के. आसिफ़

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के. आसिफ़
के. आसिफ़
के. आसिफ़
पूरा नाम करीम आसिफ़
अन्य नाम करीमुद्दीन आसिफ़
जन्म 14 जून 1922
जन्म भूमि इटावा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 9 मार्च 1971
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी अख्तर आसिफ़, निगार सुल्ताना
संतान अकबर आसिफ़, शबाना आसिफ़, शौकत आसिफ़, मुनाज़ा आसिफ़, तबीर क़ुरैशी
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, पटकथा लेखक
मुख्य फ़िल्में मुग़ल-ए-आज़म (1960), फूल (1945), हलचल (1951)
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - मुग़ल-ए-आज़म (1960)
नागरिकता भारतीय

के. आसिफ़ (अंग्रेज़ी: K. Asif, पूरा नाम: करीम आसिफ़, जन्म: 14 जून 1922 – मृत्यु: 9 मार्च 1971) हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा की सर्वकालिक क्लासिक फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म बनाई थी। बहुत कम फ़िल्में और बहुत ज्यादा प्रसिद्धि हासिल करने वाले फ़िल्मकारों में के. आसिफ़ का नाम शायद अकेला है। भारतीय फ़िल्म जगत के इस महान फ़िल्मकार का पूरा नाम करीम आसिफ़ था।

जीवन परिचय

करीम आसिफ़ का जन्म 14 जून 1922 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था। पिता का नाम डॉ. फ़ज़ल करीम और माँ का नाम बीबी ग़ुलाम फ़ातिमा था। के. आसिफ़ ज्यादा पढ़े-लिखे नही थे। खुद उन्होंने भी कभी शिक्षित होने का दावा नहीं किया। बावजूद इसके वे महान फ़िल्मकार बने और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर अपनी एक अलग पहचान और जगह कायम की। एक मामूली कपड़े सिलने वाले दर्जी के रूप में उन्होंने अपना कॅरियर शुरू किया था। बाद में लगन और मेहनत से निर्माता-निर्देशक बन गए। अपने तीस साल के लम्बे फ़िल्म कॅरियर में के आसिफ़ ने सिर्फ तीन मुकम्मल फ़िल्में बनाई- फूल (1945), हलचल (1951) और मुग़ल-ए-आज़म (1960)। ये तीनों ही बड़ी फ़िल्में थीं और तीनों में सितारे भी बड़े थे। 'फूल' जहां अपने युग की सबसे बड़ी फ़िल्म थी, वहीं 'हलचल' ने भी अपने समय में काफी हलचल मचाई थी और मुग़ल-ए-आज़म तो हिंदी फ़िल्म जगत इतिहास का शिलालेख है। मोहब्बत को के.आसिफ़ कायनात की सबसे बड़ी दौलत मानते थे। इसी विचार को कैनवास पर लाते, अगर वे चित्रकार होते। इसी विचार को पर्दे पर लाने के लिए उन्होंने मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण किया।[1]

फ़िल्मी सफ़र

निर्देशक
  1. फूल (1945)
  2. मुग़ल-ए-आज़म (1960)
  3. लव एण्ड गॉड (1986) (अधूरी)
निर्माता
  1. हलचल (1951)
  2. मुग़ल-ए-आज़म (1960)

मुग़ल-ए-आज़म का निर्माण

वे यह जानते हुए भी कि इसी विषय पर अनारकली जैसी फ़िल्म बन चुकी है, के. आसिफ़ रत्तीभर भी विचलित नहीं हुए। उनका आत्म-विश्वास इस फ़िल्म के बारे में कितना जबरदस्त था, यह बाद में फ़िल्म ने साबित करके दिखा दिया। भव्य सैट, नाम कलाकर और मधुर संगीत की त्रिवेणी मुग़ल-ए-आज़म की सफलता के राज हैं।

