मधुमेह

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मधुमेह के लक्षण

(अंग्रेज़ी:Diabetes) मधुमेह एक ख़तरनाक रोग है जिसका प्रभाव भारत में व्यापक रूप से फैल रहा है। यह बीमारी हमारे शरीर में अग्न्याशय द्वारा इंसुलिन का स्त्राव कम हो जाने के कारण होती है। इसमें रक्त ग्लूकोज़ स्तर बढ़ जाता है, साथ ही इन मरीज़ों में रक्त कोलेस्ट्रॉल, वसा के अवयव भी असामान्य हो जाते हैं। धमनियों में बदलाव होते हैं। मधुमेह से पीड़ित मरीज़ों की आँखों, गुर्दों, स्नायु, मस्तिष्क, हृदय के क्षतिग्रस्त होने से इनके गंभीर, जटिल, घातक रोग का ख़तरा बढ़ जाता है। मधुमेह ग्लूकोज़ (रक्त शर्करा) की चयापचय[1] का एक विकार है। इंसुलिन नामक हॉर्मोन की कमी या इसकी कार्यक्षमता में कमी आने से मधुमेह रोग या डाइबी‍टीज हो जाती है।

मधुमेह के कारण

मधुमेह जैसी बीमारी प्राकृतिक या अनुवांशिक कारणों से हो सकती है। यह एक ऐसा विकार है, जिसमें रक्त में इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है। मधुमेह मुख्यत: दो कारणों से होता है, या तो शरीर में इंसुलिन का बनना बंद हो जाये या फिर शरीर में इंसुलिन का प्रभाव कम हो जाये। दोनों ही परिस्थितियों में शरीर में ग्लूकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है।[2]

मधुमेह इंसुलिन हॉर्मोन उदर की एक बड़ी ग्रंथि जिसे अग्न्याशय कहा जाता है, द्वारा उत्पादित होता है। हालांकि व्यक्ति आहार के रूप में सेवन जारी रखता है, खाने के रूप में ग्लूकोज़ की एक ताजा आपूर्ति जुड़ती रहती है, जो पहले से ही इंसुलिन की कार्यवाई के अभाव की वजह अप्रयुक्त ग्लूकोज़ से संतृप्त होती है, शरीर ऊर्जा की कमी से पीड़ित होने लगता है, जबकि ग्लूकोज़ शरीर की रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करने की प्रतिक्षा में रहता है। परिणामस्वरूप, रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर बढने लगता है और अधिक हो कर मूत्र के रूप में बाहर उत्सर्जन होने लगता है।[3]

प्रकार

कारण और प्रस्तुति के आधार पर पर मधुमेह के प्रकार निर्भर हैं। इसे तीन प्रकार के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • प्रकार 1 - इसे जुवेनाइल (किशोर, बचपन) मधुमेह या इंसुलिन निर्भर मधुमेह कहा जाता है।
  • प्रकार 2 - इसे देर से शुरू होने वाली या गैर इन्सुलिन निर्भर मधुमेह कहा जाता है।
  • जेस्टेशनल मधुमेह - गर्भावस्था के दौरान शुरू मधुमेह

इंसुलिन निर्भर मधुमेह

इसे जुवेनाइल (किशोर, बचपन) मधुमेह या इंसुलिन निर्भर मधुमेह कहा जाता है। यह अब एक ऑटोईम्यून विकार का परिणाम होना सिद्ध हो गया है। जिसमें प्रतिरक्षा कोशिकायें अग्न्याशय पर हमला कर इसकी कोशिकाओं को पूरी तरह से ग़लती से नष्ट कर देती है जिसके एक परिणाम के रूप में शरीर में इंसुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता है। मधुमेह के साथ जीने के लिए इस प्रकार के रोगियों को बाहर से जीवनभर इंसुलिन लेने की ज़रूरत होती है।

