"वर्ण व्रत": अवतरणों में अंतर

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*यह चतुमूर्ति व्रत है, जो [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] से चार [[मास|मासों]] तक चलता है।
*यह चतुमूर्ति व्रत है, जो [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] से चार [[मास|मासों]] तक चलता है।
*[[चैत्र]], [[वैसाख]], [[ज्येष्ठ]] एवं [[आषाढ़]] में कर्ता उपवास करता है और क्रम से [[वासुदेव]], [[संकर्षण]], [[प्रद्युम्न]] की पूजा करता है तथा दान देता है।
*[[चैत्र]], [[वैसाख]], [[ज्येष्ठ]] एवं [[आषाढ़]] में कर्ता उपवास करता है और क्रम से [[वासुदेव]], [[संकर्षण]], [[प्रद्युम्न]] की पूजा करता है तथा दान देता है।
*दान की वस्तुओं में कई प्रकार पाये जाते हैं, यथा- ब्राह्मण को यज्ञ की उपयोगी वस्तुएँ, क्षत्रिय को युद्धोपयोगी, वैश्य को वाणिज्योपयोगी तथा शूद्र को श्रमोपयोगी वस्तुएँ दी जाती हैं, कर्ता को इन्द्रलोक प्राप्त होता है। <ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 828, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref>
*दान की वस्तुओं में कई प्रकार पाये जाते हैं, यथा- ब्राह्मण को यज्ञ की उपयोगी वस्तुएँ, क्षत्रिय को युद्धोपयोगी, वैश्य को वाणिज्योपयोगी तथा शूद्र को श्रमोपयोगी वस्तुएँ दी जाती हैं, कर्ता को इन्द्रलोक प्राप्त होता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 828, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।</ref>


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06:40, 10 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह चतुमूर्ति व्रत है, जो चैत्र शुक्ल पक्ष से चार मासों तक चलता है।
  • चैत्र, वैसाख, ज्येष्ठ एवं आषाढ़ में कर्ता उपवास करता है और क्रम से वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न की पूजा करता है तथा दान देता है।
  • दान की वस्तुओं में कई प्रकार पाये जाते हैं, यथा- ब्राह्मण को यज्ञ की उपयोगी वस्तुएँ, क्षत्रिय को युद्धोपयोगी, वैश्य को वाणिज्योपयोगी तथा शूद्र को श्रमोपयोगी वस्तुएँ दी जाती हैं, कर्ता को इन्द्रलोक प्राप्त होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 828, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।

संबंधित लिंक

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