"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 खण्ड-12": अवतरणों में अंतर

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*जो साधक साम को [[अग्नि]] में प्रतिष्ठित जानकर उपासना करता है, वह ब्रह्मतेज से सम्पन्न प्रदीप्त जठराग्नि से युक्त होता है।  
*जो साधक साम को [[अग्नि]] में प्रतिष्ठित जानकर उपासना करता है, वह ब्रह्मतेज से सम्पन्न प्रदीप्त जठराग्नि से युक्त होता है।  
*वह पूर्ण तेजोमय जीवन व्यतीत करता है तथा महान कीर्ति को प्राप्त करता है।
*वह पूर्ण तेजोमय जीवन व्यतीत करता है तथा महान् कीर्ति को प्राप्त करता है।





14:14, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 खण्ड-12
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय द्वितीय
कुल खण्ड 24 (चौबीस)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय दूसरे का यह बारहवाँ खण्ड है।

  • जो साधक साम को अग्नि में प्रतिष्ठित जानकर उपासना करता है, वह ब्रह्मतेज से सम्पन्न प्रदीप्त जठराग्नि से युक्त होता है।
  • वह पूर्ण तेजोमय जीवन व्यतीत करता है तथा महान् कीर्ति को प्राप्त करता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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