एक्वा चेक
Aqua cheque

प्रकार 1- मधुमेह के लक्षण बचपन में या युवाकिशोर वयस्कों में शुरू होते हैं और वे तेजी से विकसित होते हैं। प्रतिदिन करीब 200 बच्चों में प्रकार-1 की मधुमेह़ के लक्षणों का निदान चिकित्सकों द्वारा किया जाता है। जिसके कारणवश इन बच्चों को प्रतिदिन इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने पड़ते हैं ताकि उनके रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित किया जा सके। मधुमेह से ग्रसित बच्चों की संख्या में 3% की वार्षिक वृद्धि हो रही है और बहुत ही छोटे बच्चों में यह वृद्धि 5% है। 15 वर्ष से कम आयु वाले लगभग 70,000 बच्चे प्रतिवर्ष इस रोग से ग्रस्त हो रहे हैं।

प्रकार 1 के महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं-

  • लगातार भूख लगना
  • असत्यवत वजन घटना
  • प्यास और लघुशंका में वृद्धि
  • थकान और सहनशक्ति की कमी
  • दृष्टि का धुँधलापन आदि।

यदि शीघ्र निदान और इंसुलिन के साथ इलाज, नहीं किया जाता है तो प्रकार 1 मधुमेह का रोगी जीवनघातक डायबिटिक- कोमा जिसे 'डायबिटिक किटोएसिडोसिस' भी जाना जाता है, में चला जा सकता है।

प्रौढ़ावस्था में शुरू होने वाली मधुमेह

प्रौढ़ावस्था में शुरू होने वाली मधुमेह वयस्कों में देखा जाने वाला मधुमेह का सबसे आम रूप है, और मोटे व्यक्तियों में, आरामदायक जीवन शैली के जीने वाले, वृद्ध व्यक्ति और मधुमेह के पारिवारिक इतिहास के व्यक्तियों में होता है। इस मामले में, अग्न्याशय शुरू में इंसुलिन की सामान्य मात्रा बना रहा होता है। शरीर में कोशिकाओं को इंसुलिन प्रतिरोध विकसित होने पर वे क्रम में रक्त शर्करा का उपयोग करने के लिए इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाते। इस प्रकार समय के साथ, अग्न्याशय इंसुलिन का उत्पादन कम कर देता है। इसके भी प्रकार 1 के समान ही लक्षण होते हैं, लेकिन वे और अधिक धीरे-धीरे विकसित होते हैं और शुरू में कई रोगियों द्वारा चूक किये जा सकते हैं।

गेस्टेशनल मधुमेह

इस मामले में एक स्त्री में उसकी गर्भावस्था के पिछले कुछ महीनों में मधुमेह विकसित होती है। ज़्यादातर मामलों में, बच्चे के जन्म के साथ मधुमेह समाप्त हो जाती है, लेकिन कुछ में यह प्रकार 2 मधुमेह के रूप में जारी रह सकती है। गेस्टेशनल मधुमेह गर्भावस्था के दौरान कुछ हॉर्मोन की गड़बड़ी होने के कारण घटित होती है। मधुमेह के इस प्रकार के रोगी में कोई स्पष्ट लक्षणों के साथ, केवल निदान असामान्य रक्त शर्करा रिपोर्टों के कारण शांत हो सकती है।

लक्षण

  • मधुमेह के रोगी को अधिक प्यास लगती है।
  • कोई घाव हो गया हो तो जल्दी ठीक नहीं होता।
  • पैरों की पिंडलियों में लगातार दर्द तथा ऐंठन रहना तथा सुन्न पड़ जाना।
  • शरीर की त्वचा सूखी रहना तथा पैरों के तलवे में जलन होना।
  • मधुमेह के रोगी को भूख बहुत लगती है।
  • बार-बार लघुशंका की इच्छा के अलावा वजन में गिरावट आँखों में रोशनी की कमी भी मधुमेह के लक्षण हो सकते हैं।
  • परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को पहले से मधुमेह होना इस रोग की संभावना को बढ़ा देता है।[4]

प्रभाव

मोटापा और मधुमेह का औसत
Obesity and Diabetes

मधुमेह रोगियों में करीब चार फ़ीसदी रोगियों को प्रतिवर्ष पैर में घाव हो जाता है। पैरों में एक तो रक्त का प्रवाह कम होता है, दूसरा इसकी धमनियों में प्लेक तेजी से जमता है। लोग पैर की देखभाल के प्रति भी लापरवाह होते हैं, जिससे पैरों में घाव हो जाता है। यह घाव भरता नहीं, बल्कि बढ़ता चला जाता है। भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ मधुमेह रोगियों को पैरों में तकलीफ होती है। इसमें से करीब 40 हजार लोगों की ज़िन्दगी बचाने के लिए उनके पैरों को काट देना पड़ता है। यह किसी भी तरह की दुर्घटना के बाद पैरों के काटने की सबसे बड़ी वजह है। इसके अलावा शरीर के निचले हिस्से के संवेदनशील अंगों में भी घाव की शिकायत हो जाती है।

