"शहीद दिवस": अवतरणों में अंतर

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==इतिहास==
==इतिहास==
भारत एक महान देश है। यहां का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। यह देश अपने अंदर ऐसी कई संस्कृतियां समेटे हुए है जिसने इसे विश्व की सबसे समृद्ध [[संस्कृति]] वाला देश बनाया है। यह देश उन वीरों की कर्मभूमि भी रही है जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किए बिना इस देश के लिए कार्य किए हैं। अपने वतन के लिए प्राणों की बलि देने से भी हमारे वीर कभी पीछे नहीं हटे। देश को स्वतंत्र कराने के लिए देश के वीरों ने अपनी जान की आहुति तक दी। आज़ादी के बाद भी हमारे वीर सैनिकों ने सीमाओं पर हमारी हिफाजत के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगाया। अदालती आदेश के मुताबिक [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]] और [[सुखदेव]] को [[24 मार्च]], [[1931]] को फांसी लगाई जानी थी, सुबह क़रीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम क़रीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातों रात ले जाकर [[व्यास नदी]] के किनारे जला दिए गए। अंग्रेज़ी हुकूमत ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और 24 मार्च को होने वाले विद्रोह की वजह से 23 मार्च को ही भगतसिंह और अन्य को फांसी दे दी थी। [[चित्र:Raj-Ghat-Delhi.jpg|thumb|left|[[महात्मा गाँधी]] स्मारक, [[राजघाट दिल्ली|राजघाट]], [[दिल्ली]]]] दरअसल यह पूरी घटना भारतीय क्रांतिकारियों की अंग्रेज़ी हुकूमत को हिला देने वाली घटना की वजह से हुई। [[8 अप्रैल]] [[1929]] के दिन [[चंद्रशेखर आज़ाद]] के नेतृत्व में ‘पब्लिक सेफ्टी’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के विरोध में ‘सेंट्रल असेंबली’ में बम फेंका। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगतसिंह ने बम फेंका। इसके पश्चात क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला। भगत सिंह और [[बटुकेश्र्वर दत्त]] को आजीवन कारावास मिला।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2012/03/23/shahid-diwas-bhagat-singh-rajugurusukhdev/ |title=शहीद दिवस: कब क्यूं और कैसे |accessmonthday=17 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जंक्शन |language= हिन्दी}}</ref>
भारत एक महान देश है। यहां का [[इतिहास]] बेहद गौरवशाली रहा है। यह देश अपने अंदर ऐसी कई संस्कृतियां समेटे हुए है, जिसने इसे विश्व की सबसे समृद्ध [[संस्कृति]] वाला देश बनाया है। यह देश उन वीरों की कर्मभूमि भी रही है, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किए बिना इस देश के लिए कार्य किए हैं। अपने वतन के लिए प्राणों की बलि देने से भी हमारे वीर कभी पीछे नहीं हटे। देश को स्वतंत्र कराने के लिए देश के वीरों ने अपनी जान की आहुति तक दी। आज़ादी के बाद भी हमारे वीर सैनिकों ने सीमाओं पर हमारी हिफाजत के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगाया। अदालती आदेश के मुताबिक [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]] और [[सुखदेव]] को [[24 मार्च]], [[1931]] को फांसी लगाई जानी थी, सुबह क़रीब 8 बजे। लेकिन [[23 मार्च]], 1931 को ही इन तीनों को देर शाम क़रीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातों रात ले जाकर [[सतलुज नदी]] के किनारे जला दिए गए।
 
