"जमनालाल बजाज": अवतरणों में अंतर
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'''जमनालाल बजाज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jamnalal Bajaj'', जन्म- [[4 नवम्बर]], [[1889]], [[राजस्थान]]; मृत्यु- [[11 फ़रवरी]], [[1942]], [[वर्धा ज़िला|वर्धा]]) स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उद्योगपति और मानवशास्त्री थे। वे [[महात्मा गाँधी]] के बहुत करीबी और उनके सच्चे अनुयायी थे। गाँधीजी उन्हें अपने पुत्र समान मानते थे। जमनालाल बजाज [[1920]] में [[कांग्रेस]] के कोषाध्यक्ष बने थे तथा इस पद पर वे जीवन भर रहे। उन्होंने वर्धा में ‘सत्याग्रह आश्रम’ की स्थापना की थी। इसके अलावा गौ सेवा संघ, गांधी सेवा संघ, सस्ता साहित्य मण्डल आदि संस्थाआं की स्थापना भी उनके द्वारा की गई। जमनालाल बजाज जाति भेद के विरोधी थे तथा उन्होंने हरिजन उत्थान के लिए भी प्रयत्न किया। उनकी स्मृति में सामाजिक क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने के लिये '[[जमनालाल बजाज पुरस्कार]]' की स्थापना की गयी है। | |||
==परिचय== | |||
[[जयपुर]], [[राजस्थान]] के एक छोटे से [[गांव]] काशी का वास में गरीब कनीराम किसान के यहाँ जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर, 1889 को हुआ था। वे वर्धा के एक बड़े सेठ बच्छराज के यहां पांच वर्ष की आयु में गोद लिये गये थे। सेठ वच्छराज [[सीकर]] के रहने वाले थे। उनके पूर्वज सवा सौ साल पहले [[नागपुर]] में आकर बस गये थे। विलासिता और ऐश्वर्य का वातावरण इस बालक को दूषित नहीं कर पाया, क्योंकि उनका झुकाव तो बचपन से अध्यात्म की ओर था। जमनालाल की सगार्इ दस वर्ष की अवस्था में हो गयी थी। तीन वर्ष बाद जब जमनालाल 13 वर्ष के हुए तथा जानकी 9 वर्ष की हुर्इं, तो उनका [[विवाह]] धूमधाम से वर्धा में हुआ। | |||
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08:45, 14 जुलाई 2018 का अवतरण
जमनालाल बजाज (अंग्रेज़ी: Jamnalal Bajaj, जन्म- 4 नवम्बर, 1889, राजस्थान; मृत्यु- 11 फ़रवरी, 1942, वर्धा) स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उद्योगपति और मानवशास्त्री थे। वे महात्मा गाँधी के बहुत करीबी और उनके सच्चे अनुयायी थे। गाँधीजी उन्हें अपने पुत्र समान मानते थे। जमनालाल बजाज 1920 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने थे तथा इस पद पर वे जीवन भर रहे। उन्होंने वर्धा में ‘सत्याग्रह आश्रम’ की स्थापना की थी। इसके अलावा गौ सेवा संघ, गांधी सेवा संघ, सस्ता साहित्य मण्डल आदि संस्थाआं की स्थापना भी उनके द्वारा की गई। जमनालाल बजाज जाति भेद के विरोधी थे तथा उन्होंने हरिजन उत्थान के लिए भी प्रयत्न किया। उनकी स्मृति में सामाजिक क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने के लिये 'जमनालाल बजाज पुरस्कार' की स्थापना की गयी है।
परिचय
जयपुर, राजस्थान के एक छोटे से गांव काशी का वास में गरीब कनीराम किसान के यहाँ जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर, 1889 को हुआ था। वे वर्धा के एक बड़े सेठ बच्छराज के यहां पांच वर्ष की आयु में गोद लिये गये थे। सेठ वच्छराज सीकर के रहने वाले थे। उनके पूर्वज सवा सौ साल पहले नागपुर में आकर बस गये थे। विलासिता और ऐश्वर्य का वातावरण इस बालक को दूषित नहीं कर पाया, क्योंकि उनका झुकाव तो बचपन से अध्यात्म की ओर था। जमनालाल की सगार्इ दस वर्ष की अवस्था में हो गयी थी। तीन वर्ष बाद जब जमनालाल 13 वर्ष के हुए तथा जानकी 9 वर्ष की हुर्इं, तो उनका विवाह धूमधाम से वर्धा में हुआ।
