जहानाबाद
ऐतिहासिक पृष्टभूमि के नाम से विख्यात जहानाबाद भारत के बिहार राज्य में स्थित है। जहानाबाद ज़िला ऐतिहासिक दृषिकोण से अत्यंत महत्त्ववाला क्षेत्र है। अकबर के शासन काल में अबुल फज़ल द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक "आईना-ए-अकबरी" में जहानाबाद का जिक्र किया गया है। यह भौगोलिक, ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
इतिहास
17 वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल में यहाँ एक भीषण अकाल पड़ा था। भूख के कारण प्रतिदिन सैकड़ों लोग काल का ग्रास बन रहे थे। ऐसी परिस्थिति में मुग़ल बादशाह ने अपनी बहन जहानआरा के नेतृत्व में एक दल अकाल राहत कार्य हेतु भेजा। जहानआरा के स्मृति में इस स्थान का नाम जहानआराबाद जो कालांतर में जहानाबाद के नाम से हुआ। प्राचीनकाल के इतिहास के अनुसार जहानाबाद क्षेत्र मगध का एक छोटा सा हिस्सा था।
भौगोलिक स्थिति
जहानाबाद बिहार की राजधानी पटना से रेलमार्ग द्वारा 45 किलोमीटर की दूरी तथा सड़क मार्ग से 56 किलोमीटर दूरी पर जहानाबाद का मुख्यालय है। दरधा नदी एवं यमुना नदी के संगम पर स्थित है। औपबन्धिक आकलन के अनुसार यह '25°-15°' अक्षांश एवं '84°-30°' से '85°-15°' पूरब देशांतर के मध्य स्थित है। इसके उत्तर में पटना ज़िला, दक्षिण में गया, रोहतास एवं भोजपुर ज़िले, पूरब में नालन्दा ज़िला, पश्चिम अरवल ज़िला है।
सम्पूर्ण ज़िले की भूमि समतल मैदानी क्षेत्र है। इस ज़िले से होकर सोन, पुनपुन, फक्गु, दरधा और यमुना आदि नदियाँ गुजरती है। सिर्फ सोन नदी एवं पुनपुन नदी जहानाबाद ज़िले के पश्चिमी किनारे को छूती हुई गुजरती है तथा सदा बहती रहती है। मौसमी नदियाँ दरधा, यमुना और फल्गु कभी-कभी भयानक रुप धारण कर लेती है। जिस कारण ज़िला के अधिकांशत: क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है एवं फ़सलें नष्ट हो जाती है। फल्गु नदी को हिन्दू समुदाय आदर की नजर से देखते है और इसके किनारे पर अपने पूर्वजों को पिंड दान का धार्मिक कार्य करते हैं।
जलवायु
जहानाबाद में गर्मी के मौसम में बहुत गर्मी और जाड़े के दिन में बहुत जाड़ा पड़ता है। मार्च के अंतिम से गर्मी आरम्भ हो जाती है। मई और जून में बहुत ही अधिक गर्मी पड़ती है। जहानाबाद स्वतंत्र ज़िला बनने के पूर्व भासेरत में सब अधिक गर्म स्थानों में से एक गया ज़िला का ही एक भाग था। वर्षा ऋतु जून से शुरु होकर सितम्बर के आखिर या अक्टूबर के शुरु तक रहती है। ज़िला का समान्य वर्षामान 1074-1075 मिलीमीटर है। इस ज़िला में कुल वार्षिक वर्षामान का 90 प्रतिशत से भी अधिक भाग मानसून से प्राप्त होता है।
कृषि
जहानाबाद ज़िला एक कृषि प्रधान ज़िला है। इस ज़िला की सम्पूर्ण भूमि उपजाऊ मिट्टी से बनी है जिसे स्थानीय भाषा में केवाल कहते है। धान, गेहूँ, ईख, दलहन आदि के लिए केवाल मिट्टी बहुत ही उपयुक्त होती है। यह ज़िला भूसंचित, उपजाऊ तथा घनी आबादी का क्षेत्र है। कृषि वर्ष को दो मौसम में विभाजित किया गया है। एक खरीफ़ और दूसरा रबी। खरीफ को भदई एवं अगहन मौसम में विभाजित किया गया है तथा रबी को गर्मी में। चावल, मकई, गेहूँ और दलहन इस ज़िले की प्रमुख फ़सलें है। इस ज़िले में केवल ईख ही नगदी फ़सल हैं।[1]
पर्यटन
जहानाबाद ज़िले के मखदुमपुर प्रखंड में अवस्थित बराबर पहाड़ भौगोलिक, ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से प्राचीन काल से ही अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। प्रखंड मुख्यालय से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस पर्वत की चोटी के मध्य में बाबा सिद्धेश्वरनाथ उर्फ भगवान शंकर का अत्यंत प्राचीन मन्दिर है। मगध सेनापति बाणावर ने अपने प्रवास के दौरान एक विशाल मन्दिर का निर्माण कराया था। जो आज दबा पडा है। इसी पर्वत की चोटी पर सम्राट