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माला पहर्‌यां कुछ नहीं, भगति न आई हाथ ।
माला पहर्‌यां कुछ नहीं, भगति न आई हाथ ।
माथौ मूँछ मुँडाइ करि, चल्या जगत के साथ ॥3॥
माथौ मूँछ मुँडाइ करि, चल्या जगत् के साथ ॥3॥


साईं सेती सांच चलि, औरां सूं सुध भाइ ।
साईं सेती सांच चलि, औरां सूं सुध भाइ ।

14:13, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

भेष का अंग -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

माला पहिरे मनमुषी, ताथैं कछू न होई ।
मन माला कौं फेरता, जग उजियारा सोइ ॥1॥

`कबीर' माला मन की, और संसारी भेष ।
माला पहर्‌यां हरि मिलै, तौ अरहट कै गलि देखि ॥2॥

माला पहर्‌यां कुछ नहीं, भगति न आई हाथ ।
माथौ मूँछ मुँडाइ करि, चल्या जगत् के साथ ॥3॥

साईं सेती सांच चलि, औरां सूं सुध भाइ ।
भावै लम्बे केस करि, भावै घुरड़ि मुंडाइ ॥4॥

केसों कहा बिगाड़िया, जो मुँडै सौ बार ।
मन को काहे न मूंडिये, जामैं बिषय-बिकार ॥5॥

स्वांग पहरि सोरहा भया, खाया पीया खूंदि ।
जिहि सेरी साधू नीकले, सो तौ मेल्ही मूंदि ॥6॥

बैसनों भया तौ क्या भया, बूझा नहीं बबेक ।
छापा तिलक बनाइ करि, दगध्या लोक अनेक ॥7॥

तन कों जोगी सब करै, मन कों बिरला कोइ ।
सब सिधि सहजै पाइये, जे मन जोगी होइ ॥8॥

पष ले बूड़ी पृथमीं, झूठे कुल की लार ।
अलष बिसार्‌यो भेष मैं, बूड़े काली धार ॥9॥

चतुराई हरि ना मिलै, ए बातां की बात ।
एक निसप्रेही निरधार का, गाहक गोपीनाथ ॥10॥

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