विकृतियाँ

मधुमेह शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है, कई बार विकृति होने पर ही रोग का निदान होता है। इस प्रकार यह रोग वर्षों से चुपचाप शरीर में पनप रहा होता है। इससे शरीर के कई अंग प्रभावित हो जाते हैं।

प्रभावित अंग व लक्षण

  • नेत्र में मोतियाबिन्द का बनना, कालापानी, आँख के पर्दे की खराबी व अधिक खराबी होने पर अंधापन।
  • हदय एवं धमनियों का हदयघात (हार्ट अटैक), हदयशूल (एंजाइना)।
  • गुर्दा मूत्र में अधिक प्रोटीन्‍स जाना, चेहरे या पैरो पर या पूरे शरीर पर सूजन और अन्‍त में गुर्दों की कार्यहीनता।
  • मस्तिष्‍क व स्‍नायु तंत्र उच्‍च मानसिक क्रियाओ की विकृति जैसे- स्‍मरणशक्ति, संवेदनाओं की कमी, चक्‍कर आना, नपुंसकता (न्‍यूरोपैथी), लकवा।

भारत में मधुमेह

भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। खानपान की खराबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में मधुमेह होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरूप उभरा है जो बहुत भयावह है। जीवनशैली में अनियमितता मधुमेह का बड़ा कारण है। एक दशक पहले भारत में मधुमेह होने की औसत उम्र चालीस साल की थी जो अब घट कर 25 से 30 साल हो चुकी है। 15 साल के बाद ही बड़ी संख्या में लोगों को मधुमेह का रोग होने लगा है। कम उम्र में इस बीमारी के होने का सीधा मतलब है कि चालीस की उम्र आते-आते ही बीमारी के दुष्परिणामों को झेलना पड़ता है।

भारत में 1995 में मधुमेह रोगियों की संख्या 1 करोड़ 90 लाख थी, जो 2008 में बढ़कर चार करोड़ हो गई है। अनुमान है कि 2030 में मधुमेह रोगियों की संख्या आठ करोड़ के आसपास हो जाएगी। भारत सरीखे देशों में करीब 340 से 350 लाख व्यक्ति इस व्याधि का शिकार हैं, जो एक विश्व रिकार्ड है। 17% नगरवासी एवं 2.5% ग्रामवासी इस बीमारी से पीड़ित हैं। दिल्ली मधुमेह अनुसंधान केन्द्र के अध्यक्ष डॉ. ए. के. झिंगन के अनुसार सभी तरह के निचले अंग विच्छेदन के मामले में 45 से 75 फ़ीसदी मधुमेह रोगी होते हैं। 2030 में मधुमेह रोगियों की अनुमानित संख्या करीब आठ करोड़ है, जिसमें एक करोड़ लोगों को डायबिटिक पैरों का खतरा होगा। यह मधुमेह रोगियों में सर्वाधिक गम्भीर, जटिल व खर्चीली बीमारी है। इस रोग के परिणामस्वरूप शरीर के निचले हिस्से के अंगों में विच्छेदन की संख्या बढ़ी है। मधुमेह (डायबिटीज) के कारण ही गुर्दे की खराबी, हृदय आघात, पैरों का गैन्ग्रीन और आंखों का अन्धापन अब भारत की मुख्य स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है।

