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*च्यवन ऋषि क्रोधित होकर शर्याति के [[परिवार]] तथा उनके अनुचरों को मल-मूत्र रुक जाने का शाप देते हैं। | *च्यवन ऋषि क्रोधित होकर शर्याति के [[परिवार]] तथा उनके अनुचरों को मल-मूत्र रुक जाने का शाप देते हैं। | ||
*शर्याति इस घटना से दु:खी होकर च्यवन से विनय-निवेदन करते हैं। क्षमा याचना | *शर्याति इस घटना से दु:खी होकर च्यवन से विनय-निवेदन करते हैं। क्षमा याचना स्वरूप वह अपनी पुत्री को उनके सुपुर्द कर देते हैं। इस प्रकार सुकन्या का [[विवाह]] च्यवन ऋषि से हो जाता है। | ||
13:18, 29 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
सुकन्या वैवस्वत मनु के दस पुत्रों में से एक शर्याति की पुत्री थी। इसका विवाह अपने समय के प्रसिद्ध ऋषि च्यवन से हुआ था।
- राजा शर्याति के 'सुकन्या' नामक पुत्री तथा 'आनर्त' नामक दो जुड़वा संतानें हुई थीं।
- लंबे समय तक निश्चल रहकर एक ही स्थान पर बैठकर च्यवन तपस्या में लीन रहे थे, जिस कारण उनका शरीर घास और लताओं से ढक गया तथा चीटियों ने उनकी देह पर अपना निवास बना लिया था। वह दिखने में मिट्टी का टीला-सा जान पड़ते थे।
- एक दिन शर्याति की पुत्रि सुकन्या अपनी सखियों के साथ टहलती हुई च्यवन मुनि के स्थान पर जा पहुँची। वहाँ पर मिट्टी के टीले में चमकते दो छिद्रों को देखकर वह चकित रह गई और कौतुहल वश देह को बांबी समझ कर उन छिद्रों को कुरेदने लगी।
- शर्याति की पुत्री सुकन्या के इस कृत्य से ऋषि की आँखों से रक्त की धारा बहने लगी और ऋषि च्यवन अंधे हो गए।
- च्यवन ऋषि क्रोधित होकर शर्याति के परिवार तथा उनके अनुचरों को मल-मूत्र रुक जाने का शाप देते हैं।
- शर्याति इस घटना से दु:खी होकर च्यवन से विनय-निवेदन करते हैं। क्षमा याचना स्वरूप वह अपनी पुत्री को उनके सुपुर्द कर देते हैं। इस प्रकार सुकन्या का विवाह च्यवन ऋषि से हो जाता है।
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