बंगाल (आज़ादी से पूर्व)

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12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में 'इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार ख़िलजी' ने बंगाल को दिल्ली सल्तनत में मिलाया। बीच में बंगाल के स्वतंत्र होने पर बलबन ने इसे पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन किया। बलबन के उपरान्त उसके पुत्र बुगरा ख़ाँ ने बंगाल को स्वतंत्र घोषित कर लिया। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने बंगाल को तीन भागों- ‘लखनौती[1], ‘सोनारगांव’ [2] तथा ‘सतगाँव’[3] में विभाजित किया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ के अन्तिम दिनों में फ़खरुद्दीन के विद्रोह के कारण बंगाल एक बार पुनः स्वतंत्र हो गया। 1345 ई. में हाजी इलियास बंगाल के विभाजन को समाप्त कर 'शम्सुद्दीन इलियास शाह' के नाम से बंगाल का शासक बना।

इलियासशाह (1342-1357 ई.)

अपने शासनकाल में इसने 'तिरहुत' तथा उड़ीसा पर आक्रमण कर उसे बंगाल में मिला लिया। फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने इलियासशाह के विरुद्ध अभियान किया, किन्तु असफल रहा। उसने सोनारगाँव तथा लखनौती पर भी आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। 1357 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। इसकी मृत्यु के बाद सिकन्दरशाह शासक बना।

सिकन्दरशाह (1357-1398 ई.)

इसके शासनकाल में फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने बंगाल पर आक्रमण किया, किन्तु असफल रहा। उसने पांडुआ में ‘अदीना मस्जिद’ का निर्माण करवाया।

ग़यासुद्दीन आजमशाह(1389-1409 ई.)

सिकन्दर शाह के बाद अगले शासक के रूप में ग़यासुद्दीन आजमशाह बंगाल का शासक बना। वह अपनी न्याय प्रियता के लिए प्रसिद्ध था। प्रसिद्ध फ़ारसी कवि ‘हाफिज षीरजी’ एवं अनेक विद्धानो से उसका सम्पर्क था। उसने अपने समकालीन चीन के ‘मिगवंश’ के सम्राट 'चुई-ली' से कूटनीतिक सम्बन्ध क़ायम किए। 1409 ई. में चीनी सम्राट ने सुल्तान ग़यासुद्दीन से बौद्ध भिक्षुओं को चीन भेजने का प्रार्थना की थी। 1410 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

1410 ई. में ग़यासुद्दीन की हत्या के बाद उसके कमज़ोर उत्तराधिकारियों को उठाकर एक हिन्दू जमींदार राजा गणेश ने 1415 ई. मे बंगाल की गद्दी पर अधिकार कर लिया। फ़ारसी पांडुलिपियों में राजा गणेश को ‘केस’ नाम से जाना जाता है। उसने ‘दनुजमर्दन’ की उपाधि धारण की। 1418 ई. मे उसकी मृत्यु हो गई। इसी वर्ष पाण्डुआ और चटगांव से ‘चण्डी के उपासक महेन्द्रदेव’ नामक राजा द्वारा बंगला-अक्षरांकित सिक़्क़े चलाये गये। सम्भवतः वह गणेश का छोटा बेटा था। राजा गणेश एक हिन्दू शासक था। इसलिए वहाँ के सूफ़ी सन्तों और उलेमाओं ने उसका विरोध किया था। इस अराजकता की स्थिति से निपटने के लिए गणेश के पुत्र जदुसेन को इस्लाम धर्म में दीक्षित कर 'जलालुद्दीन' के नाम से बंगाल का शासक बनाया गया। 1431 ई. में जलालुद्दीन की मृत्यु हो गयी। जलालुद्दीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शमसुद्दीन अहमद बंगाल की गद्दी पर बैठा। शमसुद्दीन के शासनकाल में जौनपुर के इब्राहीम शर्की ने बंगाल पर आक्रमण कर दिया। शमसुद्दीन ने 1442 ई. तक शासन किया।

नसीरुद्दीन अबुल मुजफ्फर महमूद (1442-1448 ई.)

इसने बंगाल में 'इलियास शाही राजवंश' की स्थापना की। इसने 1458 ई. तक शासन किया और गौड़ को अपनी राजधानी बनाया।

रूक्नद्दीन बारबक शाह (1459-74 ई.)

रूक्नद्दीन बारबक शाह एक योग्य शासक था। इसने अपने शासन काल में प्रसारवादी नीति अपनाई तथा राज्य की सीमाएँ गंगा नदी के उत्तर में बरनर तथा दक्षिण में जैस्सोर खुलना तक बढ़ाई। इस नीति में उसने अबीसीनियाई सैनिकों की सहायता प्राप्त की 1794 ई. में अबीसीनिया के सेनापति सैफ़ुद्दीन फ़िरोज ने बंगाल की सत्ता पर अधिकार कर लिया। रुक्नुद्दीन बारबक के समय में मालधर बसु ने 'श्रीकृष्ण विजय' नामक ग्रन्थ लिखा। बारबक शाह ने मालधर बसु को गुणराज ख़ान की उपाधि से सम्मानित किया।

अलाउद्दीन हुसैनशाह (1493-1519 ई.)