मधुमेह का नियंत्रण

  • मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इंसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन आदि कुछ तरीके हैं।
मधुमेह, खाद्य पिरामिड
Diabetes food pyramid
  • व्यायाम से रक्त शर्करा स्तर कम होता है तथा ग्लूकोज़ का उपयोग करने के लिए शारीरिक क्षमता पैदा होती है।
  • मधुमेह के मरीज़ों को त्वचा की देखभाल करना अत्यावश्यक है। भारी मात्रा में ग्लूकोज़ से उनमें कीटाणु और फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि रक्त संचार बहुत कम होता है अतः शरीर में हानिकारक कीटाणुओं से बचने की क्षमता न के बराबर होती है। शरीर की सुरक्षात्मक कोशिकाएँ हानिकारक कीटाणुओं को खत्म करने में असमर्थ होती है। उच्च ग्लूकोज़ की मात्रा से निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) होता है जिससे त्वचा सूखी हो जाती है तथा खुजली होने लगती है।
निदान

रक्‍त में ग्‍लूकोस की जॉँच आसानी से की जा सकती है। सामन्‍यतः ग्‍लूकोस का घोल पीकर जॉँच करवाने की आवश्‍यकता नही होती प्रारंभिक जाँच में मूत्र में ऐलबूमिन व रक्‍त वसा का अनुमान भी करवाना चाहिए।

  • नमक, चीनी, गुड, घी, तेल, दूध व दूध से निर्मित वस्‍तुयें परांठे, मेवे, आइसक्रीम, मिठाई, मांस, अण्‍डा, चॉकलेट, सूखा नारियल आदि खाद्य पदार्थों का प्रयोग कम करना चाहिए।
  • हरी सब्जियॉँ, खीरा, ककडी, टमाटर, प्‍याज, लहसुन, नीबू व सामान्‍य मिर्च मसालों का उपयोग किया जा सकता है। आलू, चावल व फलों का सेवन किया जा सकता है। ज्‍वार, चना व गेहूँ के आटे की रोटी (मिस्‍सी रोटी) काफ़ी उपयोगी है सरसों का तेल अन्‍य तेलों (सोयाबीन, मूंगफली, सूर्यमुखी) के साथ प्रयोग में लेना चाहिए भोजन का समय जहाँ तक संभव हो निश्चित होना चाहिए और लम्‍बे समय तक ‍भूखा नही रहना चाहिये।

सावधानियाँ

  • नियमित रक्‍त ग्‍लूकोज, रक्‍तवसा व रक्‍त चाप की जाँच करायें।
  • निर्देशानुसार भोजन व व्‍यायाम से संतुलित वजन रखें।
  • पैरों का उतना ही ध्‍यान रखें जितना अपने चेहरे का रखते हैं क्‍योंकि पैरो पर मामूली से दिखने वाले घाव तेजी से गंभीर रूप ले लेते हैं ओर गैंग्रीन में परिवर्तित हो जाते हैं जिसके परिणाम स्‍वरूप पैर कटवाना पड सकता है।
  • धूम्रपान व मदिरापान का त्‍याग करें।
  • अनावश्‍यक दवाओं का उपयोग न करें व अचानक दवा कभी बन्‍द न करें।

विश्व मधुमेह दिवस

विश्व मधुमेह दिवस का प्रतीक चिन्ह

विश्व मधुमेह दिवस हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है। 14 नवम्बर को चाटर्रा, बेन्टिंग का जन्मदिन है जिन्होंने कनाडा के टोरन्टो शहर में बेन्ट के साथ मिलकर सन 1921 में इन्सुलिन की खोज की थी। इतिहास की इस महान खोज को अक्षुण रखने के लिए इन्टरनेशनल मधुमेह फेडेरेशन (आईडीएफ) द्वारा 14 नवम्बर को पिछले दो दशको से विश्व मधुमेह दिवस हर साल मनाया जाता है। इस दिन मधुमेह की ख़तरनाक दस्तक के बारे में लोगों को समझाया जाता है। फ्रेडरिक बेन्टिंग के योगदान को याद रखने के लिए इंटरनेशनल डायबेटिक फेडरेशन द्वारा 14 नवंबर को दुनिया के 140 देशों में मधुमेह दिवस मनाया जाता है। हर साल एक नया 'थीम' चयन किया जाता है और जनता को जागरुक बनाने की पहल की जाती है। सन 2006 से यह संयुक्त राष्ट्र विश्व मधुमेह दिवस हो गया है।[5]