शकील बदायूँनी ने इस फ़िल्म में 12 गीत लिखे। नौशाद के संगीत में नहाकर बड़े ग़ुलाम अली खां, लता मंगेशकर, शमशाद बेगम, मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ का जादू फ़िल्म के प्राण हैं। पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार और मधुबाला के फ़िल्मी जीवन की यह सर्वोत्तम कृति है। महान फ़िल्मों की श्रेणी में मुग़ल-ए-आज़म वाकई महान है।[1]

अधूरी रही 'लव एण्ड गॉड'

मुग़ल-ए-आज़म के बाद के. आसिफ़ ने लव एण्ड गॉड नामक भव्य फ़िल्म की शुरूआत की। वैसे तो के. आसिफ़ कोई बड़े धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, मगर मोहब्बत और खुदा में वे लैला-मजनूं की पुरानी भावना-प्रधान प्रेम कहानी के द्वारा दुनिया को कुछ ऐसा ही आनंद प्रदान करने वाला दर्शन देना चाहते थे। इस फ़िल्म को अपने जीवन का महान स्वप्न बनाने के लिए उन्होंने बहुत पापड़ भी बेले, मगर फ़िल्म के नायक गुरुदत्त की असमय मौत के कारण फ़िल्म रुक गई। फिर उन्होंने बड़े सितारों को लेकर एक और बड़ी फ़िल्म- सस्ता खून महंगा पानी शुरू की। किन्हीं कारणों वश बाद में यह फ़िल्म भी बंद हो गई। तत्पश्चात उन्होंने लव एण्ड गॉड फिर से शुरू की, जिसमें गुरुदत्त की जगह संजीव कुमार को लिया गया। इससे पहले कि के. आसिफ़ यह फ़िल्म पूरी कर पाते 9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने से उनका दुखद निधन हो गया। लव एण्ड गॉड को आसिफ़ जितना बना गए थे, उसे उसी रूप में उनकी पत्नी श्रीमती अख्तर आसिफ़ (दिलीप कुमार की बहन) ने निर्माता-निर्देशक केसी बोकाडिया के सहयोग से 1986 में प्रदर्शित किया। अधूरी लव एण्ड गॉड देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि के. आसिफ़ इस फ़िल्म को कैसा रूप देना चाहते थे। अगर यह फ़िल्म उनके हाथों से पूर्ण हो जाती, तो निश्चित ही वह भी एक यादगार फ़िल्म बन जाती।[1]

फ़िल्म बनाने का शाही अंदाज़

के. आसिफ़ को फ़िल्म कला से सामान्य रूप में और अपनी फ़िल्म से विशेष रूप से ऐसा लगाव था, जैसे लगन में पूजा जैसी पवित्रता और जुनून की सीमाओं तक बढ़ती हुई एकाग्रता थी। अपनी इन्हीं खूबियों की बदौलत वे मूवी-मुगल के नाम से मशहूर हुए। कई लोग उन्हें भारतीय फ़िल्म जगत के सिसिल बी. डिमिल भी कहते हैं। के. आसिफ़ की एक विशेषता यह भी थी कि वे एक फ़िल्म के निर्माण में वर्षों लगा देते थे। कई बार आधी से अधिक फ़िल्म बनाकर उसे रद्द कर देना और फिर से शूटिंग करना उनकी आदत में शुमार था। जिस शान-ओ-शौकत से वे फ़िल्में बनाते थे और जिस शाही अंदाज में खर्च करते थे, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।[1]

सम्मान और पुरस्कार

  • 1960 फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार - मुग़ल-ए-आज़म
  • 1960: सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़ीचर फ़िल्म का राष्ट्रपति द्वारा रजत पदक - मुग़ल-ए-आज़म

निधन

फ़िल्म 'लव एण्ड गॉड' को बनाते समय दिल का दौरा पड़ने के कारण 9 मार्च 1971 को आसिफ़ का दुखद निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 भारतीय सिनेमा के मूवी-मुगल (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) डेली न्यूज़। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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