बंगाल के अमीरों ने 1493 ई. में मुस्लिम सुल्तानों में योग्य अलाउद्दीन हुसैनशाह को बंगाल की गद्दी पर बैठाया। उसने अपनी राजधानी को पांडुआ से गौड़ स्थानान्तरित किया। हिन्दुओ को ऊँचे पदों जैसे- वज़ीर, मुख्य चिकित्सक, मुख्य अंगरक्षक एवं टकसाल के मुख्य अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया। वह एक धर्म निरपेक्ष शासक था। चैतन्य महाप्रभु अलाउद्दीन के समकालीन थे। उसने ‘सत्यपीर’ नामक आन्दोलन की शुरुआत की। उसके समय में बंगाली साहित्य काफ़ी विकसित हुआ। दो विद्वान वैष्णव भाई रूप एवं सनातन उसके प्रमुख अधिकारी थे। अहोमो के सहयोग से सुल्तान कामताराजा को नष्ट किया। हिन्दू लोग उसे कृष्ण अवतार मानते थे। उसने ‘नृपति तिलक’ एवं ‘जगतभूषण’ आदि की उपाधियाँ धारण कीं। 1518 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

नुसरतशाह (1519-1532 ई.)

अलाउद्दीन का पुत्र नसीब ख़ाँ नासिरुद्दीन नुसरत शाह की उपाधि से सिंहासन पर बैठा। उसके समय में ‘महाभारत’ का बांग्ला भाषा में अनुवाद करवाया गया। उसने गौड़ में बड़ा सोना एवं क़दम रसूल मस्जिद का निर्माण करवाया। 1533 ई. में नुसरतशाह की मृत्यु हो गई। इस वंश के अन्तिम शासक ग़यासुद्दीन महमूदशाह को 1538 ई. में शेरशाह ने बंगाल से भगाकर समस्त बंगाल पर अधिकार कर लिया।

स्थापत्य कला में योगदान

बंगाल शैली के अन्तर्गत निर्मित अधिकांश इमारतों में पत्थर के स्थान पर ईंट का प्रयोग किया गया है। बंगाली स्थापत्य कला की कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

  1. छोटे-छोटे खम्भों पर नुकीली मेहराबें बनवाई गई थीं।
  2. बाँस की इमारतों से ली गयी हिन्दू मन्दिरों की लहरियेदार कार्निसों की परम्परागत शैली का मुसलमानों द्वारा अनुकरण किया गया।
  3. कमल जैसे सुन्दर खुदाई के हिन्दू सजावट के प्रतीक चिह्यें को अपनाया गया।

इस समय में निर्मित कुछ महत्त्वपूर्ण इमारतें निम्नलिखित हैं-

  • पाण्डुआ की अदीना मस्जिद- इस मस्जिद का निर्माण 1364 ई.में सुल्तान सिकन्दरशाह ने करवाया था। इस मस्जिद के नमाज़ अदा करने वाले भवन का मुख्य कक्ष सर्वाधिक अलंकृत है। मस्जिद की पिछली दीवार और उत्तर हाल से सटे वर्गाकार कक्ष में सुल्तान सिकन्दरशाह की क़ब्र है। इस मस्जिद को बंगाल में संसार के आश्चर्यों में गिना जाता है। इस विशाल मस्जिद में हज़ारों लोग एक साथ नमाज़ पढ़ सकते थे।
  • जलालुद्दीन मुहम्मदशाह का मक़बरा- पाण्डुआ में स्थित इस मक़बरे को ‘लक्खी मक़बरे’ के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू भवनों की ईंटो से निर्मित यह मक़बरा एक गुम्बद की वर्गाकार इमारत है। इसमें मेहराब और धरन का बखूबी इस्तेमाल किया गया है।
  • दाख़िल दरवाज़ा गौड़ में स्थित यह दरवाज़ा भारतीय शैली के अन्तर्गत ईंट से निर्मित इमारतों में सर्वोत्कृट माना जाता है। इसका निर्माण 1465 ई. में हुआ। गौड़ में स्थित फ़िरोज मीनीर जिसमे बंगाली शैली के अन्तर्गत नुकीली छत का प्रयोग किया गया है, 5 मंजिलों की 84 फीट ऊँची मीनार है। कुछ अन्य निर्माण कार्य इस प्रकार हैं- गौड़ स्थित ‘छोटा सोना मस्जिद’ (1510 ई.), गौड़ की ‘तान्तीपुरा मस्जिद’ (1475 ई.), बड़ा सोना मस्जिद (1526 ई.), लोटन मस्जिद (1480 ई.), दरसवारी मस्जिद (1480 ई.), क़दम रसूल मस्जिद, ‘चककट्टी मस्जिद’ आदि। छोटा सोना मस्जिद का निर्माण हुसैनशाह के शासन काल में वली मुहम्मद ने कराया था। बड़ा सोना मस्जिद एवं क़दम रसूल मस्जिद का निर्माण कार्य नुसरतशाह द्वारा करवाया गया। चूंकि बंगाल में पत्थर का अभाव था, इसलिए यहाँ कि अधिकांश इमारतों का निर्माण ईंटों से किया गया। यही कारण था कि, इन इमारतों की आयु बहुत कम रही।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उत्तरी बंगाल
  2. पूर्वी बंगाल
  3. दक्षिणी बंगाल

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