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'''वृषाकपि''' पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] के अनुसार [[विष्णु|भगवान विष्णु]] का ही एक नाम है।<ref>[[महाभारत शान्ति पर्व]] 242.89</ref> <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक= राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=476|url=}}</ref> | '''वृषाकपि''' पौराणिक [[महाकाव्य]] [[महाभारत]] के अनुसार [[विष्णु|भगवान विष्णु]] का ही एक नाम है।<ref>[[महाभारत शान्ति पर्व]] 242.89</ref> <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक= राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=476|url=}}</ref> | ||
*विष्णु सहस्रनाम में विष्णु का एक नाम वृषाकपि है, शायद परवर्ती [[वैदिक काल]] में विष्णु, [[इंद्र]] से प्रभावशाली [[देवता]] होते जा रहे थे, कहीं-कहीं उनको [[इंद्र]] का छोटा भ्राता भी कहा गया है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://vijaanaati-vijaanaati-science.blogspot.in/2013/09/blog-post_20.html|title=वृषाकपि व पृथ्वी|accessmonthday=15 दिसम्बर|accessyear=2015|last= |first= |authorlink= | *विष्णु सहस्रनाम में विष्णु का एक नाम वृषाकपि है, शायद परवर्ती [[वैदिक काल]] में विष्णु, [[इंद्र]] से प्रभावशाली [[देवता]] होते जा रहे थे, कहीं-कहीं उनको [[इंद्र]] का छोटा भ्राता भी कहा गया है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://vijaanaati-vijaanaati-science.blogspot.in/2013/09/blog-post_20.html|title=वृषाकपि व पृथ्वी|accessmonthday=15 दिसम्बर|accessyear=2015|last= |first= |authorlink=डॉ. एस. बी. गुप्ता |format= |publisher=विजानाति-विजानाति-विज्ञान|language=हिन्दी}}</ref> | ||
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अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि:-अच्युतः । | अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि:-अच्युतः । |
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वृषाकपि | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वृषाकपि (बहुविकल्पी) |
वृषाकपि पौराणिक महाकाव्य महाभारत के अनुसार भगवान विष्णु का ही एक नाम है।[1] [2]
- विष्णु सहस्रनाम में विष्णु का एक नाम वृषाकपि है, शायद परवर्ती वैदिक काल में विष्णु, इंद्र से प्रभावशाली देवता होते जा रहे थे, कहीं-कहीं उनको इंद्र का छोटा भ्राता भी कहा गया है।[3]
अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि:-अच्युतः ।
वृषाकपि:-अमेयात्मा सर्व-योग-विनिःसृतः ।।
वसु:-वसुमनाः सत्यः समात्मा संमितः समः ।
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः ।।
वृषाही वृषभो विष्णु:-वृषपर्वा वृषोदरः ।
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुति-सागरः ।।
शुभांगः शांतिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः ।
गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः ।।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 11 |
- ↑ महाभारत शान्ति पर्व 242.89
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 476 |
- ↑ 3.0 3.1 वृषाकपि व पृथ्वी (हिन्दी) विजानाति-विजानाति-विज्ञान। अभिगमन तिथि: 15 दिसम्बर, 2015।
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