"नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर": अवतरणों में अंतर
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मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार । | मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार । | ||
तुम दाता | तुम दाता दु:ख भंजन मेरी करो सम्हार । | ||
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ । | अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ । | ||
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥ | जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥ |
14:01, 2 जून 2017 का अवतरण
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नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ |
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