अशोक ने अपनी एक रानी की मांग पर आजीवक सम्प्रदाय के साधुओं के लिए गुफाओं का निर्माण कराया। जो आज भी उसी स्थिति में विद्धमान है। ये गुफाएँ विश्व की प्रथम मानव निर्मित गुफाओ के रुप में जानी जाती हैं। अशोक के पौत्र दशरथ ने भी बौद्ध भिक्षुओ के लिए कुछ गुफाओं का निर्माण कराया। गुफाओं के अदर ग्रेनाइट पत्थर की चिकनाहट की कला अभूतपूर्व है। पत्थर छूने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो मिस्त्री अभी उठकर बाहर गए हो। ऐसा माना जाता है कि इसी पर्वत पर खुदा तालाब पर ब्राह्मण विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ कर बुद्ध यहाँ से फल्गु नदी के मार्ग से बोधगया गए थे। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से इस स्थान का बहुत महत्त्व है। जहानाबाद ज़िले में धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राचीन वस्तुओं के महत्त्व के कुछ स्थान भी है जो इस प्रकार है:-
भेलावर
जहानाबाद रेलवे स्टेशन से दक्षिण- पूर्व लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर काको प्रखंड में भेलावर ग्राम अवस्थित है। यह शिव भगवान के पुराने मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। ग्राम के बाहर से ही आज भी मन्दिर के आहाते के पथरीले द्वार के बचे हुए भाग को देखा जा सकता है। हिन्दू और मुस्लिम काल की कला के नमूने की खोज भी यहाँ की गई है। यहाँ प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है।
काको
जहानाबाद रेलवे स्टेशन के लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर जहानाबाद बिहार-शरीफ़ रोड में अवस्थित काको प्रखंड का मुख्यालय है। स्थानीय कथनानुसार श्री रामचन्द्र के सौतेली माँ रानी कैकेयी ने कुछ समय यहाँ वास किया था। उन्हीं के नाम पर इस ग्राम का नाम काको पङा। एक बहुत बङी मुस्लिम सूफ़िया हजरत बीबी कमाल साहिबा का मक़बरा भी इस ग्राम में है। कहा जाता है कि बिहार-शरीफ के हजरत मखदुम साहब की यह चाची थी और रुहानी ताकत रखती थी। बिहार के कोने-कोने से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है और मनोकामना पाते है। ग्राम के उत्तर-पश्चिम में एक मन्दिर है, जिसमें सूर्य भगवान की एक बहुत पुरानी मूर्ति स्थापित है। प्रत्येक रविवार को बड़ी संख्या में लोग यहाँ पूजा करने के लिए आते हैं।
भैख
भैख ग्राम मखदुमपुर प्रखंड मुख्यालय से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यहाँ पहाडी की चोटी पर सिद्धेश्वरनाथ से भगवान शिव का ईश्वरीय प्रतीक है। इस पहाड़ी पर करना चौपार और सुदामा नाम की दो गुफाएँ है जिनका सम्बन्ध महाराजा अशोक से है। कहा जाता है कि महाराजा अशोक ने इसके निकट ही एक झील बनवाई थी, जिसे पटल-गंगा के नाम से पुकारा जाता है। चीनी यात्री हुएन-सांग ने इस स्थान का दर्शन किया था और अपनी यात्रा पुस्तक में इसका उल्लेख भी किया है।
घेजन
जहानाबाद से दक्षिण-पूर्व लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर कुर्था प्रखंड में स्थित घेजन एक प्राचीन ग्राम है। यहाँ एक पुराना गढ़ है जहाँ गुप्त काल की पत्थर की मूर्तियाँ पाई गई है। इन मूर्तियो को पटना के अजायबघर में सुरक्षित रखा गया है।
आमथुआ
आमथुआ ज़िला मुख्यालय से 7 किलोमीटर पूर्व में है। मुग़ल काल में अमूल्य धरोहर जिसमें मुग़ल कालीन प्रमाण पर बना एवं सरकारी पथ पाए गए थे। जो फिलहाल पटना के खुदाबख्श लाइब्रेरी पुस्तकालय में मौजूद है। गाँव के दक्षिण में शेरशाह की बनाई मस्जिद भी है। इसके अतिरिक्त यहाँ बहुत से महापुरुषों की कब्रें है जिनमें एक शेख चिस्ती की है।
ओकरी
ओकरी ज़िला मुख्यालय से 18 किलोमीटर उतर-पूर्व में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। पूरा गाँव टीले पर बसा है। ओकरी परगना इसी गाँव के नाम पर है। इस परगना में फ्रांसिसी बुकानन के काल में 132000 बीघा जमीन थी। कुछ जगहों पर खुदाई के दौरान कई मूर्तियों के साथ ब्राह्मी लिपि अभिलेख वाले 4 स्तम्भ भी प्राप्त हुए है ।
