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उर्दू का विकास 12वीं शताब्दी में आने वाले [[मुसलमान|मुसलमानों]] के प्रभाव के फलस्वरूप पश्चमोत्तर [[भारत]] की उपक्षेत्रीय अपभ्रंश की भाषाई कठिनता से बचने के उपाय के रूप में हुआ। इसके पहले प्रमुख कवि [[अमीर ख़ुसरो]] थे, जिन्होंने [[दोहा|दोहों]], लोकगीतों, पहेलियों व [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]] की रचना नवनिर्मित भाषा हिन्दवी में की। [[मध्यकाल]] तक इस मिश्रित भाषा को हिन्दवी, ज़बान-ए-हिन्द, हिन्दी, ज़बान-ए-दिल्ली, रेख़्ता, गुजरी, दक्खनी, ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला, ज़बान-ए-उर्दू या सिर्फ़ उर्दू कहा जाता था, जो वस्तुतः सैनिक छावनी की भाषा थी। इस बात के प्रमाण हैं कि इसे 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिन्दुस्तानी भी कहा गया, जो बाद में उर्दू का समानार्थी बन गया, फिर भी प्रमुख उर्दू लेखक इसे 19वीं शताब्दी के आरम्भ तक हिन्दी या हिन्दवी कहते रहे।
उर्दू का विकास 12वीं शताब्दी में आने वाले [[मुसलमान|मुसलमानों]] के प्रभाव के फलस्वरूप पश्चमोत्तर [[भारत]] की उपक्षेत्रीय अपभ्रंश की भाषाई कठिनता से बचने के उपाय के रूप में हुआ। इसके पहले प्रमुख कवि [[अमीर ख़ुसरो]] थे, जिन्होंने [[दोहा|दोहों]], लोकगीतों, पहेलियों व [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]] की रचना नवनिर्मित भाषा हिन्दवी में की। [[मध्यकाल]] तक इस मिश्रित भाषा को हिन्दवी, ज़बान-ए-हिन्द, हिन्दी, ज़बान-ए-दिल्ली, रेख़्ता, गुजरी, दक्खनी, ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला, ज़बान-ए-उर्दू या सिर्फ़ उर्दू कहा जाता था, जो वस्तुतः सैनिक छावनी की भाषा थी। इस बात के प्रमाण हैं कि इसे 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिन्दुस्तानी भी कहा गया, जो बाद में उर्दू का समानार्थी बन गया, फिर भी प्रमुख उर्दू लेखक इसे 19वीं शताब्दी के आरम्भ तक हिन्दी या हिन्दवी कहते रहे।
==स्वर==
==स्वर==
स्वर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उर्दू की ध्वनियाँ, लघु स्वर विषम ध्वनियों में कुछ परिवर्तन के साथ हिन्दी के समान ही है। उर्दू में सभी महाप्राणित विराम (श्रव्य श्वास को सहसा उच्छ्वासित करके उच्चारित) बरक़रार है, जो भारतीय-आर्य भाषाओं की विशेषता है। साथ मूर्धन्य स्वर भी इसमें हैं। गृहित ध्वनियों के मामले में उर्दू में फ़ारसी-अरबी व्यंजनों की सम्पूर्ण शृंखला को नहीं लिया गया है। शामिल की गई ध्वनियों में सबसे अधिक ध्वनियाँ संघर्षी (मुख के किसी निचले हिस्से से श्वास के संघर्ष से उच्चारित) हैं, अर्थात् 'फ़, ज़, झ, क्स, ग', और विराम वर्ग की केवल एक ध्वनि श्वासद्वारीय 'क़' है।
स्वर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उर्दू की ध्वनियाँ, लघु स्वर विषम ध्वनियों में कुछ परिवर्तन के साथ हिन्दी के समान ही है। उर्दू में सभी महाप्राणित विराम (श्रव्य श्वास को सहसा उच्छ्वासित करके उच्चारित) बरक़रार है, जो भारतीय-आर्य भाषाओं की विशेषता है। साथ मूर्धन्य स्वर भी इसमें हैं। गृहित ध्वनियों के मामले में उर्दू में फ़ारसी-अरबी व्यंजनों की सम्पूर्ण श्रृंखला को नहीं लिया गया है। शामिल की गई ध्वनियों में सबसे अधिक ध्वनियाँ संघर्षी (मुख के किसी निचले हिस्से से श्वास के संघर्ष से उच्चारित) हैं, अर्थात् 'फ़, ज़, झ, क्स, ग', और विराम वर्ग की केवल एक ध्वनि श्वासद्वारीय 'क़' है।
==व्याकरण==
==व्याकरण==
[[व्याकरण]] के दृष्टिकाण से फ़ारसी-अरबी उपसर्ग जैसे- दार 'मे', बा 'के साथ', बे/बिला/ला 'के बिना', बद 'बीमार, ग़लत' तथा प्रत्ययों जैसे- दार 'से युक्त', साज़ 'बनाने वाला', ख़ोर 'खाने वाला', पोश 'ढकने वाला' में, जिनका उपयोग हिन्दी के मुक़ाबले उर्दू में ज़्यादा होता है, हिन्दी व उर्दू में अधिक अन्तर नहीं है। इसके अलावा सामान्य बहुवचन दर्शाने वाला, जैसे 'आ', उर्दू में 'ई' बन जाता है, उर्दू में 'आत' का उपयोग होता है, जैसे काग़जात, जवाहरात और मकानात। हिन्दी में प्रयुक्त 'का' के अलावा इसमें व्युत्पत्तिजन्य संरचनाओं में 'ई' का उपयोग होता है जैसे- 'सुबह-ए-आज़ादी', 'आज़ादी की सुबह' , 'ख़ून-ए-जिगर', 'जिगर का ख़ून'।  
[[व्याकरण]] के दृष्टिकाण से फ़ारसी-अरबी उपसर्ग जैसे- दार 'मे', बा 'के साथ', बे/बिला/ला 'के बिना', बद 'बीमार, ग़लत' तथा प्रत्ययों जैसे- दार 'से युक्त', साज़ 'बनाने वाला', ख़ोर 'खाने वाला', पोश 'ढकने वाला' में, जिनका उपयोग हिन्दी के मुक़ाबले उर्दू में ज़्यादा होता है, हिन्दी व उर्दू में अधिक अन्तर नहीं है। इसके अलावा सामान्य बहुवचन दर्शाने वाला, जैसे 'आ', उर्दू में 'ई' बन जाता है, उर्दू में 'आत' का उपयोग होता है, जैसे काग़जात, जवाहरात और मकानात। हिन्दी में प्रयुक्त 'का' के अलावा इसमें व्युत्पत्तिजन्य संरचनाओं में 'ई' का उपयोग होता है जैसे- 'सुबह-ए-आज़ादी', 'आज़ादी की सुबह' , 'ख़ून-ए-जिगर', 'जिगर का ख़ून'।  

