"कर्ण-कृष्ण तत्कालीन संवाद -रश्मि प्रभा": अवतरणों में अंतर

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मेरे मान के लिए उसने एक क्षण में 
मेरे मान के लिए उसने एक क्षण में 
मुझे अंग देश का राजा बनाया ...
मुझे अंग देश का राजा बनाया ...
अर्थात उसे राज्य का मोह नहीं था 
अर्थात् उसे राज्य का मोह नहीं था 
उसका विरोध बड़े बुजुर्गों के हर व्यवहार के प्रति था !
उसका विरोध बड़े बुजुर्गों के हर व्यवहार के प्रति था !
.... केशव 
.... केशव 

07:46, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

कर्ण-कृष्ण तत्कालीन संवाद -रश्मि प्रभा
रश्मि प्रभा
रश्मि प्रभा
कवि रश्मि प्रभा
जन्म 13 फ़रवरी, 1958
जन्म स्थान सीतामढ़ी, बिहार
मुख्य रचनाएँ 'शब्दों का रिश्ता' (2010), 'अनुत्तरित' (2011), 'अनमोल संचयन' (2010), 'अनुगूँज' (2011) आदि।
अन्य जानकारी रश्मि प्रभा, स्वर्गीय महाकवि सुमित्रा नंदन पंत की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की सुपुत्री हैं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रश्मि प्रभा की रचनाएँ

हाँ कृष्ण 
मांगे थे तुमने सिर्फ 5 ग्राम 
और दुर्योधन ने वह भी नहीं दिया 
क्या सच में यह सिर्फ 5 ग्राम की बात थी 
या था कोई नासूर बाल्यकाल का ?
जिसे देखना किसी ने ज़रूरी नहीं समझा 
.... 
वह आपकी विराटता से अनभिज्ञ था ?
या आवेश में उसने ईश्वर को भी ललकारा 
एक तरफ पूरी सेना 
दूसरी तरफ केशव ....
!
आपको नकार कर उसने अपनी हार को स्वीकारा 
केशव आपसे बेहतर इस स्थिति की सच्चाई 
कोई नहीं जानता !
....
मेरे मान के लिए उसने एक क्षण में 
मुझे अंग देश का राजा बनाया ...
अर्थात् उसे राज्य का मोह नहीं था 
उसका विरोध बड़े बुजुर्गों के हर व्यवहार के प्रति था !
.... केशव 
उसकी हार तो निश्चित थी 
क्योंकि कौरव सेना का प्रायः हर कुशल योद्धा 
मन से पांडवों के साथ था 
विशेषकर अर्जुन के साथ !
और साम दाम दंड भेद के चक्रों से सुसज्जित 
आप भी तो केशव अर्जुन के ही संग थे !
बस एक सूक्ष्म सत्य के कवच का भय 
सूर्य की सहस्त्र किरणों के ताप के संग 
कर्ण' बन आपके आगे था 
अर्जुन के हित में
..... आपने मेरे जन्म रहस्य का चक्र उसी समय चलाया !!!
ज्ञात था मुझे अपना सच 
न भी होता - 
तो ज्ञात था आपको 
यूँ कहूँ विश्वास था आपको 
कि कर्ण किसी मोह में निस्तेज नहीं हो सकता !
....
जिस आयु में मैं आ चुका था 
सारे अपमान सह चुका था 
वहां कुंती के माँ होने का हवाला 
अति हास्यास्पद था !
मैंने कुंती को दान दिया अवश्य 
पर वह मेरे अग्रज होने के सच से अनभिज्ञ 
मेरे भ्राताओं को मेरा आशीर्वाद था !
महाभारत - कुरुक्षेत्र - चक्रव्यूह 
द्रोण,पितामह,अभिमन्यु की मृत्यु 
हमदोनों की विवशता थी 
दरअसल हमदोनों के रथ के पहिये 
कुरुक्षेत्र के मैदान में नहीं 
हमारे दिल दिमाग पर दौड़ रहे थे !
....
केशव - 
पांडवों की जीत हुई 
अभिमन्यु,कौरवों से रक्तरंजित धरती दिखी 
पर असली मृत्यु तो मेरी हुई 
और मुझे मारकर तुम्हारी ...
आह !!!
काश, इसे कोई समझ पाता 
काश !!!

तो इतिहास कुछ और होता


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