"विषु संवत्सर": अवतरणों में अंतर
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'''विषु''' या वृषभ''' [[हिन्दू धर्म]] में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में पंद्रहवाँ है। इस [[संवत्सर]] के आने पर विश्व में अन्न आदि की वृद्धि होती है और प्रजाजनों का पोषण होता है। इस संवत्सर का स्वामी [[इन्द्र]] को कहा गया है। | '''विषु''' या '''वृषभ''' [[हिन्दू धर्म]] में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में पंद्रहवाँ है। इस [[संवत्सर]] के आने पर विश्व में अन्न आदि की वृद्धि होती है और प्रजाजनों का पोषण होता है। इस संवत्सर का स्वामी [[इन्द्र]] को कहा गया है। | ||
*वृषभ संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु किसी भी कार्य को करने में प्रलाप करने वाला, निन्दित स्वभाव, मलिन, मंदबुद्धि, आलसी और दुष्टों की संगति करने वाला होता है। | *वृषभ संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु किसी भी कार्य को करने में प्रलाप करने वाला, निन्दित स्वभाव, मलिन, मंदबुद्धि, आलसी और दुष्टों की संगति करने वाला होता है। |
12:55, 5 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषु या वृषभ हिन्दू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में पंद्रहवाँ है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में अन्न आदि की वृद्धि होती है और प्रजाजनों का पोषण होता है। इस संवत्सर का स्वामी इन्द्र को कहा गया है।
- वृषभ संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु किसी भी कार्य को करने में प्रलाप करने वाला, निन्दित स्वभाव, मलिन, मंदबुद्धि, आलसी और दुष्टों की संगति करने वाला होता है।
- ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से किया था, अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।
- हिन्दू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है।
- संवत्सर 60 हैं। जब 60 संवत पूरे हो जाते हैं तो फिर पहले से संवत्सर का प्रारंभ हो जाता है।
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