10:53, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

उर्दू एक भारतीय आर्य भाषा है, जो भारतीय संघ की 22 राष्ट्रीय भाषाओं में से एक व पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। हालाँकि यह फ़ारसी और अरबी से प्रभावित है, लेकिन यह हिन्दी के निकट है और इसकी उत्पत्ति और विकास भारतीय उपमहाद्वीप में ही हुआ। दोनों भाषाएँ एक ही भारतीय आधार से उत्पन्न हुई हैं। स्वर वैज्ञानक और व्याकरण के स्तर पर इनमें काफ़ी समानता है और ये एक ही भाषा प्रतीत होती हैं। लेकिन शब्द संग्रह के स्तर पर इनमें विभिन्न स्रोतों (उर्दू में अरबी तथा फ़ारसी और हिन्दी में संस्कृत) से व्यापक रूप से गृहीत शब्द हैं, जिससे इन्हें स्वतंत्र भाषाओं का दर्जा दिया जा सकता है। इनके बीच सबसे बड़ा विभेद भाषा लेखन के स्तर पर परिलक्षित होता है। हिन्दी के लिए देवनागरी का उपयोग होता है और उर्दू के लिए फ़ारसी-अरबी लिपि प्रयुक्त होती है, जिसे आवश्यकतानुसार स्थानीय रूप में परिवर्तित कर लिया गया है। इन्हें भी देखें: उर्दू साहित्य एवं उर्दू हिंदी शब्दकोश