समाचार

गुरुवार, 4 नवंबर, 2010

इंसुलिन प्रतिरोधी हार्मोन का पता चला
भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है क्योंकि भारत में मधुमेह एक महामारी की तरह फैल रहा है। खानपान की खराबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में मधुमेह होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरूप उभरा है जो बहुत भयावह है। जीवनशैली में अनियमितता मधुमेह का बड़ा कारण है। जल्द ही प्रकार 2 मधुमेह का सफल इलाज किया जा सकेगा। जापान में कानाजावा यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ मेडिकल साइंस के वैज्ञानिकों ने इंसुलिन प्रतिरोधी हॉर्मोन की खोज करने का दावा किया है। उनका कहना है कि इससे मधुमेह की नई दवाएँ तैयार करने में बहुत मदद मिलेगी। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रकार 2 मधुमेह के मरीज में यकृत से निकलने वाले इंसुलिन प्रतिरोधी हार्मोन का प्रवाह बहुत ज़्यादा हो जाता है।

खोज

गौरतलब है कि इंसुलिन प्रतिरोधी (आईआर) एक भौतिक अवस्था है। इसमें यकृत से निकलने वाला इंसुलिन हॉर्मोन कम सक्रिय हो पाता है। इस वजह से खून में ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ जाता है, जो प्रकार 2 मधुमेह के लिए ज़िम्मेदार है। नया शोध जर्नल 'सेल मेटाबोलिज्म' में प्रकाशित हुआ। दल का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिक हीरोफूमी मिशू ने कहा, 'इस अध्ययन में यकृत की उस कार्यप्रणाली पर रोशनी डाला गया है जिसे पहले नहीं खोजा गया था। यह इंसुलिन प्रतिरोधी हॉर्मोन के प्रवाह के बारे में जानकारी देता है।' वैज्ञानिकों ने आरंभ में प्रकार 2 मधुमेह वाले लोगों के यकृत में ज़्यादातर पाए जाने वाले प्रवाह वाले प्रोटीन (हीपैटोकींस) से युक्त जीन की खोज की थी। इस खोज के आधार पर उन्हें लगा कि प्रकार 2 मधुमेह और इंसुलिन प्रतिरोधी के विकास में यकृत का भी योगदान हो सकता है।

परिणाम

उन्होंने पाया कि ज़्यादा इंसुलिन प्रतिरोधी प्रकार 2 मधुमेह वाले लोगों में 'सेलिनो प्रोटीन पी (एसइपी)' का स्तर यकृत में बहुत ही ज़्यादा होता है। इस तरह के प्रोटीन का स्तर स्वस्थ के मुक़ाबले मधुमेह से पीड़ित लोगों में ज़्यादा होता है। वैज्ञानिकों ने प्रयोग के तौर पर सेलिनो प्रोटीन को एक चूहे को दिया। इससे वह इंसुलिन प्रतिरोधी हो गया। उसके खून में ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ गया। जब यकृत में सेलिनो प्रोटीन को निष्क्रिय किया गया, तो उसके खून में ग्लूकोज़ का स्तर कम हो गया। उल्लेखनीय है कि यह प्रोटीन यकृत में बनता है। हालांकि लोगों को खून में ग्लूकोज़ के स्तर को बनाए रखने में इसकी प्रमुख भूमिका के बारे में जानकारी मालूम नहीं थी। मिशू ने कहा, 'हमारे शोध ने यह संभावना बढ़ाई है कि यकृत से निकलने वाले हीपैटोकींस के प्रवाह में बाधा पहुँचने पर कई तरह की बीमारियाँ होने की आशंका होती है।'

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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (ऊर्जा उत्पादन के लिए ग्लूकोज़ की छिन्नता)
  2. विश्‍व डायबिटीज़ दिवस (हिन्दी) ऑनली माई हेल्थ। अभिगमन तिथि: 14 नवंबर, 2010
  3. मधुमेह (हिन्दी) हेल्थ एजुकेशन लाइब्रेरी। अभिगमन तिथि: 10 नवम्बर, 2010
  4. मधुमेह (हिन्दी) इंडिक जी। अभिगमन तिथि: 10 नवम्बर, 2010
  5. विश्व मधुमेह दिवस (हिन्दी) (एच.टी.एम) डी. एच. आर. सी. इंडिया। अभिगमन तिथि: 14 नवंबर, 2010

बाहरी कड़ियाँ

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