीति (महर्षि पुलत्स्य)
  19. क्षमा (महर्षि पुलह)
  20. सन्नति (कृतु)
  21. अनुसूया (महर्षि अत्रि)
  22. उर्जा (महर्षि वशिष्ठ)
  23. स्वाहा (अग्नि)
  24. स्वधा (पितृस)
वीरणी से दक्ष की 60 पुत्रियाँ और उनके पति
  1. मरुवती (धर्म)
  2. वसु (धर्म)
  3. जामी (धर्म)
  4. लंबा (धर्म)
  5. भानु (धर्म)
  6. अरुंधती (धर्म)
  7. संकल्प (धर्म)
  8. महूर्त (धर्म)
  9. संध्या (धर्म)
  10. विश्वा (धर्म)
  11. अदिति (महर्षि कश्यप)
  12. दिति (महर्षि कश्यप)
  13. दनु (महर्षि कश्यप)
  14. काष्ठा (महर्षि कश्यप)
  15. अरिष्टा (महर्षि कश्यप)
  16. सुरसा (महर्षि कश्यप)
  17. इला (महर्षि कश्यप)
  18. मुनि (महर्षि कश्यप)
  19. क्रोधवषा (महर्षि कश्यप)
  20. तामरा (महर्षि कश्यप)
  21. सुरभि (महर्षि कश्यप)
  22. सरमा (महर्षि कश्यप)
  23. तिमि (महर्षि कश्यप)
  24. कृतिका (चंद्रमा)
  25. रोहिणी (चंद्रमा)
  26. मृगशिरा (चंद्रमा)
  27. आद्रा (चंद्रमा)
  28. पुनर्वसु (चंद्रमा)
  29. सुन्रिता (चंद्रमा)
  30. पुष्य (चंद्रमा)
  31. अश्लेषा (चंद्रमा)
  32. मेघा (चंद्रमा)
  33. स्वाति (चंद्रमा)
  34. चित्रा (चंद्रमा)
  35. फाल्गुनी (चंद्रमा)
  36. हस्ता (चंद्रमा)
  37. राधा (चंद्रमा)
  38. विशाखा (चंद्रमा)
  39. अनुराधा (चंद्रमा)
  40. ज्येष्ठा (चंद्रमा)
  41. मुला (चंद्रमा)
  42. अषाढ़ (चंद्रमा)
  43. अभिजीत (चंद्रमा)
  44. श्रावण (चंद्रमा)
  45. सर्विष्ठ (चंद्रमा)
  46. सताभिषक (चंद्रमा)
  47. प्रोष्ठपदस (चंद्रमा)
  48. रेवती (चंद्रमा)
  49. अश्वयुज (चंद्रमा)
  50. भरणी (चंद्रमा)
  51. रति (कामदेव)
  52. स्वरूपा (भूत)
  53. भूता (भूत)
  54. स्वधा (अंगिरा प्रजापति)
  55. अर्चि (कृशाश्वा)
  56. दिशाना (कृशाश्वा)
  57. विनीता (तार्क्ष्य कश्यप)
  58. कद्रू (तार्क्ष्य कश्यप)
  59. पतंगी (तार्क्ष्य कश्यप)
  60. यामिनी (तार्क्ष्य कश्यप)[2]

दक्ष की पुत्री सती का विवाह

दक्ष की पुत्री सती का विवाह शिव के साथ हुआ था। शिव सदा भभूत लगाए, सर्प लपेटे और मुंडमाला पहने रहते थे। उनका यह विचित्र वेश देखकर दक्ष उनसे असंतुष्ट रहते थे। उसने एक बार यज्ञ का आयोजन किया। उनमें अपने अन्य सभी जामाताओं को आमंत्रित किया, किंतु शिव को नहीं बुलाया। शिव की पत्नी सती बिना बुलाए ही वहाँ पहुंच गई। उसने देखा कि अन्य सब देवताओं का प्राप्तांश यज्ञ में रखा गया है, पर शिव का अंश नहीं रखा गया। वह अपने पति का यह अपमान न सह सकी और उसने यज्ञकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। इस पर शिव के गणों ने यज्ञ विध्वंस कर डाला। शिव सती का शव लेकर उन्मत की भांति भ्रमण करने लगे। उनका मोह भंग करने के लिए विष्णु ने अपने चक्र से सती की मृत देह को काट-काट कर गिराना आरम्भ किया वे अंग 51 स्थानों पर गिरे जो देवी के शक्तिपीठ कहलाते हैं।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिंदू धर्मकोश |लेखक- डॉ. राजबली पाण्डेय| प्रकाशन- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान | पृष्ठ- 309
  2. दक्ष प्रजापति की पुत्रियों और उनके पतियों के नाम (हिन्दी) धर्मसंसार। अभिगमन तिथि: 09 अक्टूबर, 2016।
  3. पुस्तक- भारतीय संस्कृति कोश | प्रकाशन- यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन नई दिल्ली | पृष्ठ- 404

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