भाषा

उर्दू भाषा भारत और पाकिस्तान के पड़ोसी देशों, जैसे अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में बोली जाती है। व्यावहारिक रूप से उर्दू दक्षिण एशियाई मुसलमानों की और इस उपमहाद्वीप से बाहर, विशेषकर खाड़ी और मध्य-पूर्व, पश्चिम यूरोप, स्कैंडिनेविया, अमेरिका और कनाडा में सांस्कृतिक व बोलचाल की भाषा है। उर्दू पाकिस्तान की सरकारी भाषा है; इसका उपयोग सरकारी स्कूलों में शिक्षा के माध्यम के रूप में, ज़िला स्तर पर प्रशासन में और जन-संचार में होता है। पाकिस्तान की 1981 की जनगणना के अनुसार, वहाँ उर्दू बोलने वालों की संख्या एक करोड़ दस लाख है और इसे बोलने वाले कराची और पंजाब में सबसे अधिक केन्द्रित हैं। भारत की 1991 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग चार करोड़ चालीस लाख उर्दू-भाषी लोग हैं, जिनकी सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है, इसके बाद बिहार, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक का स्थान आता है। यह जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकारी भाषा है। उर्दू साहित्य तथा प्रकाशन का एक प्रधान केन्द्र दिल्ली है।

व्युत्पत्ति

उर्दू का विकास 12वीं शताब्दी में आने वाले मुसलमानों के प्रभाव के फलस्वरूप पश्चमोत्तर भारत की उपक्षेत्रीय अपभ्रंश की भाषाई कठिनता से बचने के उपाय के रूप में हुआ। इसके पहले प्रमुख कवि अमीर ख़ुसरो थे, जिन्होंने दोहों, लोकगीतों, पहेलियों व मुकरियों की रचना नवनिर्मित भाषा हिन्दवी में की। मध्यकाल तक इस मिश्रित भाषा को हिन्दवी, ज़बान-ए-हिन्द, हिन्दी, ज़बान-ए-दिल्ली, रेख़्ता, गुजरी, दक्खनी, ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला, ज़बान-ए-उर्दू या सिर्फ़ उर्दू कहा जाता था, जो वस्तुतः सैनिक छावनी की भाषा थी। इस बात के प्रमाण हैं कि इसे 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हिन्दुस्तानी भी कहा गया, जो बाद में उर्दू का समानार्थी बन गया, फिर भी प्रमुख उर्दू लेखक इसे 19वीं शताब्दी के आरम्भ तक हिन्दी या हिन्दवी कहते रहे।

स्वर

स्वर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उर्दू की ध्वनियाँ, लघु स्वर विषम ध्वनियों में कुछ परिवर्तन के साथ हिन्दी के समान ही है। उर्दू में सभी महाप्राणित विराम (श्रव्य श्वास को सहसा उच्छ्वासित करके उच्चारित) बरक़रार है, जो भारतीय-आर्य भाषाओं की विशेषता है। साथ मूर्धन्य स्वर भी इसमें हैं। गृहित ध्वनियों के मामले में उर्दू में फ़ारसी-अरबी व्यंजनों की सम्पूर्ण श्रृंखला को नहीं लिया गया है। शामिल की गई ध्वनियों में सबसे अधिक ध्वनियाँ संघर्षी (मुख के किसी निचले हिस्से से श्वास के संघर्ष से उच्चारित) हैं, अर्थात् 'फ़, ज़, झ, क्स, ग', और विराम वर्ग की केवल एक ध्वनि श्वासद्वारीय 'क़' है।

व्याकरण

व्याकरण के दृष्टिकाण से फ़ारसी-अरबी उपसर्ग जैसे- दार 'मे', बा 'के साथ', बे/बिला/ला 'के बिना', बद 'बीमार, ग़लत' तथा प्रत्ययों जैसे- दार 'से युक्त', साज़ 'बनाने वाला', ख़ोर 'खाने वाला', पोश 'ढकने वाला' में, जिनका उपयोग हिन्दी के मुक़ाबले उर्दू में ज़्यादा होता है, हिन्दी व उर्दू में अधिक अन्तर नहीं है। इसके अलावा सामान्य बहुवचन दर्शाने वाला, जैसे 'आ', उर्दू में 'ई' बन जाता है, उर्दू में 'आत' का उपयोग होता है, जैसे काग़जात, जवाहरात और मकानात। हिन्दी में प्रयुक्त 'का' के अलावा इसमें व्युत्पत्तिजन्य संरचनाओं में 'ई' का उपयोग होता है जैसे- 'सुबह-ए-आज़ादी', 'आज़ादी की सुबह' , 'ख़ून-ए-जिगर', 'जिगर का ख़ून'।


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