"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 खण्ड-23": अवतरणों में अंतर

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*साधनारत ब्रह्मचारी जब अपने शरीर को क्षीण कर लेता है। प्रथम तीन से त्रयी विद्या-ऋक्, साम और यजु- की उत्पत्ति हुई।  
*साधनारत ब्रह्मचारी जब अपने शरीर को क्षीण कर लेता है। प्रथम तीन से त्रयी विद्या-ऋक्, साम और यजु- की उत्पत्ति हुई।  
*दूसरे तप के प्रभाव से त्रयी विद्या से 'भू:' और 'स्व:' की उत्पत्ति हुई है।  
*दूसरे तप के प्रभाव से त्रयी विद्या से 'भू:' और 'स्व:' की उत्पत्ति हुई है।  
*तीसरे साधना से तीन अक्षरों का सारतत्त्व ओंकार (ॐ) प्राप्त हुआ। ओंकार द्वारा सम्पूर्ण वाणियां व्याप्त हैं। ओंकार ही सम्पूर्ण जगत है और यही सम्पूर्ण आकाश है।  
*तीसरे साधना से तीन अक्षरों का सारतत्त्व ओंकार (ॐ) प्राप्त हुआ। ओंकार द्वारा सम्पूर्ण वाणियां व्याप्त हैं। ओंकार ही सम्पूर्ण जगत् है और यही सम्पूर्ण आकाश है।  





13:50, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 खण्ड-23
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय द्वितीय
कुल खण्ड 24 (चौबीस)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय दूसरे का यह तेईसवाँ खण्ड है।

  • इस खण्ड में धर्म के तीन स्कन्धों के विषय में वर्णन किया गया है। धर्म के ये तीन आधारस्तम्भ हैं-
  1. यज्ञ
  2. अध्ययन और दान
  3. तप
  • साधनारत ब्रह्मचारी जब अपने शरीर को क्षीण कर लेता है। प्रथम तीन से त्रयी विद्या-ऋक्, साम और यजु- की उत्पत्ति हुई।
  • दूसरे तप के प्रभाव से त्रयी विद्या से 'भू:' और 'स्व:' की उत्पत्ति हुई है।
  • तीसरे साधना से तीन अक्षरों का सारतत्त्व ओंकार (ॐ) प्राप्त हुआ। ओंकार द्वारा सम्पूर्ण वाणियां व्याप्त हैं। ओंकार ही सम्पूर्ण जगत् है और यही सम्पूर्ण आकाश है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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