अंग्रेज़ी हुकूमत ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और [[24 मार्च]] को होने वाले विद्रोह की वजह से [[23 मार्च]] को ही भगतसिंह और अन्य को क्रांतिकारियों को फांसी दे दी थी। दरअसल यह पूरी घटना भारतीय क्रांतिकारियों की अंग्रेज़ी हुकूमत को हिला देने वाली घटना की वजह से हुई। [[8 अप्रैल]] [[1929]] के दिन [[चंद्रशेखर आज़ाद]] के नेतृत्व में ‘पब्लिक सेफ्टी’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के विरोध में ‘सेंट्रल असेंबली’ में बम फेंका गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगतसिंह ने बम फेंका। इसके पश्चात क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला। भगत सिंह और [[बटुकेश्र्वर दत्त]] को आजीवन कारावास मिला।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2012/03/23/shahid-diwas-bhagat-singh-rajugurusukhdev/ |title=शहीद दिवस: कब क्यूं और कैसे |accessmonthday=17 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जंक्शन |language= हिन्दी}}</ref>
==भगतसिंह==
[[चित्र:Bhagat-Singh.gif|thumb|150px|left|[[भगतसिंह]]]]
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[[सिक्ख]] परिवार में [[पंजाब]] के [[लायलपुर]] में [[28 सितंबर]], [[1907]] को जन्में भगतसिंह [[भारतीय इतिहास]] के महान स्वतंत्रता सेनानियों में जाने जाते थे। उनके पिता [[गदर पार्टी]] के नाम से प्रसिद्ध एक संगठन के सदस्य थे, जो भारत की आजादी के लिये काम करती थी। भगतसिंह ने अपने साथियों- [[राजगुरु]], [[चंद्रशेखर आज़ाद]], [[सुखदेव]] और जय गोपाल के साथ मिलकर [[लाला लाजपत राय]] पर लाठी चार्ज के खिलाफ लड़ाई की। शहीद भगतसिंह का साहसिक कार्य आज के युवाओं के लिये एक प्रेरणास्रोत का कार्य कर रहा है। वर्ष [[1929]] में, [[8 अप्रैल]] को अपने साथियों के साथ केन्द्रीय विधायी सभा में "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे लगाते हुए बम फेंक दिया था। उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ और [[23 मार्च]], [[1931]] को [[लाहौर]] के जेल में शाम 7:33 बजे फाँसी पर लटका दिया गया। उनके शरीर का [[दाह संस्कार]] [[सतलुज नदी]] के किनारे हुआ था। वर्तमान में हुसैनवाला ([[भारत]]-[[पाकिस्तान]] सीमा) में राष्ट्रीय शहीद स्मारक पर, एक बहुत बड़े शहीदी मेले का आयोजन उनके जन्म स्थान [[फ़िरोज़पुर]] में किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.hindikiduniya.com/events/martyrs-day/ |title= शहीद दिवस|accessmonthday=31 जनवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिंदी की दुनिया |language= हिंदी}}</ref>
==भारत में 'शहीद दिवस'==
भारत में राष्ट्र के दूसरे शहीदों को सम्मान देने के लिये एक से ज्यादा शहीद दिवस, राष्ट्रीय स्तर पर इसे 'सर्वोदय दिवस' भी कहा जाता है, मनाने की घोषणा की गयी है-
;13 जुलाई
22 लोगों की मृत्यु को याद करने के लिये भारत के [[जम्मू और कश्मीर]] में शहीद दिवस [[13 जुलाई]] को भी मनाया जाता है। वर्ष [[1931]] में 13 जुलाई को [[कश्मीर]] के महाराजा हरिसिंह के समीप प्रदर्शन के दौरान रॉयल सैनिकों द्वारा उनको मार दिया गया था।
;17 नवंबर
[[लाला लाजपत राय]] ([[पंजाब]] के शेर के नाम से मशहूर) की पुण्यतिथि को मनाने के लिये [[उड़ीसा]] में शहीद दिवस [[17 नवंबर]] के दिन मनाया जाता है। वे ब्रिटिश राज से भारत की आजादी के दौरान के एक महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे।
*[[झाँसी]], [[मध्य प्रदेश]] में ([[रानी लक्ष्मीबाई]] का जन्मदिवस) [[19 नवंबर]] को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। ये उन लोगों को सम्मान देने के लिये मनाया जाता है, जिन्होंने वर्ष [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|1857 की क्रांति]] के दौरान अपने जीवन का बलिदान कर दिया।
[[चित्र:Raj-Ghat-Delhi.jpg|thumb|[[महात्मा गाँधी]] स्मारक, [[राजघाट दिल्ली|राजघाट]], [[दिल्ली]]]]
==बापू की याद में शहीद दिवस==
==बापू की याद में शहीद दिवस==
बापू की याद में भी शहीद दिवस मनाया जाता है। [[30 जनवरी]] को सत्य और अहिंसा के पुजारी [[महात्मा गांधी]] की पुण्यतिथि पर ‘शहीद दिवस’ मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। इस दिन सुबह 11 बजे दो मिनट का मौन रखा जाता है। उनके स्मारक को फूलों से सजाया जाता है। देश के गणमान्य व्यक्ति [[राजघाट दिल्ली|दिल्ली के राजघाट]] पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। इस दिन सर्वधर्म प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं और बापू के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम,’ और ‘[[वैष्णव जन तो तेने कहिये|वैष्णव जन]]’ गाए जाते हैं। शाम के समय उनका स्मारक मोमबत्तियों से प्रकाशित किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-Bapu-Martyrs-Day-non-violence-Mahatma-Gandhi-the-British-Empire-freedom-Satyagraha-non-violence-movement-the-death-anniversary-50-50-469374.html |title=बापू की याद में शहीद दिवस |accessmonthday=17 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिन्दुस्तान लाइव |language= हिन्दी}}</ref>
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07:13, 31 जनवरी 2017 का अवतरण

शहीद दिवस
सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु
सुखदेव, भगतसिंह, राजगुरु
विवरण 23 मार्च, 1931 की मध्यरात्रि को अंग्रेज़ी हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था। इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।
देश भारत
संबंधित लेख भारतीय क्रांति दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस
अन्य जानकारी महात्मा गाँधी की याद में भी शहीद दिवस मनाया जाता है। 30 जनवरी को सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर ‘शहीद दिवस’ मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

शहीद दिवस (अंग्रेज़ी: Martyrs' Day) भारत में 23 मार्च को मानाया जाता है। 23 मार्च, 1931 की मध्यरात्रि को अंग्रेज़ी हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था। शहीद दिवस के रूप में जाना जाने वाला यह दिन यूं तो भारतीय इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है, पर स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं। इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है। जबकि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की याद में भी शहीद दिवस मनाया जाता है। 30 जनवरी को सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर ‘शहीद दिवस’ मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।