केउर
केउर ज़िला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में बसे इस गाँव में प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरात्त्वविद ए. बनर्जी ने 1939 ई. में इस गाँव का निरीक्षण किया था। यहाँ एक बहुत बडा गढ़ है जिसकी ऊँचाई 40 फीट है। इस गढ़ की खुदाई के दौरान पाल काल की बहुत सारी मूर्तियाँ मिली है जो दसवीं एवं बारहवीं सदी की है। खुदाई के क्रम में यहाँ बड़ी-बड़ी ईटें प्राप्त हुई है। जिसकी लंम्बाई 14 इंच चौडाई 8.5 इंच एवं ऊँचाई 3 इंच है। इतिहासकार शास्त्री ने इस गाँव की तुलना नालन्दा से करते हुए कहा था "लगता है कि यह पाल कालीन बौद्ध विश्वविद्यालय विक्रमशिला यहीं अवस्थित है।"
दाउदपुर
दाउदपुर गाँव ज़िला मुख्यालय से 28 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। इस गाँव का निरीक्षण फ़्राँसीसी बुकान्न ने 1811-12 ई. में तथा ब्राडले ने 1872 में किया था। इन लोगों ने अपने प्रतिवेदन में बताया है कि इस गाँव का पूर्व में नाम देवस्ति, देव्स्थु, दप्थु, दाउथु था। यहाँ मिट्टी का गढ़ भी है तथा गढ़ के दक्षिण-पूर्व में मुस्लिम संत का मजार है। मजार के दक्षिण-पूर्व में एक विशाल मन्दिर पारसनाथ के नाम से ख्याति प्राप्त है जिसे बौद्ध मन्दिर भी माना जाता है। इस मन्दिर के दक्षिण में वासुदेव, लक्ष्मीनारायण जगदम्बा नृत्य मुद्रा में पार्वती- शिव की मूर्तियाँ है। ये बातें फ्रांसीसी यात्री बुकानन के द्वारा लिखी गयी थी। लेकिन आज की स्थिति में वहाँ सिर्फ अवशेष मिलेगें। वहाँ की कुछ मूर्तियाँ गया संग्रहालय में उपलब्ध है।
लाट
लाट ज़िला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर पूर्व-दक्षिण के कोण पर स्थित है। यहाँ एक गोलाकार लम्बा स्तम्भ है जिसकी लम्बाई 53.5 फीट गोलाई 3.5 फीट व्यास की है। यह उत्तर से दक्षिण की ओर आधी जमीन में तथा आधी जमीन की सतह पर है। इसके बारे में कई तरह की किवदंती है। लेकिन हाल में कुछ पुरातत्त्वविदो ने इस मरहौली लौह स्तम्भ का साँचा बताया है।
जारु
जारु ज़िला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर पूर्व- दक्षिण के कोण पर है। यहाँ एक प्राचीन मन्दिर का अवशेष मिला है जो स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। स्थानीय लोग इसे शेरशाह के काल का बताते है। पास में स्थित पर्वत पर एक बहुत बड़ा शिवलिंग है। इसे हरिहर नाथ के नाम से जाना जाता है। यहाँ मेला भी लगता है।
धराउत
धराउत ज़िला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दक्षिण तथा बराबर पहाड़ी से 5 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। यहाँ एक विशाल बौद्ध मठ चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के काल में था। यहाँ चीनी यात्री ह्वेनसांग भी ठहरे थे। जिसका उल्लेख उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में किया है। इस गाँव के ऐतिहासिक एवं पुरातत्त्व विभाग को देखते हुए कई पुरातत्त्वविदो ने विभिन्न समयों में यहाँ का निरीक्षण किया है। जिनमें मेजर किट्टी ने 1847 ई. कनिंघम ने 1862 ई. और 1880 ई. में बेलगार ने 1892 ई., डॉ. गिरियेसेन ने 1900 ई., डॉ. हरिकिशोर ने 1954 में इसका निरीक्षण किया। इस गाँव के पूर्व में कई नाम थे जिनमें धरमपुर, कंचनपुर, धरमपुरी, धरमावर आदि प्रमुख है। यहाँ की बहुत सारी मूर्तियाँ पटना संग्रहालय में उपलब्ध है। इस गाँव की विगत बहुत सारी टीले एवं गढ़ है। यदि इसकी खुदाई की जाए तो इस गाँव में और भी ऐतिहासिक तथ्य सामने आयेगी।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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