संविधान संशोधन- 78वाँ
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संविधान संशोधन- 78वाँ
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विवरण | 'भारतीय संविधान' का निर्माण 'संविधान सभा' द्वारा किया गया था। संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ही 'संशोधन' कहा जाता है। |
संविधान लागू होने की तिथि | 26 जनवरी, 1950 |
78वाँ संशोधन | 1995 |
संबंधित लेख | संविधान सभा |
अन्य जानकारी | 'भारत का संविधान' ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर आधारित है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है। ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, जबकि भारत में संसद नहीं; बल्कि 'संविधान' सर्वोच्च है। |
'भारत का संविधान (78वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995
- भारत के संविधान में एक और संशोधन किया गया।
- संविधान का अनुच्छेद 31वीं नौवीं अनुसूची में शामिल उन क़ानूनों को इस आधार पर क़ानूनी चुनौती देने से संवैधानिक छूट प्रदान करता है कि इससे संविधान के खंड-3 में सुरक्षित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
- इस अनुसूची में विभिन्न राज्यों की सरकारों और केंद्रीय सरकार द्वारा बनाए गए क़ानूनों की सूची है, जो अन्य चीजों के अलावा भूमि-सहित संपत्ति के हितों और अधिकारों को प्रभावित करती हैं।
- पहले जब कभी यह महसूस किया गया कि जिन प्रगतिशील क़ानूनों की परिकल्पना जनता के हित में गई है, उन्हें मुकदमेबाजी का ख़तरा है तो उसके लिए नौवीं अनुसूची का सहारा लिया गया।
- तदनुसार, भूमि सुधारों और कृषि योग्य भूमि की हदबंदी से संबंधित विभिन्न राज्यों के क़ानूनों को पहले ही नौंवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया है।
- चूंकि सरकार भूमि सुधारों को महत्त्व देने के प्रति वचनबद्ध है, अत: भूमि सुधार क़ानूनों को नौंवीं अनुसूची में शामिल करने का फैसला लिया गया, ताकि उन्हें अदालतों में चुनौती न दी जा सके।
- बिहार, कर्नाटक, केरल, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों ने भूमि से संबंधित अपने क़ानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने का सुझाव दिया है।
- चूंकि उन क़ानूनों में संशोधन को, जो पहले ही नौंवी अनुसूची में शामिल हैं, क़ानूनी चुनौती से स्वत: छूट नहीं मिली हुई है, अत: नौंवीं अनुसूची में कुछ मूलभूत क़ानूनों के साथ-साथ अनेक संशोधित क़ानूनों को भी शामिल किया गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लागू होने पर ये क़ानून मुकदमेबाजी से प्रभावित नहीं होंगें।
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