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*यजुर्वेद से आध्वर्यव (अध्वर्यु का कार्य), [[ऋग्वेद]] से हौत्र (होता का कार्य), सामवेद से औद्गात्र (उद्गाता कार्य़) एवं [[अथर्ववेद]] से ब्रह्मात्व (ब्रह्मा का कार्य) होता है। | *यजुर्वेद से आध्वर्यव (अध्वर्यु का कार्य), [[ऋग्वेद]] से हौत्र (होता का कार्य), सामवेद से औद्गात्र (उद्गाता कार्य़) एवं [[अथर्ववेद]] से ब्रह्मात्व (ब्रह्मा का कार्य) होता है। | ||
*यज्ञ में अध्वर्यु, होता, उद्गाता औऱ ब्रह्मा- ये चार प्रकार के मुख्य ऋत्विग् होते है। ये अपने-अपने वेद के पारंगत | *यज्ञ में अध्वर्यु, होता, उद्गाता औऱ ब्रह्मा- ये चार प्रकार के मुख्य ऋत्विग् होते है। ये अपने-अपने वेद के पारंगत विद्वान् होने चाहिये।<ref>[[वायुपुराण]] 60.17</ref> | ||
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14:22, 6 जुलाई 2017 का अवतरण
उद्गाता यज्ञ में औद्गात्र कर्म करने वाले एक ऋषि थे, जिनकी सृष्टि पहले भगवान विष्णु ने की थी।[1] यह हंसनारायण के मुख से उत्पन्न हुए थे।[2]
- उद्गाता सामवेद के बड़े ज्ञाता थे।[3]
- पहले एक यजुर्वेद ही था। भगवान विष्णु ने वेदव्यास के रूप में अवतीर्ण होकर उसको चार विभागों में विभक्त किया- ऋग, यजु, साम औऱ अथर्व के रूप में।
- विभाग चार होता (याज्ञिक), जिसमें आवश्यक हैं उस यज्ञ की निष्पत्ति, के लिए करना पड़ा।
- यजुर्वेद से आध्वर्यव (अध्वर्यु का कार्य), ऋग्वेद से हौत्र (होता का कार्य), सामवेद से औद्गात्र (उद्गाता कार्य़) एवं अथर्ववेद से ब्रह्मात्व (ब्रह्मा का कार्य) होता है।
- यज्ञ में अध्वर्यु, होता, उद्गाता औऱ ब्रह्मा- ये चार प्रकार के मुख्य ऋत्विग् होते है। ये अपने-अपने वेद के पारंगत विद्वान् होने चाहिये।[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 60 |
- ↑ भागवतपुराण 9.16.21; ब्रह्मांडपुराण 3.72.29
- ↑ मत्स्यपुराण 167.7; 246.12
- ↑ वायुपुराण 60.17