जमनालाल बजाज ने खादी और स्वदेशी अपनाया और अपने वेशकीमती वस्त्रों की होली जलार्इ। जमनालाल जी ने अपने बच्चों को किसी फैशनेबल पब्लिक स्कूल में नहीं भेजा, बल्कि उन्हें स्वेच्छापूर्वक वर्धा में आरम्भ किये गये विनोबा के सत्याग्रह आश्रम में भेजा। सन 1922 में अपनी पत्नी को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा कि- "मैं हमेशा से यही सोचता आया हूं कि तुम और हमारे बच्चे मेरे ही कारण किसी प्रकार की प्रतिष्ठा अथवा पद प्राप्त न करें। यदि कोर्इ प्रतिष्ठा अथवा पद प्राप्त हो, तो वह अपनी-अपनी योग्यता के बल पर हो। यह मेरे, तुम्हारे, उनके सबके हित में है।"[1]
महत्त्वपूर्ण कार्य
अखिल भारतीय कोषाध्यक्ष की हैसियत से खादी के उत्पादन और उसकी बिक्री बढ़ाने के विचार से जमनालाल बजाज ने देश के दूर-दराज भागों का दौरा किया, ताकि अर्धबेरोजगारों को फायदा पहुंच सके। 1935 में गांधीजी ने 'अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ' की स्थापना की। इस नये संघ के लिए जमनालाल बजाज ने बडी खुशी से अपना विशाल बगीचा सौंप दिया, जिसका नाम गांधीजी ने स्वर्गीय मगनलाल गांधी के नाम पर 'मगनाडी' रखा। 1936 में 'अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन', नागपुर के बाद तुरंत ही जमनालाल जी ने वर्धा में देश के पश्चिम और पूर्व के प्रांतों में हिंदी प्रचार के लिए, 'राष्ट्रभाषा प्रचार समिति' की स्थापना की तथा उसके लिए राशि इकट्ठा की। इसके कुछ ही समय बाद वह 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन', मद्रास के अध्यक्ष चुने गये। अपने इस पद का उपयोग उन्होंने राष्ट्रभाषा आंदोलन को व्यवस्थित रूप देने की दिशा में किया। जमनालाल जी इसके अतिरिक्त मन, प्राण से हिन्दू-मुस्लिम एकता और अछूतोद्धार के काम में जुट गये। वास्तव में वे देश के प्रथम नेता थे, जिन्होंने वर्धा में अपने पूर्वजों के 'लक्ष्मीनारायण मंदिर' के द्वार 1928 में ही अछूतों के लिए खोल दिये थे। जमनालाल बजाज और उनकी पत्नी जानकी देवी अतिथियों की पसंद का बहुत खयाल रखते थे। त्याग की दृष्टि से उनका अंतिम कार्य सर्वश्रेष्ठ रहा। देश के पशुधन की रक्षा का काम उन्होंने अपने लिए चुना था और गाय को उसका प्रतीक माना था। इस काम में वे इतनी एकाग्रता और लगन के साथ जुट गये थे कि जिसकी कोर्इ मिसाल नहीं थी। उनका सबसे बड़ा काम गो-सेवा का था। वैसे तो यह काम पहले भी चलता था, लेकिन धीमी चाल से। इससे उन्हें संतोष न था। उन्होंने इसे तीव्र गति से चलाना चाहा और इतनी तीव्रता से चलाया कि खुद ही चल बसे। अगर हमें गाय को जिंदा रखना है तो हमें भी उसकी सेवा में अपने प्राण खोने होंगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
नागोरी, डॉ. एस.एल. “खण्ड 3”, स्वतंत्रता सेनानी कोश (गाँधीयुगीन), 2011 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: गीतांजलि प्रकाशन, जयपुर, पृष्ठ सं 154।
- ↑ जमनालाल बजाज, महात्मा गाँधी तथा अन्य (हिन्दी) gandhiinaction.ning। अभिगमन तिथि: 14 जुलाई, 2018।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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