इतिहास

भारत एक महान देश है। यहां का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। यह देश अपने अंदर ऐसी कई संस्कृतियां समेटे हुए है, जिसने इसे विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृति वाला देश बनाया है। यह देश उन वीरों की कर्मभूमि भी रही है, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किए बिना इस देश के लिए कार्य किए हैं। अपने वतन के लिए प्राणों की बलि देने से भी हमारे वीर कभी पीछे नहीं हटे। देश को स्वतंत्र कराने के लिए देश के वीरों ने अपनी जान की आहुति तक दी। आज़ादी के बाद भी हमारे वीर सैनिकों ने सीमाओं पर हमारी हिफाजत के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगाया। अदालती आदेश के मुताबिक भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह क़रीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च, 1931 को ही इन तीनों को देर शाम क़रीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातों रात ले जाकर सतलुज नदी के किनारे जला दिए गए।

अंग्रेज़ी हुकूमत ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और 24 मार्च को होने वाले विद्रोह की वजह से 23 मार्च को ही भगतसिंह और अन्य को क्रांतिकारियों को फांसी दे दी थी। दरअसल यह पूरी घटना भारतीय क्रांतिकारियों की अंग्रेज़ी हुकूमत को हिला देने वाली घटना की वजह से हुई। 8 अप्रैल 1929 के दिन चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में ‘पब्लिक सेफ्टी’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के विरोध में ‘सेंट्रल असेंबली’ में बम फेंका गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगतसिंह ने बम फेंका। इसके पश्चात क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला। भगत सिंह और बटुकेश्र्वर दत्त को आजीवन कारावास मिला।[1]

भगतसिंह

भगतसिंह

सिक्ख परिवार में पंजाब के लायलपुर में 28 सितंबर, 1907 को जन्में भगतसिंह भारतीय इतिहास के महान स्वतंत्रता सेनानियों में जाने जाते थे। उनके पिता गदर पार्टी के नाम से प्रसिद्ध एक संगठन के सदस्य थे, जो भारत की आजादी के लिये काम करती थी। भगतसिंह ने अपने साथियों- राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव और जय गोपाल के साथ मिलकर लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज के खिलाफ लड़ाई की। शहीद भगतसिंह का साहसिक कार्य आज के युवाओं के लिये एक प्रेरणास्रोत का कार्य कर रहा है। वर्ष 1929 में, 8 अप्रैल को अपने साथियों के साथ केन्द्रीय विधायी सभा में "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे लगाते हुए बम फेंक दिया था। उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ और 23 मार्च, 1931 को लाहौर के जेल में शाम 7:33 बजे फाँसी पर लटका दिया गया। उनके शरीर का दाह संस्कार सतलुज नदी के किनारे हुआ था। वर्तमान में हुसैनवाला (भारत-पाकिस्तान सीमा) में राष्ट्रीय शहीद स्मारक पर, एक बहुत बड़े शहीदी मेले का आयोजन उनके जन्म स्थान फ़िरोज़पुर में किया जाता है।[2]

भारत में 'शहीद दिवस'

भारत में राष्ट्र के दूसरे शहीदों को सम्मान देने के लिये एक से ज्यादा शहीद दिवस, राष्ट्रीय स्तर पर इसे 'सर्वोदय दिवस' भी कहा जाता है, मनाने की घोषणा की गयी है-

13 जुलाई

22 लोगों की मृत्यु को याद करने के लिये भारत के जम्मू और कश्मीर में शहीद दिवस 13 जुलाई को भी मनाया जाता है। वर्ष 1931 में 13 जुलाई को कश्मीर के महाराजा हरिसिंह के समीप प्रदर्शन के दौरान रॉयल सैनिकों द्वारा उनको मार दिया गया था।

17 नवंबर

लाला लाजपत राय (पंजाब के शेर के नाम से मशहूर) की पुण्यतिथि को मनाने के लिये उड़ीसा में शहीद दिवस 17 नवंबर के दिन मनाया जाता है। वे ब्रिटिश राज से भारत की आजादी के दौरान के एक महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे।

महात्मा गाँधी स्मारक, राजघाट, दिल्ली

बापू की याद में शहीद दिवस

बापू की याद में भी शहीद दिवस मनाया जाता है। 30 जनवरी को सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर ‘शहीद दिवस’ मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। इस दिन सुबह 11 बजे दो मिनट का मौन रखा जाता है। उनके स्मारक को फूलों से सजाया जाता है। देश के गणमान्य व्यक्ति दिल्ली के राजघाट पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। इस दिन सर्वधर्म प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं और बापू के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम,’ और ‘वैष्णव जन’ गाए जाते हैं। शाम के समय उनका स्मारक मोमबत्तियों से प्रकाशित किया जाता है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शहीद दिवस: कब क्यूं और कैसे (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2015।
  2. शहीद दिवस (हिंदी) हिंदी की दुनिया। अभिगमन तिथि: 31 जनवरी, 2017।
  3. बापू की याद में शहीद दिवस (हिन्दी) हिन्दुस्तान लाइव। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख