"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-12": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3|अध्याय तीसरे]] का यह बारहवाँ खण्ड है। इस खंड में बताया गया है कि [[गायत्री]] ही दृश्यमान | [[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3|अध्याय तीसरे]] का यह बारहवाँ खण्ड है। इस खंड में बताया गया है कि [[गायत्री]] ही दृश्यमान जगत् है। | ||
*इसमें [[गायत्री]] को सब दृश्यमान | *इसमें [[गायत्री]] को सब दृश्यमान जगत् अथवा भूत माना गया है। जगत् में जो कुछ भी प्रत्यक्ष दृश्यमान है, वह गायत्री ही है। | ||
*'वाणी' ही गायत्री है और वाणी ही सम्पूर्ण भूत-रूप है। | *'वाणी' ही गायत्री है और वाणी ही सम्पूर्ण भूत-रूप है। | ||
*गायत्री ही सब भूतों का गान करती है और उनकी रक्षा करती है। | *गायत्री ही सब भूतों का गान करती है और उनकी रक्षा करती है। | ||
*गायत्री ही [[पृथ्वी]] है, इसी में सब भूत अवस्थित हैं। यह पृथ्वी भी 'प्राण-रूप' गायत्री है, जो पुरुष के शरीर में समाहित है। ये प्राण पुरुष के अन्त:हृदय में स्थित हैं। | *गायत्री ही [[पृथ्वी]] है, इसी में सब भूत अवस्थित हैं। यह पृथ्वी भी 'प्राण-रूप' गायत्री है, जो पुरुष के शरीर में समाहित है। ये प्राण पुरुष के अन्त:हृदय में स्थित हैं। | ||
*गायत्री के रूप में व्यक्त परब्रह्म ही [[वेद|वेदों]] में वर्णित मन्त्रों में स्थित है। यहाँ उसी की महिमा का वर्णन किया गया है, परन्तु वह विराट पुरुष उससे भी बड़ा है। यह प्रत्यक्ष | *गायत्री के रूप में व्यक्त परब्रह्म ही [[वेद|वेदों]] में वर्णित मन्त्रों में स्थित है। यहाँ उसी की महिमा का वर्णन किया गया है, परन्तु वह विराट पुरुष उससे भी बड़ा है। यह प्रत्यक्ष जगत् तो उसका एक अंश मात्र है। उसके अन्य अंश तो अमृत-स्वरूप प्रकाशमय आत्मा में अवस्थित हैं। वह जो विराट ब्रह्म है, वह पुरुष के बहिरंग आकाश रूप में स्थित है और वही पुरुष के अन्त:हृदय के आकाश में स्थित है। यह अन्तरंग आकाश सर्वदा पूर्ण, अपरिवर्तनीय, अर्थात नित्य है। जो साधक इस प्रकार उस ब्रह्म-स्वरूप को जान लेता है, वह सर्वदा पूर्ण, नित्य और दैवीय सम्पदाएं (विभूतियां) प्राप्त करता है। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
13:52, 30 जून 2017 का अवतरण
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-12
| |
विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | तीसरा |
कुल खण्ड | 19 (उन्नीस) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय तीसरे का यह बारहवाँ खण्ड है। इस खंड में बताया गया है कि गायत्री ही दृश्यमान जगत् है।
- इसमें गायत्री को सब दृश्यमान जगत् अथवा भूत माना गया है। जगत् में जो कुछ भी प्रत्यक्ष दृश्यमान है, वह गायत्री ही है।
- 'वाणी' ही गायत्री है और वाणी ही सम्पूर्ण भूत-रूप है।
- गायत्री ही सब भूतों का गान करती है और उनकी रक्षा करती है।
- गायत्री ही पृथ्वी है, इसी में सब भूत अवस्थित हैं। यह पृथ्वी भी 'प्राण-रूप' गायत्री है, जो पुरुष के शरीर में समाहित है। ये प्राण पुरुष के अन्त:हृदय में स्थित हैं।
- गायत्री के रूप में व्यक्त परब्रह्म ही वेदों में वर्णित मन्त्रों में स्थित है। यहाँ उसी की महिमा का वर्णन किया गया है, परन्तु वह विराट पुरुष उससे भी बड़ा है। यह प्रत्यक्ष जगत् तो उसका एक अंश मात्र है। उसके अन्य अंश तो अमृत-स्वरूप प्रकाशमय आत्मा में अवस्थित हैं। वह जो विराट ब्रह्म है, वह पुरुष के बहिरंग आकाश रूप में स्थित है और वही पुरुष के अन्त:हृदय के आकाश में स्थित है। यह अन्तरंग आकाश सर्वदा पूर्ण, अपरिवर्तनीय, अर्थात नित्य है। जो साधक इस प्रकार उस ब्रह्म-स्वरूप को जान लेता है, वह सर्वदा पूर्ण, नित्य और दैवीय सम्पदाएं (विभूतियां) प्राप्त करता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |