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'''राम मोहन''' ने फ़िल्मों में अभिनय के साथ-साथ टेलिविज़न धारावाहिकों में भी अभिनय किया है, जिसमें 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'तारा', 'शतरंज', 'संसार', 'बहादुर शाह ज़फ़र', 'ये दिल्ली है' और 'महाभारत' आदि धारावाहिक शामिल हैं। | '''राम मोहन''' ने फ़िल्मों में अभिनय के साथ-साथ टेलिविज़न धारावाहिकों में भी [[अभिनय]] किया है, जिसमें 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'तारा', 'शतरंज', 'संसार', 'बहादुर शाह ज़फ़र', 'ये दिल्ली है' और 'महाभारत' आदि धारावाहिक शामिल हैं। | ||
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राम मोहन के एक परिचित और अंबाला के ही रहने वाले महेश उप्पल [[मुंबई]] सेंट्रल के पास ही मौजूद 'फेमस आर्ट स्टूडियो' में चित्रकार की नौकरी करते थे और रहते भी स्टूडियो में ही थे। राम मोहन ने क़रीब दो महीने महेश उप्पल के साथ रहकर गुज़ारे। राम मोहन के मुताबिक़ वो उस दौरान रोज़ाना आसपास के इलाक़ों दादर और महालक्ष्मी में मौजूद 'रंजीत मूवीटोन' और 'फ़ेमस स्टूडियो' जैसे फ़िल्म स्टूडियोज़ के चक्कर काटते थे। कभी कभार उन स्टूडियोज़ में घुसने के लिए उन्हें दरबान को रिश्वत भी देनी पड़ती थी। दो महीने बाद उन्हें महेश उप्पल का स्टूडियो छोड़ना पड़ा तो वो रहने के लिए विले पारले चले आए।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2013/04/dhanno-ki-aankhon-me-pyar-ka-surma.html |title=Ram Mohan |accessmonthday=30 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref> | राम मोहन के एक परिचित और अंबाला के ही रहने वाले महेश उप्पल [[मुंबई]] सेंट्रल के पास ही मौजूद 'फेमस आर्ट स्टूडियो' में चित्रकार की नौकरी करते थे और रहते भी स्टूडियो में ही थे। राम मोहन ने क़रीब दो महीने महेश उप्पल के साथ रहकर गुज़ारे। राम मोहन के मुताबिक़ वो उस दौरान रोज़ाना आसपास के इलाक़ों दादर और महालक्ष्मी में मौजूद 'रंजीत मूवीटोन' और 'फ़ेमस स्टूडियो' जैसे फ़िल्म स्टूडियोज़ के चक्कर काटते थे। कभी कभार उन स्टूडियोज़ में घुसने के लिए उन्हें दरबान को रिश्वत भी देनी पड़ती थी। दो महीने बाद उन्हें महेश उप्पल का स्टूडियो छोड़ना पड़ा तो वो रहने के लिए विले पारले चले आए।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2013/04/dhanno-ki-aankhon-me-pyar-ka-surma.html |title=Ram Mohan |accessmonthday=30 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref> |
10:11, 1 जुलाई 2017 का अवतरण
राम मोहन का फ़िल्मी कॅरियर
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पूरा नाम | राम मोहन |
जन्म | 2 नवंबर, 1929 |
जन्म भूमि | अंबाला |
मृत्यु | 6 दिसम्बर, 2015 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
अभिभावक | पिता- डॉक्टर साधुराम शर्मा और माता- योगमाया शर्मा |
संतान | तीन पुत्र और एक पुत्री |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | सिनेमा जगत |
मुख्य फ़िल्में | 'हरियाली और रास्ता', 'मेरे हुज़ूर', 'तक़दीर', 'शोर', 'किताब', 'जियो तो ऐसे जियो', 'अंगूर', 'सावन को आने दो', 'शान', 'नदिया के पार', 'बंटवारा', 'ग़ुलामी', 'रंगीला' और 'कोयला' |
शिक्षा | बी. ए. |
विद्यालय | जी. एम. एन. कॉलेज, अंबाला |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | राम मोहन 4 साल 'सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन' के उपाध्यक्ष और 6 साल महासचिव पद पर रहे तथा इसके अलावा वो सिनेमा से जुड़े लोगों के हित में कार्यरत विभिन्न एसोसिएशनों में भी सक्रिय रहते थे। |
अद्यतन | 16:54, 30 जून 2017 (IST)
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राम मोहन ने फ़िल्मों में अभिनय के साथ-साथ टेलिविज़न धारावाहिकों में भी अभिनय किया है, जिसमें 'मिर्ज़ा ग़ालिब', 'तारा', 'शतरंज', 'संसार', 'बहादुर शाह ज़फ़र', 'ये दिल्ली है' और 'महाभारत' आदि धारावाहिक शामिल हैं।
फ़िल्मी कॅरियर
राम मोहन के एक परिचित और अंबाला के ही रहने वाले महेश उप्पल मुंबई सेंट्रल के पास ही मौजूद 'फेमस आर्ट स्टूडियो' में चित्रकार की नौकरी करते थे और रहते भी स्टूडियो में ही थे। राम मोहन ने क़रीब दो महीने महेश उप्पल के साथ रहकर गुज़ारे। राम मोहन के मुताबिक़ वो उस दौरान रोज़ाना आसपास के इलाक़ों दादर और महालक्ष्मी में मौजूद 'रंजीत मूवीटोन' और 'फ़ेमस स्टूडियो' जैसे फ़िल्म स्टूडियोज़ के चक्कर काटते थे। कभी कभार उन स्टूडियोज़ में घुसने के लिए उन्हें दरबान को रिश्वत भी देनी पड़ती थी। दो महीने बाद उन्हें महेश उप्पल का स्टूडियो छोड़ना पड़ा तो वो रहने के लिए विले पारले चले आए।[1]
अभिनय जीवन की शुरूआत
राम मोहन के अनुशार एक रोज़ किसी ने उन्हें जगदीश सेठी से मिलने की सलाह दी। जगदीश सेठी उस ज़माने के जानेमाने अभिनेता और निर्माता-निर्देशक थे। वो जगदीश सेठी के पैडर रोड स्थित घर पर जाकर उनसे मिले। जगदीश सेठी राम मोहन से इतने प्रभावित हुए कि उस दिन के बाद वे उनके साथ-साथ नज़र आने लगा। कई फ़िल्मों में बेहद छोटी-छोटी भूमिकाओं से उनके अभिनय जीवन की शुरूआत हुई। जगदीश सेठी द्वारा निर्देशित फ़िल्म 'इंसान' में पहली बार उन्हें एक अच्छी भूमिका मिली।
साल 1952 में बनी फ़िल्म 'इंसान' की मुख्य भूमिकाओं में पृथ्वीराज कपूर, रागिनी और कमल कपूर थे। राम मोहन भी इस फ़िल्म में एक छोटी सी भूमिका निभा रहे थे। राम मोहन के मुताबिक, 'इस फ़िल्म के एक सीन में कमल कपूर को घुड़सवारी करनी थी, लेकिन घुड़सवारी उन्हें आती नहीं थी। उन्होंने मुझे अपनी परेशानी बताई और फिर जगदीश सेठी से स्क्रिप्ट में बदलाव करके घुड़सवारी मुझसे कराने का आग्रह किया। ये काम हालांकि मेरे लिए भी आसान नहीं था इसके बावजूद मैंने इसे चुनौती समझकर स्वीकार कर लिया। और थोड़ी बहुत कोशिशों के बाद मैं कामयाब भी हुआ। मेरे काम से जगदीश सेठी इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने न सिर्फ़ फ़िल्म 'इंसान' में मेरी भूमिका बढ़ाई बल्कि वादा किया कि भविष्य में वो मुझे और भी बेहतर भूमिकाएं देंगे'। जगदीश सेठी ने अपना वादा निभाते हुए साल 1952 में ही बनी फ़िल्म 'जग्गू' में राम मोहन को सहनायक की भूमिका दी। इस फ़िल्म की मुख्य भूमिकाओं में कमल कपूर और श्यामा थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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